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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

कर्तृपुर के खशधिपति, हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनोर इतिहास

Khashadhipati of Kartripur and History of haridwar, Saharanpur and Bijjnor     

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  204                     
                             हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  204               

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  
    समुद्रगुप्त ने प्रयागप्रशस्ति में अपने शासन के सीमान्त राज्यों का उल्लेख इस प्रकार किया है -
  समतट डबाक , कामरूप , नेपाल कर्तृपुरादि प्रत्यंतनृपतिभि: सर्वकरदानाज्ञारणप्रणामगमनपरितोयित प्रचंडशासनस्य। 
   इस प्रशस्ति अभिलेख में कामरूप के पश्चिम में नेपाल है और फिर कर्तृरादि नाम आया है।  इसका अर्थ है कि नेपाल के पश्चिम में कर्तृपुर था।  
        डबराल ने उत्तराखंड का इतिहास खंड -3 में पृष्ठ 282 से 294 तक कर्तृपुर की विवेचना की और निर्णय दिया कि कर्तृपुर गढ़वाल में था जो बाद में शायद कत्यूरी वंश की राजधानी बना। 
    विभिन्न स्रोत्रों की विवेचना उपरान्त डबराल ने लिखा कि इस खशाधिपति ने समुद्रगुप्त की आधीनता स्वीकार की और उत्तराखंड गुप्त साम्राज्य की आधीन आ गया था।  कुमार गुप्त के मंदसौर अभिलेख में गुप्त साम्राज्य के अधीन सुमेरु व कैलास  जो कि प्राचीन काल में उत्तराखंड के ही भाग थे।  
   यद्यपि अभी तक पता नहीं लगा कि गुप्त काल में खशधिपति उपायन देकर  गुप्त राजाओं ने युद्ध में पराजित था। कुमारगुप्त की मुद्राएं हमीरपुर , सहारनपुर , मथुरा में मिलने से (ऐल्लन व राधाकुमुंद मुकर्जी , गुप्ता ऐम्पायर पृष्ठ 74 )  भी अनुमान लगता है कि बि जनौर , हरिद्वार व सहारनपुर क्षेत्र गुप्त साम्राज्य के अधीन आ गए थे। 
     खशधिपति का  पद  गवर्नर जैसा पद था या कुछ और पर भी कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।  पर यह लगभग तय ही है कि सहारनपुर , बिजनौर और हरिद्वार न्यूनधिक रूप से गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत आ गए थे।   गोविषाण के मित्र  अथवा लाखामंडल के जयदास शासकों के वंशजों का क्या हुआ पर कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। 
 डबराल ने गुप्त काल से पहले प्राचीन उत्तराखंड दक्षिण के शासकों का काल का निम्न भाँति  अनुमानित विवरण दिया -
कुषाण -वासुदेव प्रथम व परवर्ती शासक - 206 से 250 ई 
कुणिंद नरेश -छागलेश्वर , भानु , रावण --243 -290 ई 
गोविषाण मित्रवंशी नरेश - 250 -290 
अश्वमेध यज्ञकर्ता  नरेश शीलवर्मन आदि --290 -350 ई 
 कर्तृपति खशधिपति -350 -380 ई 
गुप्त सम्राट 270 -381 ई 





Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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