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Wednesday, May 20, 2015

संस्कृत काव्य टीकाकार वाणी विलास डबराल

Sanskrit Scholars- Commentator  from Garhwal 

संस्कृत काव्य  टीकाकार वाणी विलास डबराल 


(गंगासलाण के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान श्रृंखला -7    )
        इंटरनेट प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
तिमली , डबराल स्यूं के स्व वाणी विलास को आम आदमी प्रख्यार व्यास के नाम से अधिक जानता है।  गंगासलाण में आज किसी भी भागवत वाची व्यास की तुलना करनी हो तो लोब वाणी विलास डबराल के साथ करते हैं।  किन्तु संस्कृत साहित्य में वाणी विलास डबराल को सम्मानित टीकाकार की दृष्टि से देखा जाता है। 
स्व वाणी विलास का जन्म तिमली , डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल में  संस्कृत विद्वान श्री सदानंद के घर 25 अक्टूबर 1899 को हुआ। 1920 में वाणी विलास ने शास्त्री की परीक्षा लाहोर से उत्तीर्ण की। तदनन्तर धार्मिक प्रवचन को अपना व्यवसाय बना लिया था।  
वाणी विलास को  अपने पिता सदानंद डबराल कृत रचित 'श्रीनारायणीयम् काव्यं ' की संस्कृत टीका के लिए जाना जाता है।  यह टीका 'दिग्दर्षनी ' नाम से प्रकाशित हुयी है। 
वाणी विलास ने लिखने से पूर्व गुरचरण द्वय का स्मरण किया। 
इस टीका में सब्दार्थ के साथ अभिप्राय , समास , विग्रह तथा पर्यायवाची शब्दों द्वारा काव्य की व्याख्या सरल शब्दों में की गयी है। 
कविता में सर्ग वृत , अलंकार , रस , ध्वनि का यथार्थ प्रतिपादन आदि के बारे में बताया गया। 
संस्कृत व्याख्या की दृष्टि से 'दिग्दर्शनी ' टीका उत्तम टीका मानी गयी है। 

**** डा प्रेम दत्त चमोली की गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन page 389 से साभार

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