Modern Garhwali Verses Songs, Poems
जिन्दगी बस्गयाळ सि ह्वेगे। (गढ़वाली कविता )
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रचना -- रमाकांत ध्यानी 'आर के' (गोम, नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल )
रचना -- रमाकांत ध्यानी 'आर के' (गोम, नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल )
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Poetry by - Ramakant Dhyani -
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry –
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साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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अब त जिन्दगी भी यख बस्गयाळ सि ह्वेगे।
जखि-कखि फुट्यां छुयोँ सि बेमतलब की ह्वेगे।।
जखि-कखि फुट्यां छुयोँ सि बेमतलब की ह्वेगे।।
टपराणु छौ ज्यू चोळी सी तब य गौळी तिसलि रैगे।
अब बोगणि आमणगंगा जब जिकुड़ी बिज्वाड़ सुखि गे।।
अब बोगणि आमणगंगा जब जिकुड़ी बिज्वाड़ सुखि गे।।
उडंदा छीटा भी हर्ची, रूड़ी क कदगे औडल चलि गे।
अब हुयूँ तरपराट,जब पटलछाण कूड़ी भी लैंटरदार ह्वेगे।।
अब हुयूँ तरपराट,जब पटलछाण कूड़ी भी लैंटरदार ह्वेगे।।
Poetry copyright @Ramakant Dhyani
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