New Crops of British Period those changed Uttarakhand Economics
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- )
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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -78
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Medical Tourism Development in Uttarakhand (Tourism History ) - 78
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series--182) उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -182
कृषि , अनाज , फल किसी भी भूभाग के पर्यटन को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से न्यूनाधिक प्रभावित करते हैं। ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में कई आर्थिक परिवर्तन हुये उनमे से एक था वनों को कृषि भूमि में परिवर्तन व दूसरा कुछ अनाज या भोज्य पदार्थों का आगमन -
तम्बाकू
पुर्तगाली या स्पेनी व्यापारियों के कारण तम्बाकू पेय ग्रामीण उत्तराखंड में पंहुचा व पहाड़ों की कृषि का एक अहम हिस्सा ही नहीं बना अपितु तम्बाकू आगमन से हुक्का निर्माण को भी बल मिला। कई गाँव हुक्का निर्माण के लिए प्रसिद्ध हो गए और हुक्का ने शिल्पकारों हेतु नया आर्थिक सोपान खोला। तम्बाकू ब्रिटिश काल से पहले ही उत्तराखंड में प्रचलित हो चूका था। ब्रिटिश काल में बीड़ी -सिगरेट का प्रचलन शुरू हुआ।
चाय
ग्रामीण उत्तराखंड में चाय प्रचलन भी ब्रिटिश काल की देन है। ब्रिटिश व यूरोपीय व्यापारियों ने उत्तराखंड में चाय बगान भी निर्मित किये किन्तु रूस की आयात नीति व कुमाउनी व गढ़वालियों द्वारा चाय बगानों में कठिन परिश्रम में न आने से चाय बगान बंद पड़ गए। किन्तु चाय की मांग बढ़ गयी और चाय पर्यटन का एक प्रमुख अंग बन गया। शक़्कर उपभोग में वृद्धि भी ब्रिटिश काल की देन है। लूण -गूड़ आयात के साथ चाय चिन्नी भी आयात में शुमार हो गए।
मक्का /मकई /मुंगरी
मक्का को लैटिन अमेरिका या नई दुनिया से पुरानी दुनिया में प्रवेश करा ने का श्रेय कोलंबस को जाता है। भारत में मक्का ब्रिटिश काल से पहले ही प्रवेश कर चूका होगा। बुचनान हैमिलटन 1819 में लिखता है कि कांगड़ा में गरीबों का भोजन मक्का है। किन्तु लगता है उत्तराखंड में ब्रिटिश काल के बाद ही आया। मक्का ने उत्तराखंड की कृषि व आर्थिक स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया। मक्के ने ओगळ जैसे अनाज की खेती ही बंद करवा दी।
सेव
हिमाचल जैसे ही क्रिश्चियन पादरियों ने सेव रोपण 1850 में अल्मोड़ा में शुरू किया था और उत्तराखंड के कई पहाड़ी क्षेत्र में बगीचे भी लगाए थे। एक व्यापारी ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगाए थे (मनोज इष्टवाल की वाल से ) . किन्तु उत्तराखंड वासियों ने सेव कृषि की सदा से ही अवहेलना की। इसका मुख्य कारण है कि उत्तराखंड वासी पेट भराऊ अनाज को महत्व देते रहे हैं और जो पेड़ पांच साल में फल दे उसको कतई महत्व नहीं देते हैं।
पपीता
पपीता कृषि भी उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में ही प्रचलित हुयी। यद्यपि पहाड़ों में पपीता कम ही उगाया जाता था किन्तु भाभर क्षेत्र में पपीता एक व्यापारिक कृषि या कैश क्रॉप है।
गोभी
गोभी के बगैर आज उत्तराखंड पर्यटन सोचना मुश्किल है। 1822 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के डा जेम्सन ने सर्वपर्थम सहारनपुर बगीचे में उगाया। व अनुमान लगाया जाता है कि 1823 में मसूरी या देहरादून जो कि सहारनपुर डिवीजन के अंतर्गत था में भी उगाया गया। उसके बाद गोभी सारे भारत में फ़ैल गयी। गोभी उत्तराखंड की पहाड़ियों में नहीं उगाई जाती थी किन्तु भाभर क्षेत्र में गोभी ने कृषि में आर्थिक क्रान्ति लायी।
आलू
आलू भी भारत में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आया किन्तु उत्तरी भारत में आलू कृषि का श्रीगणेश कैप्टेन यंग को जाता है जिसने 1823 (1820 ??) में मसूरी में सर्वपर्थम आलू उगाय। इसके पश्चात आलू शिमला होते हुए पूरे उत्तरी भारत में छा गया। . आलू ने कई पहाड़ी गाँवों ही नहीं नहीं अपितु पर्यटन भोजन में क्रान्ति ला दी थी। आज आलू के बगैर उत्तराखंड पर्यटन भोजन की कल्पना नहीं की जा सकती है।
स्क्वैश
उत्तराखंड कृषि में स्क्वैश प्रवेश भी ब्रिटिश काल की देन है। यद्यपि स्क्वैश को पहाड़ी जनता ने नहीं अपनाया किन्तु कई परिवारों हेतु स्वैश एक वैकल्पिक भोजन /सब्जी रही है।
कद्दू /खीरा /भोपड़ा Pumpkin
उत्तराखंड में ही नहीं अपितु भारत के अन्य क्षेत्रों में कद्दू की सब्जी को बार्षिक श्राद्ध में महत्वपूर्ण स्थान है तथापि यह कम ही लोग जानते हैं कि दक्षिण अमेरिका का फल कद्दू /खीरा पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत लाया गया था। कद्दू ने भी उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को बदला था।
राजमा दाल Kidney beans
राजमा या लुब्या कृषि कब उत्तराखंड में शुरू हुयी पर कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है। किन्तु इसमें दो राय नहीं हैं कि राजमा का प्रचार प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ। राजमा ने कई गाँवों की आर्थिक स्थिति भी बदली। राजमा भात आज उत्तराखंड पर्यटन भोजन का महत्वपूर्ण भोजन है।
अमरुद
अमरुद भी पुर्तगालियों द्वारा सर्वपर्थम गोवा में सत्रहवीं सदी में लाया गया। शायद उत्तराखंड में अठारहवीं सदी में कहीं कहीं बोया भी गया होगा किन्तु प्रचार व प्रसार ब्रिटिश काल में ही हुआ होगा। भाभर क्षेत्र की कृषि आर्थिक स्थिति को बदलने का श्रेय भी अमरुद को जाता है। अमरुद भी पर्यटन विकास हेतु आवश्यक फल है।
टमाटर
टमाटर भारत में सोलहवीं , सत्तरहवीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा आ गया था किन्तु उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में टमाटर कृषि का प्रसार हुआ। भाभर क्षेत्र में टमाटर एक महत्वपूर्ण लाभदायी फल साबित हुआ।
रामबांस
रामबांस कोई अनाज या फल नहीं है किन्तु रामबांस प्रवेश ने उत्तराखंड को रेशे उत्पाद हेतु कुछ काल तक एक संबल दिया व साबुन का विकल्प के रूप में दसियों साल तक रामबांस का महत्व बना रहा। रामबांस बाड़ के लिए आज भी महत्वपूर्ण वनस्पति है।
लैन्टीना या कुरी घास
क्रिश्चियन पादरी लैन्टीना को बगीचे हेतु लाये थे किन्तु आज लैन्टीना एक आफत बन गया है।
( संदर्भ - भीष्म कुकरेती के लेख 'उत्तराखंड की कृषि व भोजन इतिहास )
Copyright @ Bhishma Kukreti 19/4 //2018
1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150 अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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1 -भीष्म कुकरेती, 2006 -2007 , उत्तरांचल में पर्यटन विपणन
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास part -6
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