Transportation improvement in British Period in Uttarakhand
Temple Management in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -60
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 60
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--166) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 166
गढ़वाल कुमाऊं में बार बार अन्नकाल पड़ते थे। ऐसे समय में निर्यातित अनाज को सदूर गाँवों में पंहुचना टेढ़ी खीर थी। पहाड़ों में बैलगाड़ी जाना आज भी संभव नहीं है। तो घोड़ों व खच्चरों से लदान संभव था या है। किन्तु गढ़वाल राजाओं व क्रूर गोरखाओं ने कर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु सड़कें नहीं बनवायीं। ब्रिटिश शासन ने आंतरिक परिवहन को सुदृढ़ करने हेतु कुछ कदम उठाये।
1948 में कुमाऊं में अल्मोड़ा में 180 मील , नैनीताल में 80 मील लम्बी सड़कें निर्माण का काम हाथ में लिया गया। सर्वपर्थम कोटद्वार -फतेहपुर सड़क पर ध्यान दिया गया। लैंसडाउन छा वनी बनने से भी दक्षिण गढ़वाल में परिहवन सुलभ हुआ।
In Garhwal, there was no plan for road construction till 1828.
Trail started road construction from Haridwar to Badrinath in 1827-1828. Trail did not take help from any engineer for planning. Trail himself used to supervise the works. it is said that Trail used to cut or dig stone when there was steep stone hurdle. He used to go for marking on steep hill with the help of roped basket. Trail used to sit in roped basket and helpers used to take rope and he used to jump here and there for marking. Trail travelled from Badrinath to Kedarnath for road survey.
Trail also discovered a road from Kumaon to Mansarovar. Church officials criticized Trail for that he was promoting idol worshipping.
By 1834, Haridwar –Badrinath road was completed. Animals and men could cross each other on that road. By 1835, government constructed roads from Rudraprayag to Kedarnath, Ukhimath to Chamoli, Chandpur to Kumaon via Lobha. Kumaon was connected to Ruhelkhand. So Ruhelkhand was connected to Badrinath via Kumaon. The length of such roads was 300 miles and cost was Rs. 25000.Sadavrat tax was used on road construction.
The successors of Trail kept road construction works alive. Workers completed road construction from Joshimath to Neeti in 1840. There was road from Shrinagar to Almora and Shrinagar to Kotdwara to Nazibabad by 1841.
कोटद्वारा , हल्द्वानी , ऋषिकेश व देहरादून, हरिद्वार को रेल से जोड़ने का जो कार्य ब्रिटिश शासन ने किया था उसमे भारत सरकार ने एक इंच भी वृद्धि नहीं क। रेल मार्ग ने तो पर्यटन उद्यम त्र में क्रान्ति ला दी थी
ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग ने भी उत्तराखंड पर्यटन की काया पलट ही कर दी। प्राचीन काल से चलने वाला ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग तो बंद ही हो गया।
गढ़वाल में 1948 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मुख्य सड़कें इस प्रकार थीं -
तपोवन घाट -नारायण बगड़ -लोहाबा -बुंगीधार -44 मील
बुवाखाल -कैन्यूर -44 मील
रामणी बाण -देवाल -ग्वालदम -38 मील
दनगल -पोखड़ा -बैजरों --२६ मील
नंद प्रयाग -बाट मार्ग -12 मील
दोगड्डा -द्वारीखाल -पौखाल -डाडामंडी पैदल मार्ग भी ब्रिटिश देन है. व्यासचट्टी , महादेव चट्टी जैसे घाटों को अच्छी सड़कों (घोडा सड़क ) गाँवों से जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य भी ब्रिटिश काल में शुरू हुए।
इन सड़कों के निर्माण ने आंतरिक पर्यटन व वाह्य पर्यटन विकास की आधार शिला रखी। इन सड़कों पर ऐसे पल बने हैं जो अभी भी सही सलामत हैं।
गंगा व सहयोगी नदियों पर पल भी ब्रिटिश काल में बने जिन पुलों ने पर्यटन को नई दशा व दिशा दीं। श्रीनगर गुमखाल मोटर मार्ग भी ब्रिटिश काल देन है।
ऋषिकेश कोटद्वार मार्ग भी ब्रिटिश काल में निर्मित हुआ।
वन सड़कें - ब्रिटिश काल में वनों के अंदर आवागमन हेतु कई सड़कें बनीं। अब तो सार्वजनिक विभाग व वन विभग्ग की खींचातानी में चलते मार्ग भी अवरुद्ध किये जा रहे हैं हरिद्वार -कोटद्वार मोटर मार्ग का इतिहास यही कहानी बयान करता है।
ब्रिटिश अधिकारियों पर बहुत से अभियोग लगते हैं किन्तु यह अभियोग नहीं लगता कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु सड़क योजनाएं बनायीं। आज तो हर सड़क की योजना वोट निश्चित करने हेतु बन रही हैं। वोट बैंक सामने आ गया है और पर्यटन नेपथ्य में चला गया है। सड़क व पुलों का शुभारम्भ भी नेताओं की फोटोजनी हेतु होते हैं समाजहित नेपथ्य में चला जाता है।
Copyright @ Bhishma Kukreti 4 /4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -6
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