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Tuesday, July 4, 2017

बहुआयामी रचयिता डा उमेश चमोला से भीष्म कुकरेती की बातचीत

Interview with Garhwali creative Dr Umesh Chamola by Bhishma Kukreti  

 बहुआयामी रचयिता डा उमेश चमोला से  भीष्म कुकरेती की बातचीत 

(Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, part – 167 )

 भीष्म कुकरेती;-  आपना अब तक गढवाळी मा क्या क्या लेख अर कथगा कविता लेखी होलाआपक संक्षिप्त 
जीवन
परिचय सन गाँव पट्टी जिला पढाई वर्तमान पता फोन साहित्यक ब्यौरा आपक
                             साहित्य पर समीक्षकों कि राय.
उमेश चमोला उमाळ(खंडकाव्य ) 2007,निरबिजू(उपन्यास ) 2012,कचाकी(उपन्यास ) 2014,पथ्यला(गीत–   कविता संगरौ) 2011,नान्तिनो सजोलि(गढ़वाली आर कुमाउनी संयुक्त बाल कविता संग्रह )2014, एक नाटक संग्रह अर उपन्यास प्रेस मा.पड़वा बल्द(व्यंग्य कविता संग्रह ) 2015.

                  गढ़वाली मा अब तक १०० से जादा कविता लेखि होलि.
        संक्षिप्त परिचय          जन्मदिवस १४ जून एतवार,१९७३,         गाँव कौशलपुर,जिला रुद्रप्रयाग,उत्तराखण्ड.पट्टी-कालीपार मन्दाकिनी.
       शिक्षा एम०एस-सी(वनस्पति विज्ञानं ),एम ०एड,पत्रकारिता स्नातक(रजत पदक ),डीफिल.
      u.chamola23@gmail.com 
       वर्तमान पता एस० सी० ई ० आर० टी उत्तराखंड,राजीव गाँधी नवोदय विद्यालय नालापानी देहरादून.
        साहित्यिक ब्यौरा        स्थानीय अर राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकों मा हिन्दी,अंगरेजी अर गढ़वाली मा रचनो कु प्रकाशन.
      हिन्दी बाल साहित्य     प्रकाशित किताबी-गढ़वाली से इतर -
   1- 
राष्ट्र्दीप्ति(राष्ट्रभक्ति पूर्ण हिन्दी गीत अर कवितो संग्रह )2-,फूल ( हिन्दी बाल कविता संग्रह ),3-पर्यावरण    
     शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप4-आस-पास विज्ञानं (विज्ञानं आधारित कविता,कहानी अर पहेली संग्रह  
     ,धुरलोक से वापसी (विज्ञानं गल्प )प्रेस मा
      • उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा बटी प्रकाशित कक्षा से तके पर्यावरण पुस्तक हमारे आस =पास का      
        लेखन मा समन्वयन अर लेखन मंडल मा सामिल.

        • 
उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा बटी प्रकाशित कक्षा से तके हिन्दी पुस्तक मा वित्तीय साक्षरता पर     
          आधारित लिखी कहानी सामिल.

     लोकसाहित्य (हिन्दी ) उत्तराखण्ड की लोककथाएँ द्वी खण्डों मा.
      शोधपत्र –(हिन्दी मा)
     1-
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य में प्रकृति चित्रण.
    2- 
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य में विभिन्न युगीन प्रवृत्तियाँ. 
   3-
उत्तराखण्ड के लोकगीतों में सम सामयिक परिवेश.
   4-
रवीन्द्र नाथ टैगोर के साहित्य के विविध पक्ष.
   5-
कालिदास के साहित्य में गढ़वाल हिमालय का वर्णन.
    6-
कालिदास के साहित्य में वनस्पति विज्ञान.
   7-
उत्तराखण्ड की क्षेत्रीय भाषाओँ में बाल साहित्य.
   8-
उत्तराखण्ड के संस्कार गीतों का साहित्यिक सौन्दर्य और इनके विकास में महिलाओं का योगदान.
    अन्य-
   • ‘
गौ मा’ ऑडियो कैसेट से गढ़वाली गीतों प्रसारण.
    •  
२० से जादा राष्ट्रीय संयुक्त संकलनो मा कवितो कु प्रकाशन.
  साहित्य पर समीक्षकों की राय 
   1-
उत्तराखण्ड की लोककथाएँ ---
   डॉ चमोला की यह पुस्तक हालाँकि हिन्दी में ही लिखी गयी है किन्तु बहुत सारी कथाओं में उन्होंने   
   उत्तराखण्ड की स्थानीय बोलियों के शब्दों को भी पिरोया है जिस कारण यह पुस्तक हिन्दी भाषा के  
   शब्दकोष में अवश्य वृद्धि करेगी.
                                                                                 ------
नवीन डिमरी बादल’ नवल जनवरी मार्च २०१४ 
    2 
कचकी-
    • 
कचकी की भाषा बोलचाल की भाषा की गढ़वाली है.गढ़वाली न जानने वालों के लिए उपन्यास के परिशिष्ट    
     में कठिन शब्दों के हिन्दी अर्थ दिए गए हैं.संवाद पात्रानुकूल और उनकी मनोदशा प्रकट करने में सक्षम
      हैं.लोक में प्रचलित लोकोक्तियों और मुहावरों का भी यथा स्थान प्रयोग किया गया है.
                                                                ------
हरि मोहनमोहन’ सम्पादक नवल ,अक्टूबर दिसम्बर  २०१४
       • डॉ चमोला ने कचकी के संक्षिप्त कलेवर में आंचलिक संस्कृति के विभिन्न चरित्रों को प्रदर्शित करने में   
           गागर में सागर भरने जैसा कार्य किया है.        
                                                             -----डॉ सुरेन्द्र दत्त   सेमाल्टी,रीजनल रिपोर्टर जनवरी २०१५ 
               • 
यह गढ़वाली उपन्यास एक अत्यंत पठनीय,साहित्यिक कलाकारी से भरपूर एक उत्कृष्ट रचना है.यह   
                  गढ़वाली साहित्य का एक अमूल्य मोती है.इस रचना के बाद हम कह सकते हैं साहित्यिक प्रतिभा
                   के धनी डॉ उमेश चमोला जैसे साधक तपस्वी रचनाकारों की पीढी ही गढ़वाली भाषा को मानक
                 स्वरूप प्रदान करेगी.
                                                    -----------
डॉ नागेन्द्र जगूड़ी नीलामबरम’ उत्तराखण्ड स्वर अगस्त २०१५ 
         • The novel is interesting and moral oriented. There has been vacuum of novel writing in modern   
         Garhwali literature. Dr Umesh Chamola should be credited to fulfill the vacuum by publishing his second   
          novel in Garhwali.

                   -----Bhishm Kukreti,
 Bedupako.com
         3 –निरबिजू 
        • 
इस उपन्यास में लेखक द्वारा प्रयुक्त मुहावरे जैसे बिस्या सर्प कि जिकुड़ी मा दया जरमी जौ त क्या   
           बात छ ?,माया कु सूरज उदै होण का दगडी अछ्लैगी छौ.,माया कु बाटू भौत संगुडू होंदु आदि से लेखक   
           पाठकों का ह्रदय जीतने में शत प्रतिशत सफल है.

                                           ------ 
डॉ नागेन्द्र जगूड़ी नीलामबरम’ उत्तराखण्ड स्वर मई २०१३ 
     • 
लेखक द्वारा इस उपन्यास में प्राचीन कथा के बहाने आदर्श राज धर्म की व्याख्या करते हुए बताया गया  
     है की राजा के माया मोह में पड़कर राजधर्म से विमुख होने पर प्रजा तो दुखी होती ही है,धरती भी निरबिजू
      (बंजर ) हो जाती है.
                                             हरि मोहनमोहन’ सम्पादक नवल ,जनवरी मार्च २०१३
         • The story construction is so tight and cryps that readers would like to read novel many times.The
          dialogues are small and very appropriate as per characters.
                     ------------Bhishm Kukreti March 2013,E magazine.
         • निरबिजू नौ कु यो उपन्यास उपन्यास तत्वों का आधार पर एक सफल उपन्यास छ.यो डॉ उमेश चमोला  
            कु पैलू उपन्यास छ पर कथा गठन अर उपन्यास शैली से इन नि लागुदु की उपन्यासकार एक नवाड़
              उपन्यासकार छ.उपन्यास विधा ते अगर क्वी अगने बढे सकदा त डॉ उमेश चमोला जन   
            युगसाहित्य्कार.
                                        ---
डॉ नन्द किशोर ढोंडीयाल ,खबर सार फरवरी २०१३ 
      3 –
नान्तिनों की सजोलि
       • ‘
नान्तिनों की सजोलि नामक इस गढ़वाली और कुमाउनी कविताओं के संग्रह को हम इन दोनों भाषाओँ  
           का प्रथम संयुक्त बाल कविता संग्रह कह सकते हैं .इस कविता संग्रह के सहृदय बाल कवि डॉ उमेश
         चमोला और कु विनीता जोशी की यह संयुक्त कृति अपने में अनोखी उत्तरांचल के ग्रामीण अंचलों की  
         भाषाओँ में रची गयी बाल कविताओं का सरस संग्रह है.इस मौलिक कृति में बाल मनोविज्ञान को दृष्टि
            में     रखकर रची गयी कवितायेँ हैं.
                                             -------------- 
डॉ नन्द किशोर ढोंडीयाल ,पुस्तक की भूमिका में.
     • 
डॉ उमेश चमोला ने गढ़वाली और विनीता जोशी ने कुमाउनी में अपनी २५ -२५ कविता रुपी पुष्प पुस्तक  
        में पिरोकर एक नया प्रयोग किया है.दोनों रचनाकारों ने स्वयं बालमन में उतरकर उनकी मानसिकता के
        अनुरूप रचनाएँ रची हैं.

                              ------ 
डॉ सुरेन्द्र दत्त सेमाल्टी,नवल जनवरी मार्च जनवरी २०१५ 
             • Credit goes to ‘Nantino ki sajoli’ as first combined children poetry collection in history of Garhwali  
               and Kumauni literature. Garhwali poem in this volume are real sense the poem for children.
----------                                           --Bhishm Kukreti,Bedupako.com
 E magazine. 
      4 – पड़वा बल्द 
    • 
उमेश कि कवितों मा भौं भौं किस्मौ चबोड़ छन अर यी चस्केदार,चखन्यौरि कविता समाज   
      ,प्रशासन,राजनीति,भ्रस्टाचार,कुविचार,व्यभिचार,भल्तो बिगडैल्याशिष्टाचार जन दोषों पर व्यंग्य रूपि चक्कु
      से चीरा लगान्दन.व्यंग्य कि असली रंगत तबि आंद जब बुले जाव कैकुण अर तीर चलन के हौर पर.जरा
        पडवा बल्द बांचो त आप भी मानी जौल्याबल उमेश कि तकनीक अन्तराष्ट्रीय स्तर की विश्व कवितों
           दगड प्रतियोगिता करणा छन.
                                             -------------
भीष्म कुकरेती,पड़वा बल्द की भूमिका मा .
       • 
पड़वा बल्द में समाज और जीवन में व्याप्त असंगतियों और विसंगतियों को हास्य के साथ अभिव्यक्त   
         कर सुधार की दिशा में प्रेरित करने के लिए व्यंग्य का आश्रय लिया गया है.कवि के प्रत्येक व्यंग्य के
       पीछे व्यथा और आक्रोश और आदमी का आक्रोश छिपा है जो अपने चारों ओर व्यवस्था के नाम पर चल
         रही अव्यवस्था से पीढित व शोषित है और उसे बदलना चाहता है परन्तु उसके हाथ बंधे हुऐ हैं,ऐसे में
       उसका आक्रोश और असहायता व्यंग्य में बदल जाती है.प्रस्तुत संकलन के शीर्षक का चयन कवि की
        मौलिक प्रतिभा का प्रमाण है.आज घर ,परिवार,दफ्तर,समाज सब जगह पडवा बल्दों का ही वर्चस्व है.
 
                                  -------------------
कृष्ण चन्द्र मिश्रा,’कपिलनवल अप्रेल जून २०१६
    भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन ?     उमेश चमोला : कविता मीतै अपणा पिताजी से संस्कार मा मिलि. भौत छोटी क्लास बटिन मेरु कविता से
                            लग्यार व्हेगी छौ.शनिवारा दिन बालसभा होन्दी छै त बालसभा मा सुणोंण का वास्ता मी  
                          अप्नी कोर्से किताब से भैरे कविता अर गीत याद करदू छौ.मीते आज भी याद छ जबार मी

                         चारे क्लास मा पढ्धू छौ एक दौ मीन दीदी हिन्दी किताबे कविता याद करि अर बाल सभा मा
                       सुनै दीनि.हमारा गुरुजि भौत खुश व्हेन अर दगडया चक्कर मा पड़ी गेन.एक दिन एक अखबारा
                       पत्तर पर महात्मा गाँधी पर एक कविता छै छ्पी.मीन स्या कविता याद करीक द्वी अक्टूबरा
                         दिन सुने दीनि.या पांचवी क्लास्से छ्वीं छ.नौ की क्लास बटी मीते वाद-विवाद अर भाषनौ
                     चस्का लगी. ग्यारवीं क्लास्से बात होलि या.वादविवाद मा जू कविता मेरि छै छाणी स्या मी से
                      पैली वाला वक्तान बोल दीनि.तै दिन बाटी मीन सोचि कै भी भाषण मा मी अप्नी कविता ही  
                    सुणोलू . भाषण अर वाद विवाद का बीच बीच मा अप्नी कविता लिखण अर ब्वन कु यो क्रम  
                    डिग्री कोलेजा तका कार्यक्रम मा भी जारी रे.भाषण का बीच बीच मा ब्वन का वास्ता लिखी
                   कविता सरल अर विचार प्रधान होन्दी छै.कविता का बारा मा सुमित्रानंदन पन्त ज्यू कु विचार
                 वियोगी होगा पहला कवि तै मी एक अनुभूत सच मानदु.जीवन मा घोर असंदो यन बगत आई
                     जेन मीमु कविता सृजन करवाई. .
भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ? 
उमेश चमोला :  मी मालम नी च कि मेरि कवितों पर कौं कौं कवियुं कु प्रभाव च?ये बारा मा विद्वान समीक्षक
                      ही बते सकला.मी हाई स्कूल का बगत मा जयशंकर प्रसाद की कविता भौत स्वान्दी छै.बाद मा
                    प्रयोगवादी अर नई कवितों से परीचे व्हे.विद्वान समीक्षक मेरि गढ़वाली कवितों अर गीतों पर
                          हिन्दी काव्य अर गीत शैली कु प्रभाव बतोंदन.
भी.कु. : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबलखुर्सीपेनइकुलासआदि को कथगा महत्व च ?उमेश चमोला :यो मदि पेन अर यकुलांस कु महत्व मी जादा चितांदु.कविता कखी भी मन मा ऐ सकिदी.
भी.कु.: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन
             मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन? 
उमेश चमोला :पैली दौ त कविता पेन से ही लिखुदु अर के भी कागज पर कविता लेख सकुदु.
भी.कु.: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट
             बुक दगड मा रखदां ?उमेश चमोला : मी छोटू मोटू पैड या कागज सदनी दगड़ा मा लेक चल्दु.
भी.कु.: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी
          नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी अर फिर क्या करदा ? 
उमेश चमोला :या स्थिति के कवि दगिडी घटि सकिदी.जब अफु मू कबि क्वी कागज नि रैंदु अर मन मा क्वी
          विचार या कविता की पंगति ऐ जांदी त मी तै बिचार या कविता पर इतगा मंथन करि देन्दु कि स्या
          बिसिर्या न जौ.के दौ मी कविता की पंगति या भाव हाथ मा लेख देन्दु.
भी.कु.: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?उमेश चमोला :पैली दौ त कविता जे रूप मा औन्दी लेख देन्दु.बाद मा कविता तै साज संवार देन्दु.कबि कबि
             कविता की द्वी चार पंगति ऐ जांदी.के दिनों तलक स्या कविता अगने नि बडदि.के दौ अप्नी कविता
            तै दुबारा पढ़ण से हौर पंगति भी ऐ जांदी.यन करी द्वी तीन दौ कविता रीवाइज व्हे जांदी.
भी.कु. क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाचनई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को
             प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?उमेश चमोला :हर क्वी कविता नि लेख सकुदु पर कविता का कलापक्ष तै प्रशिक्षण से सजे संवार सकदान.जौ
              नान्तिनो रूचि कविता सृजन मा हो तौन्कु प्रशिक्षण हुन चैंद.जन कवि सम्मेलन,लोकभाषा उत्सव अर
             नाटक जन गतिविध्यों तै हम महत्व देंदा तनि लोकभाषा संस्थो तै कविता गढ़नो प्रशिक्षण करोण
            चैंद.हिन्दी   मा बाल साहित्य पर यन काम भौत च होणु,लोकभाषा मा कवि सम्मेलनों पर ही आयोजकों
             कु ध्यान छ.
मीन कविता गढ़नो बान कवी औपचारिक प्रशिक्ष्ण नि लीनि.
भी.कु.: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?

उमेश चमोला :हिन्दी साहित्य आलोचना कविता अर कवित्व तै नै दिशा देण कु काम करिदी.साहित्य आलोचना
                 से अलग अलग बगत मा लिखी कवितो की युगीन प्रवृत्यों कु पता चलुदु.कवि तै अप्नी अर होरों
                   कवितो का तुलनात्मक अध्ययन मा सैता मिल्दी.जख तक मेरि कविता अर कवित्व पर हिन्दी
                    साहित्य आलोचनो प्रभाव कि बात छ त भौत पैली मी रस,छंद अर अलंकारों से सजी सवरी
                     कविता तै ही कविता चितोंदु छौ .साहित्य आलोचना अध्ययnaaना बाद मीते नई कविता कु अलग
                      शिल्प विधान अर बिम्ब कु पता चलि.तब अतुकांत शैली मा मी भी कविता रचण बैठ्यूँ.
भी.कु : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सूखो तैं ख़तम करणों
               आपन क्या कौर ? (Here the poet took Sukho as happiness and not DRY days in the life of poet when he can’t create poetry)उमेश चमोला :जीवन की भौतिक समृधि अर आपाधापी का बगत रचनात्मक सुखो ऐ जांद.तै बगत मा लगुदु
              कि मीन पैली जू लेखि स्वो कनकै लेखि होलू ?पर हमतें स्वाध्याय तै बगत की चोरि करन सीखण
            चैंद.यन भी के दौ व्हे जान्द की कविता का सुखा का बगत मा हौर बौद्धिक काम हम करि सकदा.ये
               बगत मा गद्य मा हम काम करि सकदा.
भी.कु : कविता घड़याण मागंठयाण मा रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद एकांत
             जरुर चैंदु किलै की मन का जू तार छन वूँ थैं बाटोलाना जरुरी च तभी कुछ शब्दों कु भंडार खुल्दु .
उमेश चमोला : कविता घड़याण मागंठयाण मा रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत

                पड़दि.जीवन का हौर काजो का बीच येका वास्ता हमते समय प्रबंधन औंण चयेंद.
भी.कु: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या  
             फ़रक पोडद इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद ?उमेश चमोला : घर गृहस्थी का बगत का बीच हमते बगत की चोरि करन औंण चयेंदु.या बात कार्यालय का
             काम काज पर भी लागु होन्दी.कार्यालयी काम का वास्ता जब यत तत टूर पर जाण पड्दु त यात्रा कु
             इकुलांस काव्य सृजन कु बाटू खोल्दु.
भी.कु: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि
           करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?उमेश चमोला :इन के दौ होंदु.के दौ द्वी चार पंगति कविते लिखये जांदी.के दिनों तक कविता अगने नि
             बड़दि.मी यों कवितो तै लिखी धरदु अर बीच बीच मा पढ्दी जांदू.के दौ यी कविता भौत बगत बाद
             अपणा पूरा रूप मा ऐ जांदी .
भी.कु :  जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि
                मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?उमेश चमोला : यन स्थिति मा उठी तै मी तीं कविता तै लेखि देन्दु फ्येर स्वनिंदु व्हे जांदू.
भी.कु: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ? 
उमेश चमोला :मीमू श्री कन्हैया लाल डडरियाल अर बीना बेंजवाल अर अरबिंद पुरोहित कु शब्दकोश
                  छ.शब्दकोष का बारा मा मेरु यो विचार छ कि हमतें कखी बटिन भी क्वी शब्द मिलि जांदू त हमते
              अप्नी डैरि मा नोट कर देण च्येन्द.सुबिरंण को खोजत फिरत कवि ,व्यभिचारी,चोर वालि बात मीते
                 सहि लगिदी.अपण शब्दकोश तै बडोनो तै हमते बगत बगत पर गौ का दाना स्यांनो से बातचित
                 करन च्येंदी.गढ़वाल का अलग क्षेत्रों मा चलन मा अयाँ शब्दों कु प्रयोग हमते अपणा साहित्य मा
                   करन चयेंद.
भी.कु: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?उमेश चमोला :हाँ,हिन्दी की पत्र-पत्रिकों मा छ्प्यां आलोचनात्मक लेख पढ्नो मिलि जांदा.
भी.कु: गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?उमेश चमोला :हाँसमालोचना कविता का रूप तै निखार देन्दी.समालोचना से रचनाकार तै यु पता लगुदु की
            तैकि रचना कै स्तरे छन अर अगने क्या कन चयेंदगढ़वाली मा अभि समालोचना पर काम कने जर्वत  
              छ.
भी.कु: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? 
उमेश चमोला : कबि कबार जबरि गैर हिन्दी भाषों कि क्वी कितबी मिलि जांदी या तौंकी हिन्दी या अंग्रेजी मा
               टीका मिलि जांदी त गैर हिन्दी भाषों का साहित्य का मिजाजो पता चलि जांदू.
भी.कु : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप? 
उमेश चमोला : ये बारा मा मी क्वी खास जतन नि करदू.कबि अंग्रेजी मा लिख्युं क्वी आलेख पढ्नो मिलि
              जांदू त जानकारी भी मिलि जान्दी.
भी.कु: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां याआप यां से बेफिक्र
             रौंदवां 
उमेश चमोला :भैर देसों ,गैर अंग्रेजी क वर्तमान साहित्य का बारा मा कबि इन्टरनेट से जानकारी ली देन्दु.कबि
             योकि हिदी मा टीका मिली त ये से भी पता चलि जांदू.
भी.कु:      भी.कु -आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?उमेश :   उमेश चमोला -जिज्ञासावश ढोल,दमों अर बीनू बाजु थ्वडा-थ्वडा.



Thanking You . 
Jaspur Ka Kukreti 

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