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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, February 26, 2013

युधिष्ठरो राजम कुलिंदवास्युं (उत्तराखंड्यु ) रथ-पथ की आस


गढ़वाली हास्य-व्यंग्य
सौज सौजम मजाक-मसखरी
हौंस इ हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                                  युधिष्ठरो राजम कुलिंदवास्युं (उत्तराखंड्यु ) रथ-पथ की आस
                                                          चबोड़्या-चखन्यौर्या: भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ )
भारद्वाज ऋषि आवा-आवा बुढ़देव जी!
नारद- ऋषिश्रेष्ठ! तुमार पर्वत क्षेत्र वाळुन मि तै कुज्याण किलै नारद से बुढ़देव नाम दे द्यायि धौं। सरा जम्बूद्वीपम मेखुण नारद बुल्दन पण तुमर तामस( टोंस नदी उपत्यका),, कालकूट (देहरादून),तंगण (उत्तरकाशी-चमोली ), भारद्वाज (टिहरी एवं पौड़ी गढ़वाल),रंकु (पिथौरागढ़), गोविषाण (अल्मोड़ा-नैनीताल ) अर गंगा द्वार (हरिद्वार)वळ सबि मेखुण बुढ़देव किलै बुल्दन?

भारद्वाज- हम पर्वतीय जन आदर दीणम कंजूस नि छंवा अब तुम सरीखा सूचना /रैबार दींदेर तैं मैदानी हिसाब से घ्यू नि दे सकदवां त हे ऋषिश्रेष्ठ हम कुलिन्दवासी (उत्तराखंड) तुम तै बुजुर्ग दिबता बोलि सकदवां कि ना?
बुढ़देव- हां भई पर्वतीय जन जो बि बुल्दन वो दिल से बोल्दन।
भारद्वाज- ऋषिश्रेष्ठ! आज कना बिटेन आणा छंवां?

बुढ़देव- भारद्वाज जी! मि चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठर की राजधानी से आणु छौं।
भारद्वाज- चक्रवर्ती सम्राट तन-मन से कुशल छन? क्या अपण भारतम जन सेवावों अभियान चलाणा छन कि ना? किलैकि कुरुक्षेत्रजुधम अधिकाँश राजाओंन युधिष्ठर को समर्थन इ इलै कौर छौ कि युधिष्ठर सरा जम्बूद्वीप तैं एक आंखन द्याखाल।हालांकि विचित्र अर विशिष्ठ दुर्योधन महाराज प्रशासन को मामला मा कै बि तरां धर्मराज युधिष्ठर से कम नि छौ।

बुढ़देव- हां छवि को ही कमाल च बल विचित्र अर विशिष्ठ दुर्योधन महाराज प्रशासन को मामला मा कै बि तरां धर्मराज युधिष्ठर से कम नि छौ। पण छवि को मामला मा युधिष्ठर दुर्योधन से भौत अग्वाड़ी रैन अर भारत का अधिसंख्य राजाओंन भले ही सैनिक दुर्योधन की सेना मा भेजिन पण दिल से वो लोग युधिष्ठर का दगड़ रैन अर निर्णायक समय पर सब्युंन युधिष्ठर को ही दगुड़ दे।
भारद्वाज- हां त हे सूचना वेग सारथी! महाराज युधिष्ठर जन कल्याण का कार्य छवि अनुसार ही करना छन की ना?
बुढ़देव- हां अबि एक सप्ताह पैलि चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठर क राजदरबारम रथ-पथ योजनाओं वास्ता धन आबंटन ह्वे .
भारद्वाज- अत उत्तम! अति उत्तम! जरा बतावा त सै कि सम्राट युधिष्ठर को राजम रथ-पथ-धन को कनो आबंटन ह्वे।
बुढ़देव- यद्यपि महाराज दुर्योधन अब यीं दुन्या मा नि छन पण ऊंका प्रशंसक त कम नि ह्वेन तो महाराज दुर्योधन का प्रशंसकों क गणत, सम्राट युधिष्ठर का आजौ प्रशंसकों अर चक्रवर्ती युधिष्ठर का सम्भावित प्रशंसकों गणत का हिसाबन समस्त भारतम रथ-पथ को धन आबंटन ह्वे।

भारद्वाज- जरा बिन्गाओ त सै, समझाओ त सै कि रथ-पथ विकास का वास्ता धन आबंटन कनों ह्वाई?
बुढ़देव- जख जख सम्राट युधिष्ठर का प्रशंसक अधिक मात्रामा छन उख उख तो रथ -पथ का वास्ता धन आबंटन की अंदा दुंद बरखा ह्वे, इख तलक कि यूं जगाओं मा रथ निर्माण का सैकड़ो अणसाळ खोले जाला।

भारद्वाज- चाहे सहृदय या कुटिल क्वी बि राजा ह्वावो वो अपण प्रशंसकों पैल ख्याल रखदो इ च। जरा अग्वाड़ी बथावो कि क्या ह्वाइ?
बुढ़देव- फिर राजा भीमसेन द्वारा संरक्षित क्षेत्र को बडो ध्यान रखे गे अर राजा भीमसेन द्वारा संरक्षित क्षेत्र तैं बि अगल्यार दिए गे।
भारद्वाज - हां , यो तो सम्भावित ही छौ बल राजा भीमसेन द्वारा संरक्षित क्षेत्र की क्वी अणदेखि नि कौर सकुद। फिर ?
बुढ़देव- चूँकि राजा अर्जुन कुरु बंशी देस आंतरिक सुरक्षा का जिम्मेदार छन तो यो दिखे गे कि जो बि क्षेत्र राजा अर्जुन तैं प्यारा लगदन उख रथ-पथ धन आबंटन मा कमि नि ह्वावो।

भारद्वाज- वाह! सम्राट क्वी बि ह्वावो जन कल्याण नीति सम्राट का खास आदमियों देखिक इ बणदि। महाराजा दुर्योधन का राजम रथ-पथ योजना राजा दुशासन, राज कर्ण अर राजा शकुनी का प्रशसकों तै देखिक बणदि छे। और कुछ?
बुढ़देव- हाँ फिर जो बि योजना धन बचि गे छौ ओ राजा नकुल, राज सहदेव की इच्छा अर महारानी द्रौपदी की इच्छा अनुसार आबंटित करे गे।

भारद्वाज- वेदज्ञानी श्रेष्ठ! यांक मतबल च बल सम्राट , राजा क्वी बि ह्वावो जनकल्याण नीति क्षेत्रीय आवश्यकता का हिसाब से नि बणाये जांदन बल्कणम राजनैतिक लाभ अनुसार हि बणदन।

बुढ़देव- मनु पुत्र! तुम सही तत्व की बात करणा छंवा। महाराजा दुर्योधन को राज मा बि जनकल्याण नीति राजनीति प्रेरित होंदी छे त धर्मराज युधिष्ठर को नौ सालौ राज साक्षी च बल धर्मराज युधिष्ठर की प्रत्येक जन कल्याणी योजना सरासर राजनीति प्रेरित रैन अर रथ-पथ धन आबंटन अर रथ-पथ विकास योजना सम्पूर्ण राजनीति प्रेरित छन। यांको अर्थ च कि नृप क्वी बि ह्वावो नृपता एकी रौंद।
भारद्वाज - तामस( टोंस नदी उपत्यका),, कालकूट (देहरादून),तंगण (उत्तरकाशी-चमोली ), भारद्वाज (टिहरी एवं पौड़ी गढ़वाल),रंकु (पिथौरागढ़), गोविषाण (अल्मोड़ा-नैनीताल ) अर गंगा द्वार (हरिद्वार) का वास्ता बि रथ-पथ धन आबंटन ह्वाइ कि ना?
बुढ़देव- नही कुलश्रेष्ठ ! तामस( टोंस नदी उपत्यका), कालकूट (देहरादून),तंगण (उत्तरकाशी-चमोली ), भारद्वाज (टिहरी एवं पौड़ी गढ़वाल),रंकु (पिथौरागढ़), गोविषाण (अल्मोड़ा-नैनीताल ) अर गंगा द्वार (हरिद्वार) का वास्ता रथ-पथ-विकास वास्ता धन आबंटन नि ह्वाइ।

भारद्वाज- अच्छा तो तामस( टोंस नदी उपत्यका), कालकूट (देहरादून),तंगण (उत्तरकाशी-चमोली ), भारद्वाज (टिहरी एवं पौड़ी गढ़वाल),रंकु (पिथौरागढ़), गोविषाण (अल्मोड़ा-नैनीताल ) अर गंगा द्वार (हरिद्वार) का प्रतिनिध्युंन या बात राजमहल बैठकमा चक्रवर्ती सम्राटका समणि कुलुन्द क्षत्रं रथ-पथ विकास की बात नि उठाई?

बुढ़देव- विद्वानश्रेष्ठ! कुणिन्द या कुलिंद क्षेत्र का प्रतिनिधी कुणिन्द या कुलिंद क्षेत्र को जन कल्याण का वास्ता चिंतित नि दिखेंदन बल्कि यूँ तै यांकि चिंता रौन्दि कि कनै, कई बि तरीका से सम्राट युधिष्ठर या राजा अर्जुन, भीमसेन, नकुल, सहदेव अर महारानी द्रौपदी को अक्षुण आशीर्वाद पाए जावो।

भारद्वाज- ब्रह्मा पुत्र ! जब धर्मराज युधिष्ठर राजकीय भ्रमण पर कुलिंद ऐ छाया तो ऊंन इख कालसीमा कुलिंद वासियों (उत्तराखंड वासी ) तैं हृषिकेश से कर्णप्रयाग तलक आधुनिक रथ-पथ को आश्वासन दे छौ अर तुम बथाणा छंवां कि यीं रथ-पथ- योजना शोध -विचार विमर्श मा उत्तराखंड मा रथ-पथ की क्वी छ्वीं इ नि लगिन!

बुढ़देव- हे ऋषिश्रेष्ठ! मीन बोलि ना! नृप महत्वपूर्ण नि होन्दि नृपता महत्वपूर्ण होंद अर नृपता सामरिक लाभ, सामयिक लाभ अर राजनैतिक लाभ को सेवक होंद।

भारद्वाज - हे! सरस्वती जिव्हा! भविष्य दृष्टा! तुम कुलिंद को भविष्य कै हिसाब से दिखदा?
बुढ़देव- हे ब्रह्म ज्ञानी! जन महाराजा दुर्योधन का राज मा कुलिंद राज (उत्तराखंड) से हर दिन सैकड़ों की संख्या मा कुलिंदवासी दुर्योधन की सेनामा प्रवेश वास्ता हस्तिनापुर जांदा छा वुनि भोळ बि चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठर की सेनामा प्रवेश वास्ता सैकड़ो कुलिंदवासी रोज कुलिंद छोड़िक हस्तिनापुर जाणा राला। अर यो हि हाल अभिमन्यु पुत्र को राज मा भि होलु।
भारद्वाज - महामुनि ! क्या कलियुगमा यीं स्थिति मा क्वी अंतर आलो।

बुढ़देव- नही ऋषिराज! तुम्हारो सहोदर भृगु ऋषि की भृगुसंहिता अनुसार पर्वतीय जल अर पर्वतीय युवाओं का एकी गुण च बल पर्वतीय जल अर पर्वतीय युवा मैदानी धरती जिना ही बौगल।

Copyright@ Bhishma Kukreti 27 /2/2013

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