Administration of Greek Indian King Menander/Milinda in context HistoryHaridwar, History Bijnor, History Saharanpur
हिन्द-यवन राजा मेनान्द्र/Menander/मिलिंद का प्रशासन
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 116
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 116
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
मेनान्द्र/Menander/मिलिंद राज्य में समकालीन हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
राजतरंगणी
कनिंघम , क्वेसन्स ऑफ एन्सिएंट इंडिया
*Polibius, The Histories, Book XI, Chapter 34, vol -1
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 5/5/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 116
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 116
बौद्ध साहित्य ''मिलिंद पन्हा' में यवन राजा मेनान्द्र/Menander/मिलिंदकी प्रशसा की गयी है। 'मिलिंद पन्हा' व यूनानी साहित्य में मेनान्द्र/Menander/मिलिंदको न्यायप्रिय व दार्शनिक शासक बताया गया है। मेनान्द्र/Menander/मिलिंद नदार्शनिक प्रश्नो का उत्तर देने में कुशल था। एक बार वह प्रश्न उत्तर नही दे स्का तो वह बौद्ध विद्वान थेर नागसेन के पास गया और थेर नागसेन ने उन प्रश्नो का निवारण किया। मेनान्द्र/Menander/मिलिंद बौद्ध धर्म स्वीकार किया। मिलिंद पन्हा में लिखा है की वृद्ध होने पर मेनान्द्र/Menander/मिलिंदने अपना साम्राज्य पर को सौंपकर प्रवाजी बन गया व प्रवाजी के रूप में निर्वाण प्राप्त किया। उसे मृत्यु से पूर्व अर्हत पद प्राप्त हो गया था।
मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके परवर्ती यवन शासक
मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके उत्तराधिकारी उसके समान उदार न थे अपितु अति स्वार्थी थे व भारत के संस्कृति विरुद्ध व्यवहार करते थे। लूटमार , व्यभिचार , स्त्रियों -बच्चों पर अत्याचार , आपस में झगड़ा के आदि थे। सदा दूसरों की स्त्रियों को छीनने वाले , गोवध को सदा तयार रहते थे । इससे उनका कुछ समय पश्चात ही विनाश हो गया।मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके परवर्ती यवन शासक
मेनान्द्र/Menander/मिलिंद राज्य में समकालीन हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर
87 -165 AD विद्यमान विद्वान ताल्मी (मोतीचन्द्र के अनुसार ) ने यवन नरेशों के बारे में जो सुचना दी हैं उनमे कुलिंदराइन याने कुलिंद जनपद का उल्लेख किया है। व्यास , सतलज , यमुना , गंगा की उपत्यका में कुलिंदराइन जाती बसी थी (खस ) .
बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का कितना भाग मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके राज्य में था अनुमान लगाना कठिन है।
कांगड़ा जिले में यवन नरेश अपोलदत्त II व कुलिंदनरेश अमोघभूति के सिक्के मिलने से अनुमान लगाया जा सकता है कि कुलिंदनरेश अमोघभूति ने कुलिंद क्षेत्र को यवन राज्य से मुक्त किया था।
मेनान्द्र/Menander/मिलिंद का पश्चमी भारत के बंदरगाहों उत्तर पश्चिम की व्यापारिक मंडियों पर अधिकार होने से निर्यात -आयात व्यापर बढ़ा। अतः मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके राजयकाल में हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में अवश्य ही व्यापार वृद्धि हुयी होगी।
मेनान्द्र/Menander/मिलिंद का पश्चमी भारत के बंदरगाहों उत्तर पश्चिम की व्यापारिक मंडियों पर अधिकार होने से निर्यात -आयात व्यापर बढ़ा। अतः मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके राजयकाल में हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में अवश्य ही व्यापार वृद्धि हुयी होगी।
सियालकोट से साकेत तक के हाइवे के मध्य स्रुघ्न , कालकूट , भाभर , गोविषाण शहर आते थे अतः व्यापारिक विकास हुआ होगा।
राहुल व अल बरुनी जैसे इतिहासकार सहारनपुर , हरिद्वार का निकटवर क्षेत्र -जौनसार लोगों का संबंध यवनों से जोड़ते हैं जिसका अर्थ है कि मेनान्द्र/Menander/मिलिंदके समय यवनों का बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर पर भी प्रभाव था।
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
राजतरंगणी
कनिंघम , क्वेसन्स ऑफ एन्सिएंट इंडिया
*Polibius, The Histories, Book XI, Chapter 34, vol -1
Pantjali, Mahabhashya
Dr J.N.Benarji
D. C Sarkar Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 5/5/2015
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