Mitra Dynasty and istory of Haridwar, Bijnor, Saharanpur
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 202
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2018
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
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हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 202
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
सन 1901 व 1939 -40 में कनिंघम की खोजें अनुसार काशीपुर में उत्खलन किया गया और कई ऐतिहासिक सामग्री मिलने से गोविषाण व बिजनौर के प्राचीन इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। 1978 -79 में हेमवती नंद गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर द्वारा उत्खनन ने मयूरध्ज बिजनौर का उत्खनन किया व दूसरी शताब्दी पूर्व से कुषाण कालीन सामग्री मिलने से हरिद्वार से काशीपुर-बिजनौर पट्टी की समृद्धि का पता चलता है।
गोविषाण दुर्ग
गोविषाण दुर्ग उत्खनन में निम्न अंकित ईंटे मिलीं -
१- राyn मातृ मित्तस पुत्त
२- तस्य रांवों श्री पृथ्वी विमत्तस ....
दोनों लेख अधूरे हैं जिससे सिद्ध होता है कि लेख कई ईंटों पर लिखा गया था। दुर्ग ढह गया है तो संबंधित ईंटों को खोजना कथन ही था।
पूरे लेख में संभवतः अन्य नरेशों के भी नाम थे किन्तु तीन नरेशों की तो पुष्टि होती ही है -
मातृ मित्र
मातृमित्र का पुत्र
पृथविमित्र
उन दिनों मथुरा , कौशम्बी , पांचालों व पाटलिपुत्र नरेशों के अंत में मित्र लगाने की प्रथा थी।
इस अन्वेषण से स्पस्ट है कि गोविषाण पर किसी मित्र वंश का स्वतंत्र शासन था या सटे किसी पांचाल नरेश मित्र का शासन था।
पुष्यमित्र शासन के पश्चात मध्य देश में नामन्त मित्र लगाने की प्रथा बनी रही।
कनिंघम ने मुद्राओं के आधार पर उत्तर पांचाल के बारह नरेशों का नाम उल्लेख किया (क्वाइंस ऑफ अन्सियन्ट इंडिया , पृष्ठ 81 -84 ) व नाम हैं -ध्रुव मित्र , सूर्य मित्र , फाल्गुनी मित्र, भानुमित्र , भद्रघोष , भूमिमित्र , जयमित्र , विश्वपाल , इंद्रमित्र व विष्णुमित्र। इन नामों में मातृ मित्र व पृथ्वीमित्र नाम नहीं हैं। उपरोक्त मुद्राओं की लिपि अशोककालीन ब्राह्मी है याने पहली सदी से पहले। जबकि गोविषाण में ईंटों की लिपि तीसरी सदी के लगभग की है। इतिहासकार सरकार ने मुद्राओं के आधार पर उपरोक्त 12 नरेशों के अतिरिक्त अन्य बारह नरेशों के नाम दिए हैं किन्तु उनमे ये दो नाम नहीं हैं।
मातृ मित्र
गोविषाण दुर्ग में मित्र वंश का संस्थापक की सूचना नहीं मिलती है। मातृ मित्र की कोई मुद्रा भी नहीं मिली ना ही किसी अभिलेख में नाम। हो सकता है अन्य ईंटों में कोई नाम रहे हों।
पृथ्वीमित्र
ईंटों पर लेख से पता नहीं लगता कि कौन पूर्ववर्ती था और कौन पर्ववर्ती शासक
लेख लिपि काल
इष्टका लेखों की भाषा से लगता है कि ये शासक वासुदेव कुषाण के बाद के शासक थे।
काल 250 -290 ई माना जा सकता है।
मातृमित्र व पृथ्वीमित्र के इष्टा लेख की भाषा संस्कृत से उसी प्रकार प्रभावित है जैसे छत्रेश्वर मुद्राओं के लेख।
अतः माना जा सकता है कि पश्चमी भाबर व बेहट में छत्रेश्वर वंशीयों का शासन था तो बिजनौर , काशीपुर भाबर पर मित्र वंशियों का शासन था।
स्थापत्य
गोविषाण के मित्र वंशियों के दुर्ग अवशेष अभी भी हैं। ये अवशेस तीन कालों की सूचना देते हैं। संभवतया यहां एक दुर्ग व कई मंदिर रहे होंगे। दुर्ग के पास 600 'x 600 ' का द्रोण सागर तालाब भी मित्र वंश काल का ही है।
उज्जैन गाँव काशीपुर तहसील जनश्रुति अनुसार द्रोण सागर निर्माण व उज्जैन दुर्ग पांडवों ने गुरु द्रोण हेतु बनाये थे।
दुर्ग व तालाब खुदाई मित्र वंशी शासकों ने किया।
मित्र वंशी शासन के चार सदी बाद चीनी यात्री हुएन सांग ने गोविषाण की समृद्धि का वर्णन किया है। उसने गोविषाण का घेरा ढाई मील बताया है।
कनिंघम ने मित्र वंशी ुर्ग का उल्लेख किया है। दुर्ग 1500 फ़ीट चौड़ा व 3000 फ़ीट लम्बा था। दुर्ग का निर्माण 15 x 10 x 2 1/2 इंच की ईंटों से हुया था। दुर्ग निकट खेतों से 25 -30 फ़ीट ऊपर टीले में स्थित था. दो पुराने फाटकों के अवशेष प्राप्त हुए जिनसे आज उगे जंगल में प्रवेश होता है। कनिंघम ने पूर्व को छोड़ तीन दिशाओं में खाइयों का वर्णन किया है। डबराल अनुसार अब खाईयां भर गयी हैं।
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