संस्कृति कन बदलदी पर एक छ्वटो आलेख
भीष्म कुकरेती
दिवळ छिल्लुं बगवाळ (दिवळि) से चीनी लड्यु तक कि बग्वाळ (दिवळि) दिवाली तब और अब
गढ़वाळम तीन दिनुं दिवळि होंदी - चौदस की छवटि बग्वाळ, औंसी बड़ी बग्वाळ अर गोधन . जु छवटि बग्वाळ नि मनै सकदन वो इ गोधन मनौंदन जन कि मल्ला ढांगू का जसपुर-ग्वीलक कुकरेती अर जखमोला .
दिखे जावो त पुराण लिख्वार (इतियासकार ) यां पर चुप छन कि गढ़वाळम बग्वाळ की पवाण (शुरुवात ) कब बिटेन लग . म्यार दिखण से त बगवाळ (दिवळि) नौविं सदी या दसवीं सदि बिटे शुरू ह्वे होलि जब पंवार बंशी अर बामणु मा नौटियाल लोग गढवालम बसि होला। नौटियाल जात इ अपण दगुड़ संस्कृत लैन अर मौलिक गढ़वळि पर संस्कृतौ छोप (असर ) लगण शुरू ह्वे होलु। इखम द्वी राय नि ह्वे सकुद बल नौटियाल अर पंवार बंशी इ बगवाळ (दिवळि) लै होला निथर पैथरौ समौ मा बगवाळ (दिवळि) शुरू ह्वे होलि . शंकराचार्य, रावालुं , या नंबूर्युं बगवाळ (दिवळि) से क्वी लीण दीण नि रै होलु किलै दक्षिण भारतम अबि बि बगवाळ (दिवळि) उथगा महत्व नी च जथगा उत्तर भारतम च .
जख तलक ढांगू उदयपुर क्षेत्र कु सवाल च इख कुकरेत्युं बसण बादि (तेरवी सदि न्याड़ -ध्वार ) बगवाळ (दिवळि) शुरू ह्वे होलि (इना कुकरेती बामणु मा सबसे पुराणि जात च )
मै लगद कुकरेत्युं सबसे पुराणों गौं जसपुरम जब बगवाळ (दिवळि) शुरू ह्वे होलि त झुपड़ा मा एक द्वू रै होलु अर बकै दिवळ छिल्लुं जळै बगवाळ (दिवळि) मनाये गे होलि . ह्वे सकुद च कि बति कबासलौ रै हूंदी होलि . लोक कथा त या बुलद बल कुकरेत्युं दगड़ इ शिल्पकार ल्वार बसी गे छया त कढै गड़णै समस्या नि रै होलि बल्कणम समस्या लोखरै रै होलि . त या बात बरोबर च बल तेरवीं सदि से भौत अग्वाडी तलक जसपुरम बगवाळ (दिवळि)म स्वाळ पक्वड़ नि बणदा रै होला बल्कणम ढुंगळ इ बणदा रै होला . ठीक च कुकरेत्युंन ढांगू मा हथनूड़ कुठार गौं बसै आल छौ जख माटौ भांड बणदा छया मतबल द्यु बि बणदा छया , लया -राई तेल बि छौ पण कपास की उपलब्धता सोना जन छे त दिवळ छिलुं से हि दिवळि मनाये जांदी रै होलि . असल मा अंग्रेजूं राज बादि रुपया, लोखर, कपास मा बढ़ोतरी ह्वे त तबि द्वू ,स्वाळ -पक्वडुं प्रचलन बढ़ी ह्वे होलु .
गढ़वाळम गुड़ मिलण आज बि सौंगु नी च त गढ़वाळम बग्वाळम मिठे प्रचलन नाको बरोबर इ राई .
भैर एक से बिंडी द्यु जळाणो प्रचलन बि मातबरी बढ़णो दगड़ बढ़ .सन साठ कु बाद इ द्वू जळाणो प्रचलन बढ़ .
पठाखौं , फूलझड़ी जळाणो, मूमबती जळाणो प्रचलन बि सन साठो बाद इ जादा ह्वे।
अब त द्यूं जगा चीनम बण्या लड़ी जळाणो, पठाकों क प्रचलन खूब बढ़ी गे पण गढ़वाळम एक बात ज्वा नौटियालो -पंवारों दगड़ शुरू ह्वे होलि वा संस्कृति अबि बि उन्याकि ऊनि च अर वा च गौड़ बछरो सींग पर तेल लगाण अर गोरुं तै पींडू खलाण।
भौतिक चीजूं आण से हम नया नया चीज इस्तेमाल करदवां पण खुसी , पुऴयाट का जो भाव मनुष्य का साथ इ ऐ छया वो उन्याकि उन छन
Copyright@ Bhishma Kukreti 13/11/2012
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