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Sunday, May 13, 2018

शीलवर्मन का शासित क्षेत्र

History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History from 250-350 AD
 
    Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -
 
 200
                     

                                                हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  200                

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


         शीलवर्मन के इष्टकाल में युगशैल के  अतिरिक्त किसी शासित क्षेत्र का नाम नहीं आया है .  एक ही श्लोक  में दो बार युगशैल आने का अर्थ है युगशैल काल सूचक , व स्थान सूचक भी था। युगशैल को राज्य या राजधानो दोनों माना जा सकता है। शीलवर्मन ने जगतग्राम (यमुना पूर्वी तट ) अश्वमेध यज्ञ सम्पन किया जिसका अर्थ है शीलवर्मन का शासन यमुना तट से पूर्व की ओर दूर दूर तक फैला होगा।  कोई एक दो ग्राम जीतने पर कोई अश्वमेध यज्ञ नहीं करेगा।  युगशैल का अर्थ दो शैल या जोड़ी में पहाड़ भी हो सकता है। याने चार अश्वमेध सम्पन करने वाले शासक का विजिट क्षेत्र लघु हिमालय या  मध्य हिमालय भी हो सकता है।  सहारनपुर का पूर्वी क्षेत्र तो अवश्य ही कालसी या जगतग्राम के अंतर्गत रहा होगा। 
    अनुमान लगाया जा सकता है कि जगतपुर का नाम युगपुर रहा होगा।  
       यदि गोविषाण का मित्र वंश शीलवर्मन का संबंधी या सहभागी था या उसने अश्वमेध में युगशैल को नजराना देना स्वीकार किया हो तो सहारनपुर , हरिद्वार व बिजनौर का भाबर क्षेत्र शीलवर्मन के अंतर्गत रहा होगा।  शीलवर्मन का शासन क्षेत्र अवश्य ही समृद्ध क्षेत्र था। वीरभद्र , ऋषिकेश में प्रथम शताब्दी के समृद्धशाली मृद िनत से बने भवन दीवारें व वाद के पुरात्व अवशेष इस अनुमान को बल देते हैं कि शीलवर्मन का शासन हरिद्वार पर अवश्य था।  
     डा डबराल के पांडुवाला (लालढांग , बहादुराबाद तहसील हरिद्वार ) पुरात्व अवशेष अध्ययन भी इंगित करते हैं कि उस काल में मैदानी भागों में पक्की लाल ईंटो का प्रचलन था व ईंटो पर चित्रकारी की जाती थी पांडुवाला अवशेष अध्ययन बाटते हैं कि भोज्य सामग्री परोसने हेतु कई कायस्थ व धातु उपकरण प्रयोग होते थे।  
     शीलवर्मन काल में शिक्षा का प्रचार संतोषजनक था अन्यथा इष्टका लेख का कोई प्रयोजन न होता। 
      शुंग व कुषाण युग में जनता शैव्य सम्प्रदाय की और झुक गयी थी।  वीरभद्र में चौथी -पांचवीं सदी का शैव्य मंदिर भी यही इंगित करता है।  शुंग काल में गरुड़ आकृति का प्रचलन हो गया था विदेशी राजा भी गुर्द ध्वज उपयोग करते थे।  जगतग्राम में गरुडाक्रिति वलिवेदी से अनुमान लगता है वैष्णव धर्म भी प्रचलित था । 
          शील वर्मन का शासन काल 
 शीलवर्मन का शासन काल समुद्रगुप्त के शासन कल से पहले ही होना चाहिए।  समुद्रगुप्त का शासन काल 340 ई से शुरू होता है और दस वर्ष उसे मध्य देश जीतने में लगे।  अतः शीलवर्मन का शासन काल 340 -350 मध्य माना जा सकता है।  इष्टका लिपि तीसरी सदी की मानी गयी है।  
  रावण , पृथ्वीमित्र , शिवभावानी व शीलवर्मन के मध्य आठ आठ साल का अंतर् होना चाहिए 





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 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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