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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

उत्तराखंड में राख या भष्म चिकित्सा

Ash or Bhshma Therapy in Uttarakhand 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -87
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   87                
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--190)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -190

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    राख वास्तव में गैस चूल्हों  या इलेक्ट्रिक चूल्हों के आने से पहले मानव एन प्रकारेण सेवन करता आया था। राख या भस्म में उस लकड़ी के खनिज व अन्य अवयव होते है तो मनुष्य अपरोक्ष रूप से जिस वनस्पति की लकड़ी होती है उस वनस्पति के अवयव प्राप्त कर लेता है। रोटी सकते ते समय या अन्य वनस्पति भूनते वक्त भोज्य पदार्थ पर  पर भस्म रह जाता है जिसे हम निगल लेते हैं। 
   उत्तराखंड में भस्म दो प्रकार से चिकित्सा में पयोग होती थी -
अ -पारम्परिक या साधारण जनता द्वारा भस्म प्रयोग
ब -आयुर्वेद वैद्यों द्वारा भस्म का औषधि में उपयोग या भस्म औषधि। 
                   पारम्परिक रूप से भस्म  प्रयोग 
रख का उपयोग आम जनता कई रूप में करती है 
      गर्म भस्म प्रयोग 
  पेट दर्द , सूजन , मोच -लछम्वड़ आदि में गरम राख का लेप या गरम राख को रखकर चिकित्सा की जाती थी। बच्चों के या अन्यों के पेट फूलने  की अवस्था में पेट पर गरम भस्म रग्गड़ा जाता था।
   राख में बैक्ट्रिया , वाइरस  प्रसारण रोकने की शक्ति होती है तो मवेशियों के घाव व खरपुका बीमारी में खुर के अंदर ठंडी भस्म  का लेप ब्रिटिश काल में भी किया जाता था। कई घावों में अनुभवी राख बुरकतने की भी सलाह देते थे। 
 जब कोई अति ठंड में  घर आता है तो गरम राख से पैरों का सेकन करता था। हाँ चूल्हे में पैर रखना पाप माना जाता था।
    गाँवों में अनुभवी भी होते थे जो कई वनस्पति जलाकर उस भस्म को रोगियों को देते थे जैसे नीम भस्म , प्याज भस्म आदि।  घाव या फटने की दशा में जो वैद नही होते थे पर जड़ी बूटी के अनुभवी होते थे वे विशेष वनस्पति को जलाकर उस भस्म का  लेप घाव व फ़टे स्थान पर लगते थे। मस्से या बबासीर आदि उपचार में विज्ञ वैद भी और अनुभवी कुछ भस्म उपयोग करते थे।  
       कृषि में भस्म उपयोग 
  खेतों में खर पतवार पैदा होना आम बात है।  किन्तु खेतों में वे ही खर पतवार उगते हैं जिनके खनिज की आवश्यकता उस भूमि को है।  इसलिए खर पतवार को जलाकर राख द्वारा भूमि को आवश्यक खनिज मिल जाता है।  अलिखित नियम है कि एक खेत के खर पतवार दूसरे खेत में न जलाए जायं या बाह्य घास न जलाये जायं।  घर की राख को खेतों में न डालना  भी सही था। घर की राख में कोई अनावश्यक खनिज हो सकते हैं जो उस भूमि को नहीं चाहिए । यह वैज्ञानिक सोच जनता को अनुभव से ही प्राप्त हुयी थी। आड़ जलाए हुए राख कई कीड़े  मकोड़ों को भी नष्ट करती है है।
    बीजों को राख में सुरक्षित रखना 
बीजों को कीड़ों , फफूंदी आदि के बचाव हेतु  पितक  में रखने का प्रचलन था व सबसे ऊपर राख रख दिया जाता था और राख बीजों को कीड़ों , बैक्ट्रिया , फफूंदी आदि से बचाने में कामयाब होती थी। 
 
  सफाई में भस्म उपयोग 
जहां विष्ठा या गंदगी आदि होती थी उसके ऊपर  राख डालना एक सही  वैज्ञानिक क्रिया है।  राख विष्ठा के हानिकारक सूक्ष्म जीवियों को मार देती है व मक्खी , कीड़ों को पनपने से रोकती है। जिन रोगियों को घर में टट्टी करनी पड़ती थी उन्हें राख भरी अंगेठी में शंका निदान कराया जाता था व यह अवैज्ञानिक तरीका नहीं था। 
  विष्ठा उपरान्त राख से हाथ धोना भी लाभकारी ही था। 
   बर्तन आदि की सफाई राख से होती थी वह भी सही था। 
कई बार कई लोग जिन्हे त्वचा रोग होता था वे राख को शरीर पर मलकर स्नान करते थे .
      कपड़ों की सफाई 
  जब तक कपड़े धोने के साबुन का प्रचलन नहीं हुआ था तब तक मोठे कपड़े राख व रीठे से ही धोये जाते थे। कपड़ों को राख के साथ उबाला जाता था। 
      तंत्र मंत्र में राख का महत्व 
तंत्र मंत्र याने मानसिक चिकत्सा में भी राख उपयोग आज भी होता है , रंगुड़ मंत्र कर बहुत प्रेत , पिचास भगाने का कर्मकांड आज भी गाँवों  में ही नहीं मुंबई के  उत्तराखंडियों में प्रचलित है। मन्त्रित राख सिरहाने रखने का प्रचलन मुंबई में भी है। मन्त्रित भस्म को माथे पर लगाने का प्रचलन सभी स्थानो में है। 
   वैष्णवी कर्मकांड में राख महत्व 
  लगभग सभी कर्मकांडों में हवन , अग्निहोत्र किया ही जाता है और हवन की राख को माथे पर लगाना रख चिकित्सा को महत्व देना ही है। 
       नागा साधुओं द्वारा भस्म लेपन 
नंगे साधू पूरे शरीर में भस्म लगाकर शीत  -ताप को झेलने में सक्षम होते हैं और ये साधू बद्रीनाथ -केदारनाथ जैसे स्थानॉन में भी सहित में सही सलामत रहते हैं। 
    आयुर्वेद में भस्म औषधि 
ब्रिटिश काल में मुल्तान , हरिद्वार आदि स्थान आयुर्वेद औषधि निर्माण में प्रसिद्ध हो चुके थे तो उत्तराखंडियों को पता नहीं है कि  कुमाऊं -गढ़वाल के वैद्य भस्म क्रिया से औषधि बनाते थे।  ब्रिटिश काल में बनी बनाई भस्म औषधि उपलब्ध हो जाने से गढ़वाल -कुमाऊं के वैद्यों ने घरों में भष्म औषधि निर्माण बंद कर दिया था।  किन्तु पहले आयुर्वेद विज्ञ लोहारों व सुनारों की सहायता से भस्म औषधि निर्मित करते थे।  भस्म औषधि वास्तव में शरीर में क्षार वृद्धि करती हैंव अधिक लवण शक्ति को लघु करती हैं ,
     भस्म औषधि निर्माण में धातु metal  को गलाकार उसके साथ वनस्पति औषधि मिश्रण करते थे।  इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि लोहार सुनार इन प्रक्रियाओं में वैद्यों का साथ देते थे। 
    भस्म औषधि में रत्न व धातुओं को छाछ आदि से शुद्धकर फिर गलाया जाता है और मारन (धतु के धातु गन समाप्ति ); चालन जैसे नीम की डंठल से भस्म बनाना , चलन (फेंटना ); धवन (धुलाई ); छनन (छानने ); पुत्तन (प्रज्वलन ) जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती है।  फिर इस कच्चे माल को पीसकर  जड़ी बूटियों के आरक ला लेप किया जाता है व विषहरण के बाद संरक्षित किया जाता है।  भस्म औषधि किए प्रकार की होती हैं व उनके नाम कच्चे अवयव  (धातु , कनीज , वनस्पति , रत्न ) अनुसार दिए जाते हैं जैसे स्वर्ण भस्म लौह भस्म , यशद (नीम ) भस्म आदि। 
 चूँकि भस्म निर्माण जटिल प्रक्रिया है तो प्रत्येक वैद्य इन कामों को नहीं करते थे व विशेष विज्ञ वैद्य ही भस्म निर्माण करते थे। 
   गढ़वाल -कुमाऊं में भस्म निर्माण शिक्षा पारम्परिक ढंग से पीढ़ी दर पीढ़ी दी जाती थी। 
    विष निर्माण 
धातु भस्म प्रक्रिया विष निर्माण में भी उपयोग होता था। 

           यात्रियों हेतु भस्म चिकित्सा 
       पर्यटन का बहुत ही सरल नियम है आप अपने अतिथियों को वही देंगे जो आपके पास है।  यात्रियों को जब थकान लगती थी या पैरों में सूजन/मोच /मुड़ना आ जाता था या अति शीत समस्या होती थी तो चट्टियों आदि में वे गरम   राख का ही उपयोग करते थ।  भूत  लगने की दशा में भी यात्री अवश्य ही मंत्री राख ही प्रयोग करते होंगे। वैद भी यात्री की बीमारी अनुसार भस्म औषधि देते थे।  
 इस लेख  की प्रतिक्रिया में मैंने अल इण्डिया प्रसिद्ध श्री चक्रधर कंडवाल से पपूछा कि  मल्ला ढांगू में ठंठोली गाँव तो आयुर्वेदाचार्यों हेतु प्रसिद्ध था तो वहां आज़ादी के बाद भी भस्म औषधि बनती थीं ? ो श्री चक्रधर जी क उत्तर यह है -
आजादी से कुछ दिन पहले और चीन के आक्रमण तक तो नजीबाबाद मे गढवाल होटल की बगल में माहेश्वरी औषधालय ताउ श्री पुरुषोत्तम दत्त जी चलाते रहे हैं। उसकेबाद भी गांव में आकर वे अपना औषधालय चला ते रहे।वैद्य जयदत जी भी इलाके में काफी प्रसिद्ध थे।लोग बताते हैं कि ये दोनों लोग सवर्न भषम और् लोह भषम बनाते थे।इनका पाली के कुतरा शाह गैणू शाह जसपुर के टमोटागैणूरामजी से भीयह सब बनाने मे सहयोग रहता था।यह इसलिए था कि यँत्र सभी सुनारों के पास थे।सामान और जानकारी इन वैद्यों के पास थी।एक और वैद्य कानाम भी लिया जाता है. वे थे तकला सुरोल गांव के नकुल देव जी का।


Copyright @ Bhishma Kukreti  /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;
 उत्तराखंड में भस्म / राख चिकित्सा , यात्रियों हेतु भस्म चिकित्सा , रोग दूर करने हेतु भस्म उपयोग , गढ़वाल में राख , भस्म चिकित्सा , कुमाऊं में राख , भस्म चिकित्सा

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