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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

उत्तराखंड से संस्कृत में फ़ूड रेसिपी

 Food Recipes in  Sanskrit from Uttarakhand 
 Uttarakhand Medical tourism in British Period 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- 16 ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  72
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  72                 
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--  176    उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 176 

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  
  प्रत्येक पर्यटन में भोजन आकर्षण सर्वोपरि होता है।  हम स्थान के बारे में अधिक याद नहीं करते किन्तु स्थान में खाया भोजन व गंध -सुगंध को बहुत देर तक याद करते रहते हैं।  पर्यटन छवि वर्धन स्थान भोजन व भोजन विधि याने फ़ूड रेसिपी पुस्तक प्रकाशन अत्यावश्यकअवयव होता है।
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     राजा सुदर्शन शाह के सभासद पंडित हरि दत्त नौटियाल (जन्म 1766 ?) ने संस्कृत में भोजनावलि: रचकर संस्कृत में फ़ूड रेसिपी साहित्य को अक्षुण रखा। 
        भोजनावलि: में १३२ पद्यावली हैं. इस शास्त्र में दो भाग हैं - प्रथम भाग -शाकान्त व उत्तर भाग में मांस वर्ग का विवेचन है।  
  प्रथम प्रकरण में - फल विवेचना है जिसमे खजूर्रर , नारिकेल , खुद्दरल , सिबिका , निवजा , राजादन , श्रीरसाल , नवनागरंग , कदली फल , सुकंटीक , इक्षुदंड , गौरीफल , श्रीपर्णिका , बीजपूरम , प्रभृति फलों का वर्णन है। 
    डा प्रेम दत्त चमोली अनुसार मिष्ठान प्रकरण में मिष्ठान निर्माण विधि व गुणों का वर्णन है जिसमे मोदक , दुग्धवटी , श्रृंगी।  मिष्टमण्डली का वर्णन है
,घीवर , मुकुंदवाटिका , अपूप , पूरिका , नवनीत , मांसयूष , राजमारस , माषवटी , मुकुंदवटिका , मिष्टोदन , गुलकंद , पर्पटपट , दधिवटक , कदलीफलशाक , वृताकशाक , मूलीयशाक , मेथीपलिंगशाक , शिवचरणकसुशाक , कोशातकीयशाक ,राजकोशातकीयशक , भिनीमालुकशाक , जयंतीकाशाक , मृणालशाक , निष्पाव शाक , पिंडालू आदि पदार्थों के निर्माण विधि व गुणों का आयुर्विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं 
    मांसवर्ग में भी विभिन्न मांश भोजन निर्माण विधि , भक्षण व गुणों पर भरपूर प्रकाश डाला।  
      काव्य में सर्यूळ  ज्ञान -सूद विद्या भरपूर झलकता है।  ह्लगता है पंडित ह्री दत्त नौटियाल ग्यानी व अनुभवी पाक शास्त्री थे।  नौटियाल के  अनुप्रास अलंकार का उपयोग से पाठक को भोज्य रसानुभूति स्वयं हो जाती है।  हरिदत्त नौटियाल ने गढ़वाल में प्रचलित भोज्य पदार्थ झोळी , पळिंग आदि  की भी रेसिपी दी है -
 उच्चैरर्पितसर्पिषा तदुचित दर्व्यैश्च पूर्वचितां 
  पश्च्चाजीरसुगंधितां सुखिहिनां 'झोली ' त्वमङ्गीकुरुं। 
 पंडित हरि  दत्त नौटियाल द्वारा भोजनावलि: कृति रचने के कारण उन का नाम सदा उत्तराखंड पर्यटन इतिहास में अमर रहेगा 

      


Copyright @ Bhishma Kukreti  14/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6 व डा प्रेम दत्त चमोली गढ़वाल की संस्कृत को दें पृष्ठ 128 
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