'अंग्वाळ ' प्रकाशन गढ़वाली ही नहीं अपितु भारतीय भाषा साहित्य में एक ऐतिहासिक घटना है। 'अंग्वाळ ' एक मील स्तम्भ है। 'अंग्वाळ' एक अविस्मरणीय संदर्भ ग्रंथ है।
गढ़वाली में कई कवियों की कविता संग्रह की शुरुवात 1932 में 'गढ़वाली कवितावली ' से लगी , जिसका पुनर्प्रकाशन स्व विशंबर दत्त चंदोला की पुत्री स्व ललिता वैष्णव ने ;गढ़वाली काव्य संकलन ' किया। गढ़वाली कवितावली में प्रत्येक कवि का जीवन चरित्र व काव्य चरित्र का वर्णन मिलता है। चंदोला जी प्रकाशक थे और तारा दत्त गैरोला सपादक थे।
इसके बाद कविता संग्रह छिटपुट ढंग से प्रकाशित होते रहे किन्तु वृहदाकार नहीं।
सन 1980 में गढ़वाली साहित्यकार संस्था ने स्व अबोध बंधु बहुगुणा के सम्पादन में शैलवाणी प्रकाशित हुयी जिसमें 80 के लगभग कवियों की कविता संकलित हुईं। बहुगुणा जी ने गढ़वाली काव्य विकास पर भी प्रकाश डाला।
'अंग्वाळ 'में 235 कवियों की कविताएं , गढ़वाली काव्य इतिहास व कवियों के संक्षिप्त परिचय भी हैं।
हुआ यों था कि 2009 -2010 में मै कुछ काम से दो दिन के लिए देहरादून गया था और भाई मदन डुकलाण से मिलना तो था ही। दिन में मै स्व पूरण पंत पथिक जी के साथ घूमता रहा , पंत जी को समय पर घर पंहुचना होता था और शाम को मदन भाई से हिंदुस्तान पुस्तकालय या कार्यालय में मिलना हुआ। वहां मदन भाई की 'याद आली टिहरी' फिल्म देखने के बाद साहित्य पर बातचीत होने लगी। तीन चार रंगकर्मी भी थे साथ में।
बातचीत में मुद्दा आया कि यदि गढ़वाली कविता या गद्य का एक साथ संयोजित रूप से प्रकाशन न हुआ तो कविताएं/गद्य काल ग्रसित हो जायेगा।
अंत में यह निश्चित हुआ कि शैलवाणी के तर्ज पर के वृहद कविता संग्रह प्रकाशित किया जाय। रात एक बजे तक बातचीत होती रही।
मेरे जिम्मे कवियों की जीवनी व कविताएं इक्क्ठा करना था। मदन भाई चिट्ठी पत्री सम्पादित करते हैं तो क्रेडिटिबिलिटी का प्रश्न नहीं था। मैं इंटरनेट में गढ़वाली साहित्य के बारे में अंग्रेजी में पोस्ट करता ही रहता था तो कुछ कवियों से सम्पर्क था , मदन भाई का भी सम्पर्क था। श्री ललित केशवान जी ने भारी सहायता दी। उन्होंने 100 एक साहित्यकारों के फोन नंबर , पते व साहित्यिक विवरण ही नहीं अपितु शैलवाणी , गढ़वाली काव्य संकलन व दिल्ली से प्रकाशित चार पांच काव्य संग्रह भी भेज दिए। मैंने तकरीबन सभी कवियों को फोन पर बात की उनका साहित्य मंगवाया और तकरीबन सभी को मदन भाई के लिए कविताएं भेजने हेतु SMS भी किये। इंटरनेट में सूचना से भी बड़ी सहायता मिली।
देहरादून में कविताएं छांटना व उनमे आवश्यक सम्पादन का काम मदन भाई और गिरीश सुन्द्रियाल भाई का था।
इस दौरान मदन भाई ने चिट्ठी पत्री का 100 कवियों की कविताओं का एक विशेषांक भी प्रकाशित कर लिया था।
मैंने गढ़वाली कविता का संक्षिप्त इतिहास व कवियों की जीवनी लिख डाली थी जो श्रृंखला बद्ध 'शैलवाणी ' साप्ताहिक में प्रकाशित हो रहा था।
समय साक्ष्य की सौ रानू बिष्ट का योगदान तो ऐतिहासिक रहा है।
मदन भाई व गिरीश भाई ने सम्पादन में बड़ी मेहनत की जिसका मैंने एक दो दिन समय साक्ष्य में बैठकर अनुभव भी किया।
ऐतिहासिक गंथ 'अंग्वाळ ' 2012 अंत में बाहर ा गया था और अंग्वाळ की सभी प्रतियां अब बिक चुकी हैं।
अब अंग्वाळ के भाग दूसरे की तैयारी चल रही है।
-भीष्म कुकरेती
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