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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, May 13, 2018

कुणिंद यौयेध कालीन राजा छत्रेश्वर

Chhatreshwar King Rule  over Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur 

Kuninda Yauyedh Rules over Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
 
       
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -
 194
                     
                                                हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 194                 

                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती  


            कुणिंद मुद्राओं से छत्रेश्वर , रावण व भानु शासकों की सूचना मिलती है।  इन शासकों का कोई अभिलेख व शिलालेख न मिलने से उनके अस्तित्व के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है। 
 छत्रेश्वर आदि शासकों का अन्य कुणिंद व स्रुघ्न से संबंध भी कठिन है।  इन मुद्राओं से कुणिंद राजवंश का काल भी पता नहीं चलता है। 
    छत्रेश्वर अन्य नरेशों के पूर्वर्ती नरेश है।  छत्रेश्वर की ताम्र मुद्राएं मिलीं हैं जिनका निर्माण कुषाण ताम्रमुद्राओं के मानदंड अनुसार हुआ है। 
                    छत्रेश्वर मुद्रा में मुद्रालेख 
छत्रेश्वर मुद्रा में शिव चित्रांकन हुआ है। शिव दाहिने हाथ में त्रिशूल व युद्ध परशु लिए खड़े हैं।  बायां हाथ कमर पर है।  पृष्ठ भाग में दाहनी ओर मृग खड़ा है। दाहनी ओर निकट ही चैत्य व त्रिभुजाकार Y आकृति के नीचे नाग है।  एक चिन्ह उनके नीचे व एक अस्पस्ट चिन्ह ऊपर बना है (स्मिथ, क्वाइन्स इन इंडियन म्यूजियम कोलकत्ता, भाग -1 , पृष्ठ 170 )
  कनिंघम आदि ने ब्राह्मी मुद्रा लेख को 'भगवतः चतरेश्वर पमहात्मन्य:'  पढ़ा ह। 
 ऐलन के अनुसार संभवतः परवर्ती कुणिंद नरेशों की राजधानी छत्र या चत्र रही होगी। 
बंदोपध्याय (प्राचीन मुद्रा ) अनुसार छत्रेश्वर का अर्थ शिव है जो कुणिंदों के कुलदेवता थे। 
   कनिंघम ऐलन और बंदोपाध्याय के कथन को नहीं मानता है। कनिंघम अनुसार भगवतः चतरेश्वर शिव का नाम नहीं अपितु शासक का ही नाम है।
          कुणिंद शासन क्षेत्र 

 छत्रेश्वर की मुद्राएं यमुना पश्चिम में अधिक मिली हैं जिससे अनुमान लगता है कि छत्रेश्वर का कुणिंद क्षेत्र हिमाचल दक्षिण पूर्व से लेकर पश्चिम उत्तराखंड के यमुना निकट रहा होगा। कुणिंद जनपद के या उत्तराखंड के धुर दक्षिण पूर्व में बाद गोविषाण में मित्र वंशी शासकों का अधिकार हो गया था। ऐसा लगता है कुणिंद काल में भी गोविषाण अथवा कुमाऊं तराई में अथवा बिजनौर पूर्व में कुषाण राजा राज्य करता था (डबराल ुखंड इतिहास भाग ३, पृष्ठ 156 ) 
                  राज्यावधि  
  छत्रेश्वर ने ताम्र मुद्राएं ढालने हेतु कुषाण मुद्राओं के अनुकरण किया है।  एक कथनानुसार (न्यूमेसमेटिक सोसाइटी, vol 15 , जून 1953 , पृष्ठ 180 ) गोविषाण व पूर्वी पंचनद पर कुषाण सामंत का शासन रहा होगा ।  डबराल अनुसार यदि इस कल्पना में सत्यता है तो छत्रेश्वर ने संभवतः कुषाण शासक अथवा सामंत वासुदेव से भूमि स्वतंत्र की थी।  (डबराल वही पृष्ठ 257 ) 
 डबराल अनुसार छत्रेश्वर का शासन काल 243 से 250 इश्वी तक आंका जा सकता है। 

 

Copyright@
 Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018 
   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -



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