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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, November 22, 2012

बेरोजगारि मरोड़

गढ़वाली हास्य व्यंग्य
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा

                      बेरोजगारि मरोड़
                         चबोड्या : भीष्म कुकरेती

परसि म्यार गां तै मरोड़ उठि गे . खै कुछ नि छौ किलैकि परधान जी न बोलि बल मनरेगा , प्रधानमन्त्री रोजगार जन योजनाउं रान , भट्यूड़ , भितर्वांस ,मुंडळि त ब्लौकम इ बंटी गे छौ अर बकै बच्यां हडका , लुतकि -पुतकि सरपंचालय जोग ह्वे गे छे। हमर गांम सबसे दानि ददि न गौं हालात देखिक ब्वाल बल इन मरोड़ त ये गां तैं डेढ़ सौ साल पैल बि उठि छे त सरा गां वळा आर चलाणो भाभरौ (मैदानी ) जंगळ जिना भाजि गे छा त गावै मरोड़ कम ह्वे छे। फिर जब हैंक दै बदहजमी ह्वे त सरा गां काळो डांड (लैंसडाउन ) गे छया अर जब फौजि बणिक ड्यार ऐ छा तब जैक या बदहजमी दूर ह्वे छा . फिर एक दै गां तै उब उन्द (उल्टी और दस्त ) लगि छौ त जब तलक गां वळ भंडमजा नि ह्वे गेन गौं उन्द उब बंद नि ह्वेन . वीं दानि ददि न बथै बल इनि जब बि गां तै भूखौ पेट पीड़ा होंदि छे त गां वाळ चपड़सि, किलार्क बणदा छा त पुटुकम सेळि पोडि जांद छे .

अबैं दैंक गौं पीड़ा ददिक बिंगणम नि आयि त दिल्लि-मुंबई बिटेन प्रवासी सल्लि (विशेषग्य ) बुलये गेन। सब्युंम बड़ी बड़ी डिगर्युं फंचि छे .
एक सल्लिन गौं नबज दयाख अर ब्वाल , " म्यार दिखण से त यु क्लासिकल अनइमप्ल्यायटौ (शास्त्रीय रोजगारौ सिद्धांत ) केस च . गाऊं मा रोजगार एक अर बेरोजगार सौ त इन मा गां तै बेरोजगारौ मरोड़ उठण लाजमि च ."

ददि न पूछ , " ब्यटा क्वी उपाय ? की इ पश्वा सुख्यर ह्वे जावो /"
सल्लिन बोलि ," ना मि कारण बतै सकुद निदानौ बाराम अजाण छौं "

हैंक प्रवासी सल्लिन गौं क आँख कताडि द्याख अर अपण राय दे ," ये गां पर मौसमि बेरोजगारि याने साइकलिकल अनइम्प्लॉयमेंटौ वायरस बि लगि गे।"

ददिन पूछ , " यो कनफणि सि बीमारि क्या च ?"
सल्लिक जबाब छौ ," मतबल जब देसम या विदेशम रिसेसन या आर्थिक मंदी ऐ जाओ त मौसमी बेरोजगारी बीमारी हज्या जन भंयकर रूपम सरासरी सौरद (फैलदि )."
एकान पूछ , "क्वी निदान ?"

"मि प्रवासी छौं मि कारण बथाणम उस्ताद छौं निदान बथाणम लाटो -कालों बुबा छौं ." वै सल्लिक उत्तर छौ
तिसरो प्रवासी सल्लिन गौंक पुटुक जपकाई अर कुछ किताब देखिन अर बडो उत्साहसे बथाई " ओहो ! ये गां तै मार्क्सवादी , साम्यवादी , समाजवादी बिमारि लग गे ."

" या बिमारी बि ह्ज्या जनि च ?"ददिन पूछ
" हां यीं दशाम रोगि -निरोगि कम काम कौरिक , पूरि मजदूरी बान लडै करणु रौंद अर क्वी ये तै उत्पादनशीलताऔ बाराम पूछो त इन बीमार पूछण वाळौ घुंड-मुंड फोड़ी दींदो " तिसरो प्रवासी सल्लिन अपण राय दे
ददिन ब्वाल , " बेटा ! तीम बि भाषण इ होला , क्वी निदान त क्या इ होला हैं ?"

प्रवासीन गर्व से ब्वाल," हां ददी ! मी बि आम प्रवासी इ छौं जु बिमारी लक्षणो बाराम चितळ रौंद पण निदानो मामलाम सियुं रौंद "
ददिन चौथो प्रवासी तै पूछ ," चल अब तू बि बता कि म्यार या त्य्रार गां तै क्या बिमारि च ?"
चौथो प्रवासी सल्लिन गौंक हथ-खुट जपकैन अर अपण लैपटॉपम कुछ देखिक ब्वाल ," या क्षेत्रीय बिसमता से उपजी बेरोजगारीक बिमारी च . जन कि भौगोलिक विषमता , प्रादेशिक विसमता, ग्रामीण -शहरी विषमता आदि आदि "
ददिन पंचों सल्लि तै पूछ , " ये तेरी राय क्या च ? ज़रा सुणा त सै "

पंचोंन सरा सरैल द्याख अर ब्वाल ,' ये गां पर दूरगामी बेरोजगारी , कम समौ बेरोजगारी , लुक्यां बेरोजगारीक रोग बि लग्याँ छन ."
ददिन ब्वाल , " ये प्रवासियों ! तुमन नै क्या बथाई ? या बात त म्यार ससुर जी बि जाणदा छा . क्वी माई क लाल च जु दवा बथै साको ?"

तीन चार प्रवासी ऐथर ऐन अर बुलण लगिन , "ददि हम अपण बीस पचीस भायों तै विदेस लि जाणा छंवां अर उख भांड मंजौला या होटलोंम कुछ हौर करला पण ये गां तै जरूर सुख्य्रर करि द्योल्या "
अर जनि गांवन यन सूण बल बीस पचीस जवान विदेस जाणा छन कि गां भलो चंगो ह्वेक कुतकण बिसे गे , घिलमुंडि खिलण मिसे गे . अब म्यार गां सुख्यर ह्वे ग्याई ।

Copyright@ Bhishma Kukreti 23/11/2012

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