व्यंग्य - भीष्म कुकरेती
तब शायद बिहार चुनाव आने वाले थे और राजनैतिक हमाम में होली खेलने हेतु केंद्रीय सरकार ने बिहार के 24 जिलों में उद्यम हेतु 'प्रोतसाहन योजना ' की घोषणा कर दी।
टीआरपी के लालची या वास्तव में बहस करवाने हेतु एक टीवी चैनेल पर बिहार के 24 जिलों में उद्यम हेति 'प्रोतसाहन योजना ' बहस चल रही थी। उद्योग धंधो के विकास की बात हो तो मैं लगन से बहस सुनता हूँ।
किन्तु उस बहस देखकर मुझे लग गया कि राजनेता भी हमाम में , राजनीति प्रवक्ता भी हमाम में और टीवी ऐंकर भी हमाम में अज्ञानी होते हैं।
सबसे पहले तो टीवी ऐंकर ने बिहार के नेताओं की प्रतिक्रिया दिखाई। भाजपा व भाजपा के गुर्गों ने तो मुर्गा फाड़ बांग दी और कहा कि कल से बिहार के 24 जिले उद्योग धंधों के मामले में चीनी जिले हेनान या लिआओनिंग प्रदेश बन जाएंगे। तो विरोधी दलों के नेताओं ने नकारात्मक सड्याण (गन्ध ) फैला दी कि कुछ नही होगा सब बकबास है। भाजपा के गुर्गों और विरोधियों के मुर्गों में एक समानता थी कि किसी को भी कुछ भी ज्ञान नही था की योजनाए हैं क्या ?
फिर टीवी ऐंकर ने निमन्त्रित अर्थशास्त्री से उद्यम हेतु 'प्रोतसाहन योजना ' से लाभ के बारे में पूछा तो उस भड़भूजे की टिप्पणी सुन मेरा दिल चाहा कि इस भड़भूजे की डिग्री ही छीन दूँ। अर्थशास्त्री सीधा कहने लगा , नही अभी तो कुछ फायदा होगा किन्तु जब पांच साल बाद प्रोत्साहन योजना समाप्त हो जाएंगी तो फिर फिर से जिले उद्योगविहीन हो जायेंगे। उस अर्थशास्त्र के कुशास्त्री की सुई पांच साल आगे की नकारात्मक केंद्र पर ही अटकी रही। उस अनर्थ अर्थशास्त्री ने एक शब्द भी नही कहा कि चलो पांच साल में तो उद्योग संस्कृति विकसित होगी। जब किसी जिले में उद्योग संस्कृति जन्म लेती है तो फिर उद्यम दूसरे उद्यमों को भी आकर्षित करता है। उस पीएचडी धारी (शायद नकली रही होगी ) अर्थशास्त्री ने नही कहा कि उद्योग स्टेटिक नही होते अपितु काइनेटिक होते हैं और प्रोत्साहन योजना समाप्ति के बाद भी उद्योग अपने को सँभाल लेते हैं। बाद में पता चला कि यह अर्थशास्त्री कांग्रेस का पट्ठा था। किसी के पट्ठे होने का अर्थ नही कि एक अर्थशास्त्री अपनी भूमिका भी भूल जाय ?
जद (यू ) , जद (स्यू ) और जद (चारा ) के प्रवक्ताओं का तो तो क्या कहने। वे तो बिना कोई ज्ञान के , बिना कोई खोजबीन, बगैर तैयारी के टीवी बहस में तेरहवीं -बरखी खाने आये हुए लगते थे। तीनो को बिहार के उन जिलों की भी जानकारी नही थी बस विरोध का भोम्पू बजा रहे थे कि केंद्रीय सरकार बेवकूफ बना रही है।
जद (यू ) , जद (स्यू ) और जद (चारा ) के प्रवक्ता तो बिना तैयारी के आये थे किन्तु भाजपा का मुर्गा रूपी प्रवक्ता भी बगैर तैयारी के तेरहवीं -बरखी खाने आया था। उसे पता ही नही था कि उद्यम हेतु 'प्रोतसाहन योजना' होती क्या हैं। बस मोदी -मोदी की बांग देने के अतिरिक्त भाजपा का भोंदू भोम्पू कुछ भी नही कह सक रहा था।
ऐंकर तो भारत में भगवान होते हैं। ऐंकर के पास भी कोई सांख्यकी नही थी कि वह बता सके कि उद्यम हेति 'प्रोतसाहन योजना से जिले को क्या क्या लाभ हो सकते हैं।
भारत में टीवी बहस अब राजनैतिक मल्लयुद्ध के प्लेटफॉर्म बन चुके है। टीवी बहसों में उद्यम हेतु 'प्रोतसाहन योजना ' विषय पर बहसों का छत्यानाश ही होता है क्योंकि -राजनेता भी हमाम में , राजनीति प्रवक्ता भी हमाम में और टीवी ऐंकर भी हमाम में अज्ञानी होते हैं।
Copyright@ Bhishma Kukreti , 2016
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