गढ़वाली हास्य-व्यंग्य
सौज सौजम मजाक-मसखरी
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
(s =आधी अ )
मै लगुद बल गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) आखर इम्पोर्टेड शब्द च। किलैकि भारतम त गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) केवल बामण इ बौण सकद छा अर हौरि जात्युं लोग गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणणो कोशिस करदा छा त वूं तैं जातिभैर करे जांदो छौ।
जख तलक अंग्रेजूं सवाल च गुदलखोर माने जो बुद्धि से जीविका कमाओ पण हमर इख गुदलखोर माने जू दूसरों मगज खाऊ या जू दुसरो गुदल चाटदु या दुसरो दिमागों ऐसी तैसी करदो।
उन हरेक युगम गुदलखोर बणणो लतखोर हून्दन। अब जब मि पढ़दो छौ त गुदलखोर लोग लम्बो कुरता अर सुलार पैरदा छा अर बीड़ी सुट्टा लगांदा छा। चूंकि सरकारी नौकरी करदा छा त ऊं तैं ना त ऑफिसम कुछ करण पोड़द छौ ना हि समाजम ऊंकुण कुछ काम हूंदो छौ। वै टैम परक गुदलखोर बैं हथन हि पाणि चयेन्द ( सूचि करण ) छा, बैं इ हथन खाणक खांदा छा अर बौंहड़ ही सींदा छा। यूं पर नग्यलु-नागराजा-नरसिंग-कैंतुरा दिवता नि आंदो छौ बल्कणम कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओत्से तुंग को रण भूत लगदो छौ अर घड्यळम जगरी बामपंथी कथों जागर लगांदा छा। जु बामपंथी बुद्धिजीवी किसाण हूंदा छा वो हमेशा दें पाळि बल्द तै सोट्यूंन चुटदो छौ अर गऴया से गऴया बैं पाळि बल्द तैं कबि बि नि पिटदो छौ।
वै बगत एक दें हमर गांमा एक जजमान नौनु पर गुदुलखोर बणनो बिगरौ लग अर एक गुरुन वै तैं बथै बल केवल गुदुल खाया कौर। अब जब भि गांमा पूजा क बान बखर या ढिबर कटे जावन तो वो बुद्धिजीवी बणनो ख्वावी मुंडळि (शिरिण) की राड़ घाळि द्यावो। अब बथावदि जैं मुंडळि पर हजारों साल बिटेन सामाजिक अधिकार ह्वावो वीं मुंडळि पर क्वी राजपूत अधिकार जमाणों कोशिस कारल तो क्या ह्वे सकुद छौ? वै राजपूत तैं गाँव से शहर भजण पोड़ अर फिर एक होटलम काम करण पोड़ चूंकि वै तैं गुदुल से प्रेम छौ त होटल मालिकन वै तैं शिकार (मटन) बणाणो जुमेवारी दे द्यायि अर आज वो गुदुलखोर प्रेमी प्रसिद्ध नौन वेज स्यफ च।
मि जब पढै खतम करिक दिल्ली औं त में फर बि गुदुलखोर बणनो भूत लग अर गुरूजी सलाह से इंडिया कॉफ़ी हाउस जाण बिस्यो। उख पता चौल बल गुदुलखोर बणणो बान खाणक नि खाण बल्कणम दिन भर चाय या काफी पीण चयेंद अर बामपंथी विचार लाणो बान सिगरेट पीण जरुरी च अर अति वामपंथी विचारों बान विदेशी ना सै देसी दारु जरूरी च। मीन दिन भर बीस कप चाय , चालीस सिगरेट अर रत्यां दारु पीण शुरू कार। आज मि शत प्रतिशत कैपिटिलिस्ट छौं पण म्यार दिन भर बीस कप चाय , चालीस सिगरेट अर रत्यां दारु पीण बंद नि ह्वे अर गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणणो चक्करमा मि लतखोर या व्यसनी ह्वे ग्यों।
मि जब मुंबई औं त गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणनो भूत नि भाज। इख मुंबईम सरकारी नौकरी नि मील त मि तैं कामगति गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणण पोड़ याने प्राइवेट कंपनीम नौकरी करण पोड़। गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणनो चक्करम मि महान गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) कमलेश्वरs संपर्क मा औं अर मि मातबर याने धनी लोगुं तैं गाळि दीण मिसे ग्यों। कमलेश्वर टाइम्स ऑफ इंडियामा नौकरि करदा छा , बड़ी तखा, बड़ी सहूलियत पण अपण कथाकार भक्तों कुण बुल्दा छा कि कथौंम सेठ, मातवरों तै खूब गाळी द्यायो अरकहानी मा आम आदमी की बात कौरिक 'सारिका ' पत्रिका तैं आम आदमी को पढ़ण लैक नि रण द्यावो। मी पर बि आम आदमी से लाड प्यार को लत लगी गे अर मि अपण सेल्स कौन्फेरेंन्सुं माँ अपण सेठक समणी कैप्टिलिज्म तै खूब गाळी दीण लगि ग्यों अर मि तैं नौकरी छुड़ण पोड़ अर उना सारिका पत्रिका सडकोम बिकण बंद ह्वे त कमलेश्वर तै बि नौकरि छुड़ण पोड़। मि नि जाणदो कि टाइम्स इंडिया छुड़णो बाद कमलेश्वर बामपंथी इ रैन कि ना पण मि दक्षिण पंथी ह्वे ग्यों। जु म्यार दगड्या गां मा गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) किसाण छा वूंन अब दें पाळि बल्द तै पिटण छोड़िक बैं दें पाळि बल्द तै चुटण शुरू करी दे छौ।
मै पर गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) बणनों बिगरौ नि गे अर सामयिक गुदुलखोर (बुद्धिजीवी ) गुरु का बुलण से मि अब आम आदमी तै निस्क्रिष्ठ बुलदो अर खुलेआम लिखदो कि आम आदिमो तैं सब्सिडी दीण से ही भारत की आर्थिक दशा खराब होणि च। म्यार बुलण च बल जब तलक यी आम आदमी इंडियाम बच्यां राल तब तलक इंडिया मा इकोनोमिक रिवोल्युसन नि ह्वे सकुद। मि सामयिक गुदुलखोरूं (बुद्धिजीव्युं ) तरां अंबानी, जिंदल जन धन्ना सेठों आर्थिक गुनाहूं तै आर्थिक विकास की सीढ़ी बथांदु, उद्योग पत्युं भ्रष्ट तरीकों तै विकास को विटामिन बथांदु, उद्योग पत्युं द्वारा राजनैतिक लाभ तैं विकासs बान गति वृद्धि को ख़ास लीवर बथान्दु अर बेशर्मी से वकालत करदो कि जै प्रदेसम भ्रष्टाचार नी च वै प्रदेसम आर्थिक विकास नि ह्वे सकुद अर यांक बान मि पश्चिम बंगाल कु उदाहरण दॆन्दु कि चूँकि बामपंथी राज्नैतिग्य भर्स्ट नीयत का नी छया त वुख विकास नि ह्वे। अब मि सामयिक गुदुलखोरूं (बुद्धिजीव्युं ) तरां घूसखोरी, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार, मंहगाई , तैं विकास हेतु आवश्यक दवा माणदु। विकास हेतु भ्रष्ट समाज की वकालत करण ही अब गुदुलखोर (बुद्धिजीवी) की पछ्याणक बणि गे।
Copyright@ Bhishma Kukreti 28 /2/2013
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