Khashadhipati of Kartripur and History of haridwar, Saharanpur and Bijjnor
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 204
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2018
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Bijnor; seohara , Bijnor History Ancient History of Nazibabad Bijnor ; Ancient History of Saharanpur; Ancient History of Nakur , Saharanpur; Ancient History of Deoband, Saharanpur; Ancient History of Badhsharbaugh , Saharanpur; Ancient Saharanpur History, Ancient Bijnor History;
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 204
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
समुद्रगुप्त ने प्रयागप्रशस्ति में अपने शासन के सीमान्त राज्यों का उल्लेख इस प्रकार किया है -
समतट डबाक , कामरूप , नेपाल कर्तृपुरादि प्रत्यंतनृपतिभि: सर्वकरदानाज्ञारणप्रणामगमनपरितो यित प्रचंडशासनस्य।
इस प्रशस्ति अभिलेख में कामरूप के पश्चिम में नेपाल है और फिर कर्तृरादि नाम आया है। इसका अर्थ है कि नेपाल के पश्चिम में कर्तृपुर था।
डबराल ने उत्तराखंड का इतिहास खंड -3 में पृष्ठ 282 से 294 तक कर्तृपुर की विवेचना की और निर्णय दिया कि कर्तृपुर गढ़वाल में था जो बाद में शायद कत्यूरी वंश की राजधानी बना।
विभिन्न स्रोत्रों की विवेचना उपरान्त डबराल ने लिखा कि इस खशाधिपति ने समुद्रगुप्त की आधीनता स्वीकार की और उत्तराखंड गुप्त साम्राज्य की आधीन आ गया था। कुमार गुप्त के मंदसौर अभिलेख में गुप्त साम्राज्य के अधीन सुमेरु व कैलास जो कि प्राचीन काल में उत्तराखंड के ही भाग थे।
यद्यपि अभी तक पता नहीं लगा कि गुप्त काल में खशधिपति उपायन देकर गुप्त राजाओं ने युद्ध में पराजित था। कुमारगुप्त की मुद्राएं हमीरपुर , सहारनपुर , मथुरा में मिलने से (ऐल्लन व राधाकुमुंद मुकर्जी , गुप्ता ऐम्पायर पृष्ठ 74 ) भी अनुमान लगता है कि बि जनौर , हरिद्वार व सहारनपुर क्षेत्र गुप्त साम्राज्य के अधीन आ गए थे।
खशधिपति का पद गवर्नर जैसा पद था या कुछ और पर भी कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। पर यह लगभग तय ही है कि सहारनपुर , बिजनौर और हरिद्वार न्यूनधिक रूप से गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत आ गए थे। गोविषाण के मित्र अथवा लाखामंडल के जयदास शासकों के वंशजों का क्या हुआ पर कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।
डबराल ने गुप्त काल से पहले प्राचीन उत्तराखंड दक्षिण के शासकों का काल का निम्न भाँति अनुमानित विवरण दिया -
कुषाण -वासुदेव प्रथम व परवर्ती शासक - 206 से 250 ई
कुणिंद नरेश -छागलेश्वर , भानु , रावण --243 -290 ई
गोविषाण मित्रवंशी नरेश - 250 -290
अश्वमेध यज्ञकर्ता नरेश शीलवर्मन आदि --290 -350 ई
कर्तृपति खशधिपति -350 -380 ई
गुप्त सम्राट 270 -381 ई
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