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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, February 7, 2013

खिर्सू , एक समृद्ध हनीमून पर्यटन स्थल!


 डा . बलबीर सिंह रावत



एक पुरानी धारणा रही है की नवविवाहित जोड़ा एक साल तक रोमांच के आकाश में उड़न भरने का समय चाहता है। तब मुख्यत: ग्रामीण परिवेश होता था , संयुक्त परिवार होते थे, सब हर समय एक दुसरे की नज़रों में रहते थे, तो कुछ पल , अकेले में मिलने के लिए खोजने का रोमांच ही अलग होता थ। धीरे धीरे एक दुसरे को समझने का, तालमेल बिठाने का, सहायक बनने का, पूरक बन पाने का सिलसिला चलता रहता था। तब जीवन की गति इतनी तेज नहीं थी। न ही अकेले कहीं जा कर कुछ सप्ताह बिताने की इच्छा होती थी, न चलन होता था और न ही धन। कब साल बीत गया पता भी नहीं चलता था और नव दम्पति होने का रोमाँच समाप्त हो चुका होता था।

समय बदला, संयुक्त परिवार बिखरे, शहरी सभ्यता से परिचय हुआ, वैश्विक हवा चलने लगी, वेतन पाने के चलन और बढ़ती आय , और व्यस्त जीवन शैली ने "मधु मास " का चलन शुरू कर दिया। इसी चलन के कारण पर्यटन उद्द्योग में एक नया आयाम जुडा और खोज हुयी ऐसे रमणीक स्थानों की जहां प्रकृति ने अपनी नाना प्रकार की सुन्दरता से रोमांचित हो जाने के बिरल गुण एक ही स्थान पर दिए हों। इसी प्रकार का एक स्थान है खिर्सू . खिर्सू उत्तराखंड के पौड़ी मंडल में, पौड़ी शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बसा है। गढ़वाल के शुरू शुरू के इने गिने रेजिडेंसल मिडल (जूनियर हाई स्कूल) स्कूलों में से एक, अन्ग्रेजौं के जमाने में बना था . आज यह स्कूल एक कोलेज है।

खिर्सू जिस तरह लम्बे फैले हिमाच्छादित हिमालय की ख़ूबसूरती का पनोरामा दर्शक के सामने लाता है, ऐसे स्थानं पूरे मध्य हिमालय में बहुत कम हैं। लगभग 1,700 मीटर ऊचाई पर बसा यह साफ़ सुथरा
कस्बा उन सारी सुभिधाओं से लैस है जो एक आगंतुक अतिथि को चाहियं। यहाँ पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का डाक बंगला है जिसमे 600/- से ले कर 1400/- प्रतिदिन के हिसाब इसे कमरे ओन लाइन लिए जा सकतें हैं। अच्छे भोजन की भी व्यवस्था है। और सब से अच्छा है इसकी साफ़ सुथरी, हरे भरे पेड़ों की कतारों के बीच पक्की सुनसान सड़कें, जिनमें अकेले पैदल चलने का आनंद और कहीं नहीं मिल सकता, जगह जगह छोटी छोटी झाड़ियों के झुरमुट,हल्की ढलानों वाले हरे भरे खुले क्षेत्र, सामने बर्फीली चोटियों के अभिराम लुभाने वाले दृश्य, एक शुष्क ह्रदय में भी रोमांस का रोमांच भरने की शक्ति रखते हैं ।

देश के मैदानी शहरों से इतने नजदीक बसा यह स्थान किसी ऐसे मसीहा की प्रतीक्षा में है जो इसेहनी मून पर्यटन स्थल में रूपांतरित कर दे। इसके लिए निम्न सुझाव हैं

1. उचित, हवादार . धूप और खुले स्थानों पर दम्पति कुटीर-झुण्ड, हर कुटीर में एक सजा हुआ कमरा, बरामदा , रसोई, स्नान घर चलता पानी, बिजली,की विश्वसनीय व्यवस्था हो। एक झुण्ड में 10 के लगभग कुटीर हों, जो बांस की या अन्य मजबूत सामग्री से बनी हों। 10 कारों, मोटर सायकलों की पार्किंग व्यवस्था हो, कुटीर गोला कार बृत में हों और बीच में सांझा मिलन स्थल हो, खुले आकाश के नीछे 300-400 मीटर की दूरियों पर ऐसे कई कुटीर-पुंज बनाने की सुविधा हो जहां पर मांग बढ़ने के साथ साथ अन्य पुंज भी बनाने की व्यवस्था, शुरू से ही सुनिश्चित करने के लिएखिर्सू पर्यटन विकास समिति का गठन किया जा सकता है जो किसी लैंड स्केप प्लानर से एक प्लान तैयार करा सके . यह काम विकास निगम या पंचायत या दोनों मिल कर कर सकते हैं। क्षेत्र के प्रवासी भी जोड़े जा सकते हैं।

2- पौड़ी गढ़वाल पर्यटन बैंक खोला जाय जो प्रवासियों के निवेश हेतु कार्यरत भी हो

3. इन कुटीरों को बनाने संचालित करने के लिए स्थानीय युवाओं और प्रवासी लोगों को आमंत्रित करके, उन्हें, प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता, ऋण ,इत्यादि की आरम्भिक प्रोत्साहन व्यवस्था होनी चाहिए।

4. इस हनी मून पर्यटन स्थल का हर प्रकार के मीडिया में जोरशोर से प्रचार करने से ही स्थायी लाभ होगा . .
5. किसी भी व्यवसाय को लम्बे समय तक फलता फूलता बनाए रखने के लिए उत्कृष्ट सेवा दे कर एक ऐसी प्रतिष्ठा अर्जित करना ही उद्धेश्य हो तो, फिर जो एक बार आये वे ही व्यवसाय के सबसे प्रभावशाली प्रचारक बन जांय , यह मूल मन्त्र जिसने याद रखा वोह ही सफल हुआ।

6'. हर पुंज स्थल पर, और जगह जगह नाना प्रकार के रंग बिरंगे फूलों की क्यारियाँ हों, छाया में बैठ कर एकांत में गपशप करने के कुञ्ज हों , हो सके तो तैराकी के लिए एक पूल भी हो, तो स्थल अबिस्म्र्नीय हो जाएगा।

7. आख़िरी सुझाव, एक शोपिंग सेंटर हो जहां पर उत्तराखंड के हस्तशिल्प, उद्द्योग और सीन सीनारियों के प्रतीक मेमंटो बिक्री के लिए हों, इन्टरनेट वाला कम्पुटर किराए पर मिल सके और किराए पर, कैमरे, ऊनी कम्बल, जैकेट इत्यादि उपलब्ध हों . और बिदाई के समय हर जोड़े को कुछ यादगार भेंट देने का चलन हो, नहीं तो कुछ फूल ही सही। आत्मीयता ही हनी मून पर्यटन की जान है।

8- स्थानीय लोक संगीत, लोक नृत्य व अन्य लुभावने भौतिक सुविधाओं का होना लाजमी है 
अब अंत में GMVN को एक अमूल्य , बिना मुल्य की सलाह, : क्रपया अपनी वेब साईटों में स्थानों की ख़ूबसूरती , खूबी और आकर्षणों की ऐसी तस्वीरें, वर्णन , और सूचनाये दीजिये, नक्शों सहित की डाउन लोड करके, पर्यटक सीधे अपनी गाडी में बैठे और आपके नक़्शे के सहारे सीधे गंतव्य तक पहुँच जाय। GPS का ज़माना मोबाइल में भी आज्ञा है। लगना चाहिए की निगम एक अच्छा मेज्मान है, नाकि कोरा व्यवसाई जिसे अपने किराए के अलावा और किसी चीज से कोइ मतलब ही नहीं है। प्रचार,आकर्षक सेवा, लगाव की उष्णता देने वाला व्यवहार ही किसी भी प्रकार के पर्यटन की सफलता की कुंजी है। , , ,

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