उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Sunday, May 13, 2018

छागलदेश और हरिद्वार , सहारनपुर इतिहास

Ancient Haridwar, Saharanpur and Bijnor History in 250-460 
        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  203                      
   हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    203               

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
            जयदास व उसके बंशजों का हरिद्वार -सहारनपुर इतिहास में स्थान 
          देहरादून जिले में चकरौता से 25 मील  पूर्व में यमुना व मोरदगाज संगम पर एक प्राचीन मंदिर में खंडित शिलालेख मिला है।  रोहिलाओं के विध्वंसकारी कार्यों से कई मूर्तियां व शिलालेख खण्डित  हो गयीं हैं।  प्रशस्ति की पहली , दूसरी , तीसरी , पांचवीं व छटी पंक्ति सुरक्षित हैं चौथी पंक्ति आधी खंडित हो गयी है 
  इसे छागलदेश प्रशस्ति शिलालेख 11 " x 13 " शिला पर अंकित हिन् जिसे चांगलदेश प्रशस्ति नाम दिया गया है यह शिलालेख लोकेश्वर मंदिर जो 12 -13 वीं सदी का बताया जाता है में मिलीं जहां पुरातत्व बिभाग को यहां  5 वीं 6 ठी सदी के छत वाले मंदि र के अवशेस भी मिले हैं जिसकी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं हो सकी है। 
     यह प्रशस्ति छागलदेश या छगलकेतु नामक किसी राजा ने अंकित करवाई हैं। प्रशस्ति का आरंभ 'सिद्धम ' से है -
  सिद्धम। नस्वा , नगेन्द्रतनयां परिहासक (त्रीम )
   (घृत्वा सदा ) पशुपते रतिचारुरूपम (पहली पंक्ति )
  असीत पुरा नरपतिज्जैयदास नामा नामा 
तस्या आत्मज नृपति   .... 
 तस्याद  गुहेश च क्षितिपो वभूव। । 
  तस्माद अभूत अचलेत्यवनीपतीश।  ।  
    ..... .... छागलेशदास। 
रुद्रेशदास इति तत तनयस च जज्ञे। 
तनमांच रूद्रनृपतेश  ........ केतु। ।  
देव्यां अजेश्वर नृपात गुणवान गुणायाम। 
 ... हतभुज्यां अधिपान्जयंता: (दूसरि पंक्ति ) ( यू पी  हिस्टोरिकल सोसाइटी , जुलाई , 1944 , पृष्ठ 83 से 90 ) 
    निम्न नरेशों का वर्णन प्रशस्ति में मिलता है 
नरेश ---------------- उपाधि 
१- जयदास -------------- नरपति 
२- ... ? (तस्य आत्मज  -----नृपति 
३- गुहेश ------------------- क्षिपति 
४- अचल -------------------- अवनीपतीश 
५- ?    ------------------------?
६- छागलेशदास -------------?
७- रुद्रेशदास ------------- नृपतेश 
८-  अजेश्वर , छागलदेश , छागलकेतु --- नृप
  राज्य शासित क्षेत्र 
 यद्यपि पूरी सूचना अभाव में कहना कठिन है किन्तु विश्लेषण से पता लगता है कि कुषाण काल में राजाओं की उपाधि महाराजा , राजतिराज का प्रचलन बढ़ गया था।  अतः  जयदास वंशी नरेश बृहद भूभाग नृप नहीं थे।  हो सकता है इस वंश का शासन जौनसार बाबर , बेहट सहारनपुर निकटवर्ती भाग व पूर्वी हिमाचल तक रहा हो।  उत्तर पश्चिम हरिद्वार भी जयदास वंशजों के आधीन हो भी तर्कपूर्ण है। उत्तरकाशी व बड़ाहाट  संभवतया जयदास वंशजों के ही अधीन था क्योंकि किसी अन्य राजा के वहां पंहुचने का  अर्थ
   होता कि छागलेश वंशी शासक न होते।   
             छागलेश /छागल केतु 
 अंतिम नरेश छागलेश या अजेश्वर था जिसकी पत्नी नाम गुणवती था। छागलेश के पुत्र की तुलना इंद्र पुत्र जयंत से की गयी है।  अगला भाग खंडित हो चूका है अतः छागलेश पुत्र का नाम पता नहीं चलता है। 
       जयदास वंशज राज्य काल 
   छत्रेश्वर , रावण , भानु काल 290 -350  ई  तक मान सकते हैं।   एक पीढ़ी के शासन के हिसाब से जयदास वंशी राज्य काल 110 -112 रहा होगा इस हिसाब से डबराल का मत है कि जयदास से छागलदास काल 350 से 460 ई तक होना चाहिए। 
            शिक्षा 
    लालखामण्डल में इस काल मेके कई शिलालेख या इष्टालेख संस्कृत में मिले हैं जिससे अनुमान लगता है कि 3 ऋ सदी से 6 सदी तक उचित शिक्षा प्रबंध था। 
      धार्मिक मान्यताएं 
  प्रशस्ति से अनुमान लगता है कि क्षेत्र में शैव्य सम्प्रदाय का प्रभुत्व था।  पशुपति , सिद्धम , नागरंदर शब्द इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
    
       स्थापत्य 
 जय दास वंशज काल में मूर्ति निर्माण प्रगति पथ पर था।  मंदिर  वाले होते थे। मंदिरों में द्वारपाल निर्मित होते थे जो मानवाकार आकृति के होते थे। डा वासुदेव शरण अग्रवाल अनुसार लाखामंडल की मूर्तियां पांचवीं -छथि सदी की हैं।  द्वारपाल की आकृति से ओज , शौर्य टपकता है और कला का सुंदर नमूने प्रस्तुत करते हैं।  उन पर लगी पोलिश भी अति उत्तम किस्म की हैं।  शिव मंदिर जयदास वंशजों ने निर्मित किया या पहले किसी अन्य शाशकों ने के बारे में निश्चित नहीं है किन्तु निर्माण उच्चकोटि के हैं इसमें संदेह नहीं है। 
     यमुना -मोरद संगम प्राचीन काल से ही धार्मिक श्ठल थे।  लाखामंडल में केदार शिला का शिव रूप में  पूजा होती है।  लाखामंडल में कई प्रागैतिहासिक खंदिर मूर्तियां व खंडहर पड़े हैं।  


(आर्किलॉजी सर्वे  इण्डिया देहरादून जॉन की वेब साइट से  कुछ वर्णन लय गया है ) 
  



Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार  इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर इतिहास , बेहत सहारनपुर इतिहास , नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments