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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

रामीण उत्तराखंड में कई जल स्रोत्र जल चिकित्सा स्रोत्र हैं !

( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- ) 
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -82
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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  82                 
(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--185)       उत्तराखंड में पर्यटन  आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -185

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन  बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
    मानव ने अपने जन्म से ही जल चिकित्सा Water Therapy प्रयोग शुरू कर दी थी। 
        उत्तराखंड में प्राचीन काल से जन साधारण जल चिकित्सा का प्रयोग करता आ रहा है और बहुत से जल स्रोत्रों का नाम तो स्वास्थ्य संबंधी नाम हैं।  उत्तराखंड में जल चिकत्सा सदियों से चली आ रही है यथा -
   एलर्जी होने पर शरीर में गंगा जल छिड़कना आज भी प्रचलित है। मुमबई में आज भी अचानक एलर्जी होने पर कई उत्तराखंडी शरीर पर गंगा जल छिड़कते हैं और आराम पाते हैं। दाद आदि पर तो नियमित रूप से गंगा जल बहाया  जाता था। 
 ततार - अधपके या पके घावों पर सिंवळ के पत्तों की सहायता से पानी बहाया जाता है और आज भी ततार देने का प्रचलन विद्यमान है। 
प्रातःकाल जल सेवन - भारत के अन्य क्षेत्रों की भाँती उत्तराखंड में सुबह सुबह रिक्त पेट के जल सेवन स्वास्थ्यकारी माना जाता है। रात को ताम्बे के बर्तन में जल रखना और सुबह पीना जल चिकत्सा है। 
 योग में मुंह से  पानी पीकर  नाक से बाहर करने  की प्रक्रिया जल चिकित्सा ही है। 
कादैं में - जब किसी पर  कादैं (पैर  या हाथ में अँगुलियों की जड़ों में फंगस /फंफूंदी लगना ) लग जाय तो कादैं  पर गरम  पानी बहाया जाता था। 
 भूत लगने या देवता आने की स्थिति में पानी का छिड़काव भी जल चिकित्सा अंग है। 
एनीमा  लेना भी जल चिकित्सा ही है। 
 गरारे करना भी जल चिकित्सा ही है। 
आँख आने या ऑंखें लाल होने पर आँखों को बार बार धोना जल चिकित्सा अंग ही है। 
   गंगा स्नान आदि भी मानसिक जल चिकित्सा है। 
व्रतों में केवल जल सेवन करना जल चिकित्सा का अंग है। 
अपच , पेट पीड़ा या सर्दी जुकाम में गरम जल सेवन जल चिकित्सा है। 
  जलने या अंग कटने पर प्रभावित स्थान पर जल बहाव भी जल चिकित्सा ही है। 
 बहुत से जल स्रोत्रों को पण्यों लगण वळ पानी माना जाता है (जिस पानी सेवन से पानी पीने की और इच्छा हो ) तथा बहुत से जल स्त्रोत्रों के जल सेवन से तीस नहीं बुझती है।  

      ग्रामीण उत्तराखंड में जल स्रोत्रों के बारे में धारणाएं 
      हर गाँव में प्रत्येक जल स्रोत्र की चिकित्सा विशेषता हेतु कुछ न कुछ नाम दिए जाते हैं। 
  मेरे गाँव में एक पानी है इकर का बारामासी पानी।  यह जल स्रोत्र एक छोटे गड्ढे तक सीमित है।  किन्तु जब मैं युवा था तो यदि इकर के पास जाएँ तो उस पानी को  पीना एक कम्पल्सन माना जाता था।  धारणा थी कि इस स्रोत्र के जल सेवन से पेट की बीमारियां नहीं होती हैं।  इसी तरह गाँव के निकट एक बहते पानी को न पीने की हिदायत दी जाती थी।  किसी पानी को जुंकळ पानी नाम दिया जाता है जिसके दो अर्थ होते हैं - जहां जूंक अधिक होती हैं या बच्चे वाले स्त्री द्वारा जिसके पानी पीने से बच्चे को जूंक चढ़ने का खतरा होता हो।  अधिकतर जिस पानी के स्रोत्र के पास पापड़ी (जंगली पिंडालू ) पैदा होता है उसे स्वास्थ्यवर्धक पानी नहीं माना जाता था। 
     कुछ क्षेत्र के पानी को भोजन हेतु प्रयोग नहीं करते हैं।  जैसे कांडी (बिछले ढांगू ) के पानी के बारे में धारणा  थी कि इस गाँव के पानी में उड़द की दाल नहीं गलती। 
  कुछ जल स्रोत्रों को सर्दी जुकाम का पानी माना जाता था और सर्दियों में इन स्रोत्रों के जल  प्रयोग नहीं किया जाता था। 
   कुछ जल स्रोत्रों को पथरी बिमारी का जड़ माना जाता था।  
   देहरादून में सहस्त्र धारा में स्नान को त्वचा रोग ठीक करने का जल माना जाता रहा है। 
  अमूनन बांज के जंगल के नीचे वाले जल स्रोत्र को स्वास्थ्यवर्धक पानी माना जाता था। 
पिंडर नदी में रोज स्नान को अहितकर माना जाता है। 

  जल स्रोत्रों की धारणाओं को अंध विश्वास न माना जाय 

 हर गाँव में जल स्रोत्रों के बारे में स्वास्थ्य दृस्टि से जो भी धारणाएं हैं उन्हें अंध विश्वास नाम देना स्वयं को धोखा देना है। आज आवश्यकता है उन जल स्रोत्रों के रसायनिक विश्लेषण करना और यदि वे जल स्रोत्र स्वास्थ्य वर्धक हैं तो उन्हें पर्यटन गामी बनाना। 




Copyright @ Bhishma Kukreti  23/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना शैलवाणी (150  अंकों में ) कोटद्वार गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी 
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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