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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

जब यू . पी . कौंसिल को कुमाऊं काउन्सिल कहा जाने लगा था

Diplomacy or Political Class playing role in place branding 
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  =85
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 85                  
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--188)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -188

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
     स्थान छविकरण एक दिन में पैदा नहीं होती है ना ही केवल एक अवयव स्थान छवि हेतु पर्याप्त है।  कई छवियों से स्थान छविकरण संभावित ग्राहकों के मन छवि बनाते हैं।  स्थान छविकरण प्लेस ब्रैंडिंग में राजनीति , कूटनीति व राजनायकों के व्यवहार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  यदि उत्तर प्रदेश , बिहार और यहां तक कि उत्तराखंड में उद्यम नहीं लग रहे हैं तो उसके पीछे केवल बंदरगाह दूर हैं कारण नहीं हैं अपितु उत्तर प्रदेश , बिहार और उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों व सरकारी प्रशासकों की बुरी छवि  उद्योग विकास में सबसे अधिक बाधक है। हिमाचल की छवि उद्योग खोलने में उत्तराखंड से कहीं अधिक सकारात्मक है।  मुंबई में उद्योग जगत में धारणा है कि हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड के नेता व प्रशासक अधिक खाऊ हैं और खाकर काम भी नहीं करते हैं।  धारणा व सत्य में जमीन आस्मां का अंतर् होता है।  
     पर्यटन कोई भी हो धार्मिक पर्यटन हो , रोमच  पर्यटन हो रोमांस पर्यटन हो या हो मेडिकल पर्यटन सभी में स्थान छवि आवश्यक होती है। सभी पर्यटन ब्रैंडिंग में कूटनीति व राजनायकों के कार्यकलाप बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं।  सकारात्मक छवि हेतु स्थानीय राजनायकों की चव्वी महत्वपूर्ण होती है।   एक उदाहरण है मैं जब बलावस्था या यवावस्था में था तो समाचार पत्र व पत्रिकाओं में मार्शल टीटो के बारे में व नासिर के बारे में पढ़ता रहता था।  युगोस्लाविया के शासक टीटो व मिश्र के नेता नासिर का नाम बहुत बार आता था। मार्शल  टीटो के कारण मुझे युगोस्लेविया के बारे में उत्सुकता रहती थी कि यह देश कैसा है , यहां के लोग कैसी हैं आदि आदि।  मिश्र की छवि तो मन में थी किन्तु नासिर के कारण मिश्र को जानने की अधिक इच्छा पैदा होती गयी।  यहां तक कि मैंने मिश्र की लोककथाओं का गढ़वाली में अनुवाद भी किया और इंटरनेट में पोस्ट भी कीं।  युगोस्लेविया साहित्य भी पढ़ा केवल मार्शल टीटो के कारण।  
      संक्षिप्त में कहें तो राजनीति , कूटनीति व राजनायक अवश्य ही स्थान छवि हेतु महत्वपूर्ण हैं। 
    उत्तराखंड भाग्यशाली है कि  ब्रिटिश काल में जन्मे कई राजनीतिज्ञों ने उत्तराखंड की छवि वर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। 
           कॉंग्रेस आंदोलन के प्रारम्भिक दिनों में ब्रिटिश सरकार ने प्रोविंसियल काउन्सिल व सेंट्रल कौंसिल की स्थापना कर ली थी जिसमे चुने हुए सदस्य होते थे।  तब कुमाऊं डिवीजन यूनाइटेड प्रोविंस का अहम भाग होता था।  प्रोविंस काउन्सिल में कुमाऊं डिवीजन से तीन सदस्य चुनाव से आते थे - नैनीताल व अल्मोड़ा से एक एक व गढ़वाल से एक। 
      द्वितीय प्रोविंसियल काउन्सिल का चुनाव 1923 में हुआ और नैनीताल से गोविन्द बल्ल्भ पंत , अल्मोड़ा से हरगोविंद पंत व गढ़वाल से मुकंदी लाल बैरिस्टर स्वराज्य पार्टी के टिकट पर चुनाव जित कर आये।  तीनों नेता सामाजिक आंदोलन (कुली बेगार आदि ) से तपे नेता थे व सामाजिक सरकार में संलग्न रहते थे।  मुकंदी लाल तो ब्रिटेन में ही स्वतन्त्रता आंदोलन कार्यों की सहायता व गढ़वाल पेंटिंग के कारण प्रसिद्ध हो चुके थे।  
   द्वितीय काउन्सिल का अधिवेशन 14 दिसंबर 1925 में शुरू हुआ।  इस अधिवेशन में हरगोविंद पंत ने एक प्रस्ताव पेश किया कि  कुमाऊं न्याय को कमिश्नर के अंतर्गत नहीं अपितु उच्च न्यायालय के अंतर्गत रखा जाय।  गोविन्द बल्ल्भ पंत ने खोजपूर्ण व सारगर्भित भाषण दिया और काउन्सिल सदस्यों को प्रभावित किया।  
 काउन्सिल में तीनो सदस्य सक्रिय रहते थे। वे जनता की समस्याओं को कौंसिल में उठाते थे और आवश्यकता पड़ने पर सरकार विरुद्ध स्थगन प्रस्ताव ला देते थे जैसे पूर्व में राजयसभा में स्थगन प्रस्ताव कम्युनिस्ट पार्टी ला देती थी।  तीनों मूल प्रश्न पूछते थे व पूरक प्रश्न भी पूछते थे।  उनके हर प्रश्न में समाज अग्रणी होता था।  इन तीनों की सक्रियता से सरकार तंग रहती थी।  एक बार तो वित्त सदस्य इतने नाराज हुए कि  कह बैठे ," काउन्सिल केवल कुमाऊं क्षेत्र के लिए ही नहीं है " (शंभु प्रसाद शाह , गोविन्द बल्ल्भ पंत -एक जीवनी पृष्ठ 83 )
      मुकंदीलाल की विद्वता व न्यायप्रियता के कारण उन्हें काउन्सिल का उपाध्यक्ष चुना गया व वे तीसरी काउन्सिल के भी उपध्यक्ष 1930 तक कार्यरत रहे 
      सरकारी वित्त सदस्य का कथन - ," काउन्सिल केवल कुमाऊं क्षेत्र के लिए ही नहीं है "  वास्तव में इन तीनों राजनायकों की क्षेत्रीय आवाज बुलंदी की ही प्रशंसा है। इस कथन से साबित होता है कि यूनाइटेड प्रोविंस में इन तीनों के कारण कुमाऊं की प्रसिद्धि में सकारात्मक वृद्धि हुयी। 
      ततपशचात कई राजनायकों जैसे महावीर प्रसाद त्यागी आदि ने भी उत्तराखंड स्थान छवि वर्धन में अपना योगदान दिया।  देहरादून में ओएनजीसी , आईआईपी जैसे संस्थानों को देहरादून लाने में महावीर प्रसाद त्यागी का योगदान अतुलनीय है।  
   राजनायकों की प्रसिद्धी स्थान छवि हेतु एक आवश्यक अवयव है।  आज के राजनायकों को यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि लोकसभा या राजसभा के उनके कार्यकलाप उत्तराखंड छवि हेतु महत्वपूर्ण हैं।  



Copyright @ Bhishma Kukreti 26 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6

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