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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 18, 2012

भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु- टिकडु

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
                  भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु- टिकडु
                            चबोड्या : भीष्म कुकरेती

जू बि मिल्दो स्यू बुल्दु बल चुनाव आण वळ छन त मनमोहन जी और ऊंका लोग भारतीय अर्थव्यव्स्थौ मुतालिक कुछ ना कुछ पकाणा छन।

मि तै भर्वस बि छौ अर अणभर्वस बि छौ , उमेद बि होणि छे अर नाउमेंदि डौरक च्याळ बि , कौज्याळ घंघतोळ बि त उज्यळ अर्थव्यव्स्थौ ख़याल बि ।

मि सि ब्याळि औंसि रात उठ अर सूद भेद लीणों प्रधान मंत्री कूड़ो पिछ्वाडि चौड़ सौड़ (मैदान ) मा ग्यों। त उख सकल सूरत से मोंटेक सिंग आहलुवालिया जनों एक मात्रिक एक बड़ी कड़ाई मा बड़ा बड़ा करछों लेकि कुछ पकाणों छौ .
मीन पूछ ," ए जी ! क्या पकाणा छंवां ?"

मान्त्रिक न जबाब दे ,'मि भारतीय अर्थव्यव्स्थौ पुलाव ना ना बिरयानी पकाणु छौं ."
में से नि रयाइ अर बोलि दे ," मतबल, भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु-टिकडु ?"

वून रुसेक बोल , " यूं ब्लडी इन्डियन ! वेल नोन नेम इंडियन इकॉनोमी क बिरयानी तै भारतीय अर्थव्यव्स्थौ खिचडु-टिकडु बुल्दो शरम नि औंदि ?"

मीन बोलि , " सौरि ! मिस्टेक से गलती ह्वे ग्याई जु मीन इंडियन इकॉनोमी तै हिन्दुस्तानी नाम दे द्याई"
वूंन अंग्रेजी मा टिप्पणी दे , " इलै इ त इन्डियन इकॉनोमी नी सुदनी च। जब हमन अमेरिका बिटेन रिफौर्म सिद्धांत उधार लियुं च त नाम तो अंग्रेजी मा लीण सीखो . ब्लडी इग्नोरेंट इन्डियन !"

मीन बि अंग्रेजी मा पूछ ," व्हाट इज कुकिंग इन इन्डियन इकॉनोमिकल बिरयानी ?."
वूंन पुळेक बोले , " औ तू त समजदार , तमीजदार , धारदार होशियार लगणु छे भै "
मीन अंग्रेजी मा इ ब्वाल , " जी क्या पकणु च ?"

वूंको जबाब छौ ," पकाणों त मि अमेरिकी बर्गर छौ पर इख पकाणों अनाज इ इन मीलेन कि क्या से क्या पकि गे ."
मीन हथ पसारिक ब्वाल ,"जरा चखावदी कनो स्वाद च धौं ?"
वून मै कडै बिटन गाडिक कनफणि सि कुछ दे . मीन जीव मा धौरिक इ उकै उल्टि कौरि दे अर ब्वाल , " हत ! यि पर त , रिसेसन की गंदी बास आणि च ?"

वूंन रुंदा मुखान ब्वाल , " मीन क्या करण ? मीन त रिटेल मा ऍफ़ डी आइ मांगी छौ जां से रिसेसन की गंध बास कम पता चौलु . पण अबि तलक कुज्याण किलै चिदम्बरम जी रिटेल मा ऍफ़ डी आइ फ्लेवर नि लैन धौं ? अछा रुको हां ! मि जरा डीजल अर गैस सब्सिडी कम करणों छौं . ल्या जरा अब चाखो "

वूंन दुबर खिचडु द्याई अर जीब मा धरीकि म्यार आंख कतड्याण मिसे गेन . म्यार कतड़या आँख देखिक वूंन बोलि , " ओहो ! यां से ईं बिरयानी मा इन्फ्लेसनो गंध याने मंहगाई दर की असह्य गंदी बास बढ़ी गे जां से आप तै लगणु च कि क्वी तुमर गौळ दबैक मारणु च। मि जरा रिजर्ब बैंक बिटेन लयुं कम ब्याज दरो कर्ज डाऴदु अर दगड़ मा सरकारी सब्सिडी बि जादा डाऴदु हां ! ले अब चाख ."
मीन जनि बिरयानी क एक टींड जीव मा क्या धार कि म्यार सरा सरैल से पसीना बगण बिसे गे .

वूंन घबरैक ब्वाल , " ये मेरि ब्वे ! यी त फिस्कल डेफिसिट स्वादों चिन्ह छन . उं !उं ! चलो मि इंडाइरेक्ट रेविन्यु इनहैन्सरो याने इंडाइरेक्ट टैक्स कु मसाला डाळदु हां . ले अब चाखदी कन च?"
अर जनि मीन एक टींड मुख जिना लीगो कि देखिक इ म्यार अंद
ड़ो मा असह्य मरोड़ शुरू ह्वे गे अर मि डावन , दर्दन जोर जोर से किराण बिसे ग्यों .

वूंन रवैक ब्वाल , " ओहो तुम पर आण वाळ मंहगाई क डौर बैठि गे . अछा मि भ्रष्टाचार -घोटालों छवि ठीक करणों मैणु मसाला डाळदु। ले अब चाख ."

मीन बिरयानी चाखि अर हौर जोर से किरौं , ये मेरि ब्वे मोरि ग्यों , ये बाबा ! मोरि ग्यों। "
वूंन घबरैक ब्वाल , " हैं ! तुमर पेटम बिरयानी दगड़ त अफसरशाही -राजनीतिज्ञों अर ब्यापार्युं क नेक्शस द्वारा देस बिचणो मंशा का बीज बि चली गेन ."

मीन किरै किरैक ब्वाल," या मरोड़ त भौति असह्य ह्वे गे ."
वूंन ढाड्स दिलाई , " चलो अब मि ब्लेम गेम कु घ्यू डाळदु "

मीन पूछ ," ब्लेम गेम ? मतबल भगार, लांछन , कलंकित करणों, दोषारोपण , कसूरवार ठैराणो खेल .."
वूंन विश्वास दिलांद ब्वाल , " हां ! मि अब विरोधि दलों पर भगार की गोळी , मीडिया पर दोष कु फ्लेवर , भ्रष्टाचार उन्मूलन आन्दोलन तै कलंकित करणों दिग्विजयी मसाला यीन इन्डियन इकौनोमी बिरयानी मा डाळणु छौं . ले अब चाख ."
मीन एक ना कथगा इ टींड चाखिन . मीन ब्वाल ," कुछ पता इ नि चलणु च कि इन्डियन इकॉनोमी क स्वाद कनो च .."
वूंन उत्साहित ह्वेक ब्वाल ,' यांक च भगार खेल कु मसाला काम करणु च ."

मीन ब्वाल, " अर अब म्यार सरैल सुन्न पड़णु च , मि तै इन लगणु कि मि कन्फ्यूज होणु छौं , सुध बुध बिसरणु छौं .. सैत च भारतीय अर्थव्यवस्था कु क्या हाल होलु का बारा मा सोचिक इ मि बिसुध होणि वाळ छौं .."
मीन बेहोश हूण से पैल मांत्रिको यी शबद सुणिन, " हाँ ! हाँ ! सर ! खराब भारतीय इकॉनोमी क दोष आप विरोधियों, अन्ना हजारे अर मीडिया पर लगांदा जावो , जोर शोर से लगांदा जावो . जनता सुंताळ (सुन्नपट्ट, बेसुधी हालत ) मा पौंछि जालि..."

Copyright@ Bhishma Kukreti 18/11/2012

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