Ayurveda Literature from Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -79
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 79
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--183) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 183
उत्तराखंड प्राचीन काल से ही संस्कृत पोषक रहा है। यद्यपि उत्तराखंड में चिकित्सा आयुर्वेद अनुसार ही होती थी और छात्र नकल सिद्धांत से आयुर्वेद पुस्तक को अपने लिए लिखते थे फिर उस गुरु का छात्र नकल करता था। आयुर्वेद में अवश्य ही साहित्य रचा गया होगा किन्तु भौगोलिक व अन्य कारणों से लिखित साहित्य कालगर्त में समा गया है जैसे श्रीनगर में प्राकृतिक आपदा /विध्वंस , गोरखाओं द्वारा रिकॉर्ड जलाना या कुमाऊं पर रोहिला आक्रमण में रिकॉर्ड समाप्ति।
ब्रिटिश काल व बाद में साधन व प्रकाशन व्यवस्था के कारण वर्तमान में उत्तराखंडियों द्वारा रचित आयुर्वेद साहित्य उपलब्ध है।
रस रंगिण
रसरंगिण आयुर्वेद पपुस्तक के रचयिता सदानंद घिल्डियाल हैं (जन्म खोला , 1898 -1928 ) हैं। सदानंद का आयुर्वेद ज्ञान प्रसंसनीय है। सदा नंद घिल्डियाल के आयुर्वेद संबंधी पद्यात्मक लेख 'वैद्य बंधु ' पत्रिका में प्रकाशित होते थे। सदा नंद कृत 'महाकषाय षट्कम ; भी वैद्य बंधु ' ने प्रकाशित किया था।
रसरंगिण 24 तरंगों में विभक्त 4000 पद्यों का संकलन है जिसमे रससिद्धांत वर्णित है। रसशास्त्र की परम्परा में यह पुस्तक श्रेष्ठ पुस्तकों में मानी जाती है जिसमे विधि प्रयोग , विविध औषधि यंत्र निर्माण आदि महत्वपूर्ण अनुच्छेद हैं।
पथ्यापथ्य विमर्श
भोजन द्वारा स्वास्थ्य रक्षा विषयी पुस्तक के रचयिता महा ग्यानी , वैद्यरत्न , वैद्य विद्यासागर , वैद्य वाचस्पति परमा नंद पांडेय (जन्म दियूली , कीर्तिनगर , टिहरी गढ़वाल , 1901 ) हैं। पथ्यापथ्य के अतिरिक्त आयुर्वेद कॉलेज आचार्य परमा नंद पांडेय ने त्रिदोष विज्ञान पुस्तक भी प्रकाशित की है। पथ्यापथ्य में 13 प्रकरण हैं। हरणतः में भोजनों का वैज्ञानिक वेवचना की गयी है।
आयुर्वेदीय पदार्थ विज्ञान व आयुर्वेद इतिहास
सुरेशा नंद थपलियाल (थाला , नागनाथ पोखरि , चमोली , 1931 ) कृत 'आयुर्वेद पदार्थ विज्ञान ' में आयुर्वेद अवतरण , पदार्थ वर्णन , द्रव्य विज्ञान ,प्रमाण विज्ञानं , गन निरूपण , तत्व निरूपण , षड्दर्शन के अतिरिक्त आयुर्वेद का इतिहास समाहित हैं।
आयुर्वेदीय क्रिया शरीर
शिव चरण ध्यानी (खंद्वारी , मल्ला इड़ियाकोट , पौड़ी गढ़वाल, 1931 ) कृत आयुर्वेदीय क्रिया शरीर में शरीर परिभाषा व अध्ययन की आवश्यकता , प्रत्यक्ष अनुमान , आप्योपदेश , युक्तिज्ञान , अग्नि भेदोपभेद , पोष्य -पोषक कल्पना , शारीरिक -मानशिक दोष , भोजन पाचन भेद , मूत्र निर्माण आदि अध्याय हैं।
उपोक्त साहित्य व रचयिताओं का जीवन परिचय द्योतक है कि उत्तराखंड में आज भी आयुर्वेद की जड़े गहरी हैं।
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
Medical Tourism History Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Uttarkashi, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Dehradun, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia; MedicalTourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Medical Tourism History Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - डा प्रेम दत्त चमोली , गढ़वाल की संस्कृत साहित्य को देन
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