Motor Transportation in British Garhwal & inportance of Food in Tourism
Improvement in Tourist Facilities in British Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म-4 )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -69
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 69
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--173) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 173
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
मोटर मार्ग अवतरण से पहले यातायात सुविधा कुली एजेंसी के हाथ में थ। ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग में चलने वाली लोरियों के स्वामी गढ़वाली -मैदानी दोनों थे। किन्तु क्रमिक गढ़वाली ही थे।
ब्रिटिश गढ़वाल में मोटर यातायात जब तक कोटद्वार से लैंसडाउन तक सीमित था लॉरी लॉरी परिवहन पर एकाधिकार होने से परिहवन मालिक मनमानी करते थे। दोगड्डा से कोटद्वार तक पृष्ठि अनुसार किराया एक आने से लेकर एक रुपया तक था। दोगड्डा से कोटद्वार का किराया कई बार दो रूपये लिया जाता था। लॉरी या मोटर न होने से कई बार यात्री सामान के साथ कोटद्वार में दो दो दिन तक पड़े रहते थे।
कोटद्वार में मोटर उद्यम को संगठित व सुचारु रूप से चलाने का श्रेय रायबहादुर सूरजमल को जाता है। महायुद्ध से पहले यातायात व्यवस्था हेतु प्यासु के राजाराम मोलासी जो मुंबई में टैक्सी व्यहार में संलग्न थे कोटद्वार में मोटर , लौरी शुरू कीं। राजाराम मोलासी के साथ भवानी दत्त एजेंट को बड़ी ख्याति मिली। ज्ञात हो कि बाद में राजाराम मोलासी ने अपना व्यवसाय कोटद्वार में समेट लिया और मुंबई में मोटर ट्रेनिंग स्कूल शुरू किया।
1941 में जिलाधिकारी ने एक नियम भी दिखाकर मोटर मालिकों को यूनियन बनाने के लिए विवश किया। यूनियन बन जाने के बाद सरकारी कर्मचारी युद्ध के नाम पर मुफ्त में यात्रा करते थे।
दीप्ती कमिश्नर बिमंडी ने 30 नई गाड़ियों के परमिट इस शत पर दिए कि एक प्राइवेट संस्था गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी खोली जायेगी। इस प्रकार दो यूनयन होने से उनमे संघंर्ष शुरू हो गया जो शायद सन 1970 तक चलता ही रहा था।
मोटर व्यवसाय सबसे अधिक आजीविका दाता उद्यम था जिस पर 1947 में लगभग 1000 परिवार निर्भर थे।
दिसंबर 1946 तक मोटर ऋषिकेश से चमोली तक चलने लगीं थीं। मार्च 1947 को गाड़ियां कर्णप्रयाग तक पंहुचने। लगीं बड़ेथ के उमा नंद बड़थ्वाल हमेशा नई सड़क पर अणि गद्दे पहले ले जाते थे।
प्राचीन ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग में बीरानी
मोटर सड़क बनने से प्राचीन ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग बीरान हो चला और यहां के देव स्थल भी बीरान हो गए। किन्तु नए स्थलों की ख्याति बढ़ गयी
व्यासी के आलू गुटके और परांठे
ऋषिकेश -कर्ण प्रयाग मोटर मार्ग में गेट सिस्टम होने से गाड़ियों को व्यासी में रुकना पड़ता था और यात्रियों को जलपान करने ा समय मिल जाता था। एक समय व्यासी परांठे व आलू के गुटके हेतु प्रसिद्ध हो चला था।
सतपुली का माछ भात
यदि टिहरी गढ़वाल में व्यासी परांठा -आलू गुटके के लिए प्रसिद्ध हुआ तो सतपुली माछ सुरुवा व भात के लिए प्रसिद्ध हो गया।सतपुली ने हजारों साल से प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान बांघाट के औचित्य को ही समाप्त कर दिया
गुमखाल के काफळ
पौड़ी कोटद्वार मोटर मार्ग से गुमखाल को भी प्रसिद्धि मिली। यद्द्यपि इस मार्ग ने हजारों साल से प्रसिद्ध द्वारीखाल के औचित्य को हानि पंहुचायी किन्तु गुमखाल को गर्मियों में काफळ प्राप्ति स्थान से प्रसिद्धि मिली।
भोजन स्थान को प्रसिद्धि दिलाता है
मेरी राय है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र के मोटर मार्ग पर दुकानदारों को एक विशेष भोजन बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे वः स्थान प्रसिद्ध हो जाय जैसे मोदी नगर में जैन जल जीरा ने कार यात्रियों को मोदी नगर में रुकने के लिए मजबूर किया।
Copyright @ Bhishma Kukreti 11 /4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -6
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