The Sungas in context Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में शुंग साम्राज्य
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 117
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 117
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
पुष्यमित्र [185 -149 BC ]
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 6/5/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
Sungas & Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & AncientHistory of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas& Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas& Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Sungas & History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Bijnor; Ancient History of Nazibabad Bijnor ; Sungas & Ancient History of Saharanpur;Sungas & Ancient History of Nakur , Saharanpur; Sungas & Ancient History of Deoband, Saharanpur; Sungas & Ancient History of Badhsharbaugh , Saharanpur; Sungas & Ancient Saharanpur History, Sungas & Ancient Bijnor History;
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, History Saharanpur Part - 117
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 117
शुंग साम्राज्य [185 -73 BC ]
शुंग साम्राज्य के उत्थान में कई सिद्धांत माने हैं। पाणिनि शुंग ब्राह्मण भारद्वाज का वंशज बताते हैं तो दिव्यावदन शुंग राजाओं को मौर्य परिवार का बताता है। कालिदास उन्हें बैम्बिका परिवार का बताते हैं।
बृहद्रथ की हत्या -यवन आक्रमण से मौर्य साम्राज्य नष्ट हो गयी थी। यवन सेना का गांधार से पाटलिपुत्र पंहुचने का अर्थ ही कि मौर्य साम्राज्य नाममात्र का साम्राज्य रह चुका है।
कालिदास साहित्य से मालूम होता है कि मौर्य राजधानी में दो दल थे।
एक दल प्रमुख मौर्य सेनापति पुष्यमित्र था जिसने अपने पुत्र को विदिशा का प्रमुख बना दिया था। दुसरा आमात्य जिसने अपने संबंधी यज्ञसेन को विदर्भ का सामंत या राजप्रतिनिधि बना डाला था।
पुराणो से विदित होता है कि मौर्य राजा वृहद्रथ को उसीके सेनापति पुष्यमित्र ने मार डाला और गद्दी हासिल की। मौर्य नरेशों धर्म [बौद्ध ] धर्म में अधिक थी और सैन्य रक्षा विकास में कम थी। अतः रूठे सैनिकों ने पुष्यमित्र का समर्थन किया।
विदर्भ विजय - पुष्यमित्र के मौर्य नरेश वृहद्रथ हत्या होते ही यज्ञसेन ने पाटलिपुत्र आमात्य के संकेत पर अपने को विदर्भ का स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया था। मौर्य आमात्य भी विदर्भ की ओर चल पड़ा। पुष्यमित्र को यह आशंका पहले से थी।
पुष्यमित्र के पुत्र , विदिशा प्रतिनिधि अग्निमित्र ने मौर्य आमात्य को बंदी बना डाला।
अग्निमित्र ने यज्ञसेन चचेरे भाई माधवसेन साथ मिला लिया। माधवसेन ने अपनी बहिन का विवाह अग्निमित्र के साथ करने का निर्णय लिया। माधवसेन जब अपनी बहिन को विदिशा की ओर ला रहा था तो यज्ञसेन ने माधवसेन को बंदी बना डाला। यज्ञसेन ने शर्त रखी कि माधवसेन को तभी मुक्त किया जाएगा जब बदले में मौर्य आमात्य को छोड़ा जाएगा।
अग्निमित्र यज्ञसेन की शर्त न मानते हुए अपनी सेना विदर्भ भेज दी और विदर्भ पर अधिकार कर लिया। अग्निमित्र ने विदर्भ को विभाजित कर दो भागों में विभक्त कर दिया। यज्ञसेन व माधवसेन को अलग अलग प्रदेशों स्थानिक बना लिया।
पाटलिपुत्र अन्य उच्च पदासीन भी शासन को अपने हाथ में लेने को आतुर रहे होंगे अतः पुष्यमित्र को मगध , विदिशा , विदर्भ में अपनी सत्ता जमाने में कुछ समय लगा ही। होगा और इसके पश्चात यवन राज को भगाने , मध्य देस को जीतने की योजना बनी होगी।
** संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल - मध्यएशिया का इतिहास
Harshacharit
Mahabhashya
Therivali of Merutunga a jain Writer
Mlavaikagnimitram of Kalidas
Ray Chaudhari, Political History of Ancient India
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 6/5/2015
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
Sungas & Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & AncientHistory of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas &Ancient History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas& Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Sungas& Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Sungas & History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Sungas & Ancient History of Bijnor; Ancient History of Nazibabad Bijnor ; Sungas & Ancient History of Saharanpur;Sungas & Ancient History of Nakur , Saharanpur; Sungas & Ancient History of Deoband, Saharanpur; Sungas & Ancient History of Badhsharbaugh , Saharanpur; Sungas & Ancient Saharanpur History, Sungas & Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा , हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना , बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments