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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, July 10, 2017

जिन्दगी बस्गयाळ सि ह्वेगे।

Modern Garhwali Verses  Songs,     Poems  

जिन्दगी बस्गयाळ सि ह्वेगे।  (गढ़वाली कविता )
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रचना --   रमाकांत ध्यानी 'आर के' (गोम, नैनीडांडा, पौड़ी गढ़वाल )
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Poetry  by - Ramakant Dhyani -
Critical and Chronological History of Modern Garhwali (Asian) Poetry – 
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साहित्य इतिहास , इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
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अब त जिन्दगी भी यख बस्गयाळ सि ह्वेगे।
जखि-कखि फुट्यां छुयोँ सि बेमतलब की ह्वेगे।।
टपराणु छौ ज्यू चोळी सी तब य गौळी तिसलि रैगे।
अब बोगणि आमणगंगा जब जिकुड़ी बिज्वाड़ सुखि गे।।
उडंदा छीटा भी हर्ची, रूड़ी क कदगे औडल चलि गे।
अब हुयूँ तरपराट,जब पटलछाण कूड़ी भी लैंटरदार ह्वेगे।।
Poetry copyright  @Ramakant Dhyani 

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