( तड़तड़ा -मर्चण्या सवाल अर खड़खड़ा , कुल्ली खावो जबाब ; उल्टु बामण बल खीर मा लूण , विरोधाभास युक्त गढ़वाली लेख )
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, करैं कु करकराट : गढ़वाली व्यंग्य चक्रवर्ती सम्राट भीष्म कुकरेती -
उन मोदी जीक भाषण भीषण सूणिक क्वी बि हौंस नि सकद , इख तक कि जब उ राहुल बाबा की जग-हंसै बि करदन तब बि हंसी आण मुश्किल इ हूंद।
पर जब ब्याळि प्रधानमंत्री मोदी जीन केदरारनाथम ब्वाल , " पहाड़ों (उखण्ड ) मा जैविक खेती से सम्पनता आली " तो पैल त मेरी ब्वे खतखत हौंस।
जब मेरी बि बात समज मा आयी त मी बि ब्वा ब्वा करिक हौंस।
मोदी जीक बात जब म्यार नौनाक बिंगणम आयी तो उ जोर जोर से हंसण मिसे गे।
मेरी नातणन ब्वाल ," मिस्टर मोदी ! आर यु जोकिंग विद वी हिल पीपल ?" अर वा त खिकताट , अट्टाहास करण लगी गे। बड़ी देर तक हमर घौरम खिकताट मच्युं राइ।
जी हाँ गोधनौ दिन मोदी जीकी पाड्यूं तै खेती करणै सलाह से गढ़वाल की चार पीढ़ी अट्टहास करण मिसे गेन। चार पीढ़ी मोदी जीक मजाक -मखौल उड़ाणी छे। भल ह्वे कि हमर घौरम भाजपा या कॉंग्रेसी गढ़वळि नि छा निथर उंन त हंसी से बिल्डिंग गजे दीण छे।
जी हाँ ! जु क्वी इख तलक कि ग्वारा अंग्रेज बि हम तै सिखाल बल "जावो कम आमदनी मेहनत कारो" तो हम वैकि झगुली -टुपली उतारिक सीधा यूरोप भेजी द्योला। जनि मोदी जीन टीवी द्वारा हम पाड्यूं तै सीख दे बल " जावो कम आमदनी वळ मेहनत कारो (जैविक खेती ) " तो सरा हिन्दुस्तान मा पांड्युंन अपण टीवी बंद कर देन। जब क्वी प्रधानमंत्री कैं कौम तै वींकी प्रकृति विरुद्ध सीख द्यालो तो अवश्य ही लोग टीवी ही फोड़ द्याला।
जी हाँ मोदी जी ! आप गुजराती ब्यापार मा कथगा बि होसियार ह्वेल्या , कथगा बि हुनरबंद ह्वेल्या पर तुम तै लेबर इकॉनोमी -श्रम अर्थशास्त्र उथगा समज मा नि आली जथगा जल्दी हम कुमाऊं अर गढ़वाळयूं तै समाज मा आंद। अर मि इतिहास से सिद्ध करदो बल मि सही बुलणु छौ बल कुमाउँनी अर गढ़वळि कठोर मेहनत तै पसंद नि करदान , गढ़वाली -कुमाउँनी कठोर मेहनत तै घृणा करदां जी मोदी जी। वी गढ़वाली ऐंड कुमाउँनी लव स्मार्ट वर्क ऐंड हेट हार्ड वर्क।
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1850 बिटेन गढ़वाल -कुमाऊं मा डोटियाळुं आगमन
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मोदी जी ! जब अंग्रेज सरकारन सड़क निर्माणौ काम शुरू कार तो कुछ दिन त गढ़वाळी -कुमाउँनी लेबर काम करणा रैन किन्तु जब पाख -पख्यड़ तुड़णो काम आयी तो हम ठसठस लगण मिसे गेवां। झक मारिक अंग्रेजों तै नेपाल बिटेन डोटियाळ बुलाण पोड़िन। गढ़वाली -कुमाउँनी श्रम करदो च , हार्ड वर्क करदो च किन्तु गढ़वाली -कुमाउँनी इन काम कबि नि करदो जख मा परिश्रम अधिक ह्वावो अर आमदनी कम।
अर मोदी जी ! ये समय मा जब कैश आवश्यक ह्वे गे तो गढ़वाली -कुमाउँनी लोग मैदानों तरफ ऐ गेन अर साब लोगुं या बणियों घौरम काम करण लग गेन या मिलिट्री मा भर्ती हूण लग गेन। हार्ड वर्क इख बि छौ किन्तु आमदनी अधिक छे तो गढ़वाली -कुमाउँनी घौरम, होटलम काम करण लग गेन त मुंबई मा टैक्सी व्यवसाय से जुड़न लग गेन। मिस्टर प्राइम मिनिस्टर ! हार्ड वर्क बट मोर इनकम ही तो हम पाड्यूं सिद्धांत च जी।
(डा शिव प्रसाद की उत्तराखंड का इतिहास खंड -7 से साभार )
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गढ़वाल -कुमाऊं मा चाय बगान बिकसित नि हूणो असली कारण
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भौत सा लोग लिखणा रौंदन बल गढ़वालम टी प्लांटेशन कारो। यूरोपियन व्यापार्यूंन गढ़वालम चाय बगान लगै छौ पर द्वी कारणों से टी गार्डनिंग गढ़वाल -कुमाऊं मा विकसित नि ह्वे। टी प्लांटेशनौ कुण भौत बड़ो क्षेत्र माँ चाय बगान हूण चएंदन। गढ़वाली -कुमाउँनी भूक रै जालो पर आज बि अपण जमीन बिचणो तैयार नि हूंद। पाड्यूंन चाय बगान का वास्ता समुचित जमीन नि बेची।
फिर बि 10000 बीसी नाळी पर चाय बगान लगिन। किन्तु बीस सालम इ बंद करण पोड़ीन। पहाड़ी औरत दिन भर झुकिक मेहनत नि कौर सकदी तो टी इस्टेट मालिकों तै लेबर इ नि मील। उत्तराखंड का पहाड़ी मेहनत करण से नि घबरान्द किन्तु यदि श्रम शक्ति मा आमदनी ठीक नि हो तो वो आसामी लोगुं तरां चाय बगानों मा कम मजदूरी मा बेगारी नि करदो।
(डा शिव प्रसाद की उत्तराखंड का इतिहास खंड -7 से साभार )
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सन साठ का बाद कृषि चौपट हूणो कारण श्रम का बनिस्पत कम आमदनी च
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भौत सा विद्वान बेकार मा बरड़ाना रौंदन कि गढ़वालम पुंगड़ बांज पोड़ी गेन , खेत जंगळ बण गेन। किन्तु जरा अर्थशास्त्र तो समजो। सन साठ का बाद गढ़वाली -कुमाउँन्यूं तै मैदान मा अधिक तनखा मिलण शुरू ह्वे त हमन फटाक से कृषि तै तिलांजलि दे दे। क्या बुरु कार भै ? एक सरल अर्थ शास्त्र कु सिद्धांत च बल यदि कै रोजगारम श्रम से आमदनी उथगा नि हो तो वै काम तै छोड़ो अर अधिक आमदनी का काम हाथ मा ल्यावो। हम पाड़ी हार्ड वर्क ना स्मार्ट वर्क मा विश्वास करदां जी .
मोदी जी ! पहाड्युं तै जैविक कृषि का फायदा नि सिखावो अपितु आईएएस कन बणन सिखाओ , पाड्यूं तै बड़ा मैनेजर कन बणन सिखावो , पाड्यूं तै फॉरेन मा अधिक आमदनी वळि नौकरी की जरूरत च ना कि अधिक मेहनत अर बेभरोसामंद व कम आमदनी वळि कृषि की आवश्यकता !
मोदी जी ! पाड्यूं वास्ता पलायन रुकणो इंतजाम नि कारो अपितु सबल, सक्षम , अधिक आमदनी वळ पलयान का इंतजाम कारो।
21 /10 /2017 Copyright@ Bhishma Kukreti
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल दिमाग हिलाने हेतु , दिमाग झकझोरने , दिमाग की नस दबाने, हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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