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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

समुद्रगुप्त शासन में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर

Ancient  Samudra Gupta Gupta Era History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part                      
Ancient   History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Par -206

                               हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 206                 

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
   चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने  जीवनकाल में ही समुद्रगुप्त  (340 -380  ) को योग्यता बल पर राज्य सौंप दिया था। समुद्रगुप्त को मघद व पूर्वी उत्तर प्रदेश का भूभाग मिला था।  समुद्रगुप्त ने मध्य देश जीतकर फिर कामरूप , नेपाल , कर्तृपुर जीता व  अपना साम्राज्य यमुना पूर्व तट तक विस्तार किया।  यमुना पश्चिम में कई गणराज्य थे। कई गणराज्यों पर अधिपत्य जमकर समुद्रगुप्त ने दक्षिण की ओर विश्तार किया।  समुद्रगुप्त कलिंग तक पंहुच गया था। 
 मध्य देश जीतना व यमुना पूर्व तट तक पंहुचने का अर्थ है कि बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर समुद्रगुप्त के आधीन आ गए थे।  
                      समुद्रगुप्त का व्यक्तित्व 
  समुद्रगुप्त महत्वाकांक्षी व्यक्तित्व का स्वामी था जिसके शरीर पर पर युद्ध में दसियों घाव लगे थे। याने समुद्रगुप्त लीडिंग फ्रॉम  फ्रंट में विश्वास करता था. युद्ध अभिलाषी होने के बाद भी सामाजिक हितों का रक्षक था। समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था व कवियों का आदर करता था।  उसके एक मुद्रा में उसे वीणा बजाते दिखाया गया है।  उसकी प्रसस्ति पत्र का कवि महादंडनायक हरिषेण था। 
     दिग्विजय के पश्चात उसने अश्वमेध यज्ञ सम्पन किया जिसमे विजिट राजाओं ने भाग लिया।  अश्वमेध यज्ञ अवसर पर समुद्रगुप्त ने स्वर्ण मुद्राएं प्रचारित की थीं जिनके अग्र भाग में 'राजाधिराज पृथ्वीम वित्वा दिविजयत्याहृत ' व पश्च भाग में 'अश्वमेध पराक्रम: अंकित है। 
           समुद्रगुप्त के प्रशस्ति पत्र व मुद्राओं से पता चलता है कि वः सुखी परिवार का स्वामी था व उसके योग्य पुत्र व योग्य पौत्र थे व सुयोग्य पुतर्वधहुएँ थी। 
        




Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



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