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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, November 11, 2012

अचकालौ गढ़वळि क दाना सयाणा लिख्वार


हौंसी हौंस मा
                    अचकालौ गढ़वळि क दाना सयाणा लिख्वार
                        चबोड्या : भीष्म कुकरेती

जु बड़ी भाषा (मतबल जौंक बुलण वाळ जादा छन ) छन वूंका दाना सयाणा लिख्वारों त पूछ होणि रौंदि पण गढ़वळि जन भाषा क बड़ा बुरा हाल हुंदन . भैर त जाणि द्याओ अपणों ड्यारम अपणा घर्वळ दनकाणा रौंदन बल इथगा स्याई खौत क्या पाई ?
अब हरेक सुदामा प्रसाद प्रेमी जी या प्रेम लाल भट्ट त ह्वे नि सकदन कि जौं कि सुद हिंदी साहित्य अकादमी ल्याओ अर हिंदी साहित्य अकादमी क बि क्या च हर साल थ्वड़ा गढ़वळि भाषौ बारा म स्वाचल !

मीन पूरण पन्त पथिक तै पूछ बल अब तुम दाना सयाणा लिख्वारों पंगत मा ऐ गेवां त जरा इन बथावा बल तुमारी जिंदगी कन चलणी च ? त पंत जीक सुफेद -काळि- झंगरेट्या दाड़ि पर बणाक लगि गे अर बुलण बिसे गें बल अबि त मि साठ पर इ पौन्चु त क्यांको दानो सयाणों ? जब मि अपण समलौण लिखण बिस्यौलु, नया नया लिख्वारो तै सीख दीण मिस्यौलु या बगैर खोज कर्यां गढ़वळि साहित्यौ इत्यास लिख़ण लगि जौलु त समजी लेन बल मि दानों सयाणों लिख्वार ह्वे ग्यों . त पन्त जीक हिसाब से प्रेम लाल भट्ट जी दाना सयाणा लिख्वार ह्वेइ गेन . पण प्रेम लाल जी चूंकि अबि नयो रचनाकारूं तै सीख नि दीणा छन त यांको मतबल च बल अबि बि प्रेम लाल जी दानो सयाणा लिख्वार नि ह्वेन . मतबल कखि ना कखि भट्ट जीक सक्यात बचीं च।पण रूण त याचो भट्ट जी सरीखौ विद्वानै सक्यातौ फैदा उठाणों माध्यम गढ़वळि मा कख च ?

मि तै लगद अपण भगवती प्रसाद नौटियाल जी , डा अचलानंद जखमोला जी दाना सयाणा लिख्वारूं पंगत मा ऐई गे होला पण डा जखमोलौ जीक सुचण च बल जब तलक गढ़वाल सभा देहरादून डा जखमोला क गढवाली -हिंदी -अंग्रेजी शब्दकोश नि छापली तब तलक वो बुड्या नि ह्वे सकदन . डा जखमोला क बुलण च बल गढवाली -हिंदी -अंग्रेजी शब्दकोश छपणो परांत इ सोचे जालो बल मि युवा छौं कि बुड्या . त डा अचला नन्द जीक बुलण से लगद बल कखि भगवती प्रसाद नौटियाल जी तै दाना सयाणा लिख्वार बुले जालो त ऊन बि चिरड़े जाण किलैकि उंकी जिकुड़ेळि गाणि -स्याणी (दिल की इच्छा ) च बल ऊंको संयोजन मा गढ़वाली भाषा संस्थान खोले जावो अर फिर गढ़वळि तै संविधानै आठों अनुच्छेद मा जगा दिलाला . यांक साफ़ मतबल च बल भगवती प्रसाद जी अबि बि मोती ढांगा नि ह्वेन अर अबि बि नौटियाल जी गढ़वळि साहित्यौ बान बबरट्या बौड़ छन . पण गढ़वळि भाषा साहित्य मा रुण या च कि बौड़ त तयार च कि वो बबराट कौरिक हौळ लगाओ पण कांड इन लग्यां छन कि हऴया इ बौं हौड़ सिंयां छन।

शिवराज सिंग 'निसंग ' जी जब गढ़वळि भाषा क इतिहास ऊनि लिखदन जन उन्नीस सौ मा लिखे गे छौ त लगद च बल निसंग जी बुडे गेन अर अब यूं तै दाना सयाणा लिख्वारों डंड़्यळ मा बैठाळे जाउ पण फ़िर कविता लिखदन त लगण बिसे जांद कि ये बौड़ो नै दांत आणा छन .मतबल निसंग जी बि अबि दाना सयाणा लिख्वार नि ह्वेन .

जीत सिंग नेगी जी सचमुच मा दाना सयाणा लिख्वार , गीतकार, गितांग ह्वे गेन किलैकि ना त वो कुच्छ बुलणा छन कि वूं तै पद्म श्री मिलण चयेंद अर ना ही हम ऊं तै ओ सम्मान दीणों बान कुछ करणा छंवां जांक जीत सिंग जी हकदार छन .चण्डीगढ़ का बलवंत सिंग रावत जी चुप छन त मतबल ओ दाना सयाणा लिख्वार ह्वे गेन ? हमारी एक हैंकि खूबि च बिचारा लिख्वार इ बतान्दो कि वो ज़िंदा च हम गढ़वाली लिख्वार अपण दगड्यो खबर अफिक नि लींदा .

चक्रधर कुकरेती जी क उमर दानो सयाणों लिख्वार कि ह्वे गे पण अबि बि ईं उमर मा लिखणा रौंदन अर बुड्याण तै इनि भगाणा रौंदन जन अचकाल गाऊं मा लोग सुंगर भगान्दन .

डा उमा शंकर थपलियाल हृदय समस्या क बाबजूद अबि बि हिंदी पत्रकारिता मा व्यस्त छन त वूं तै बुड्या बुलला त जवान कै तै बुलला ?
चन्द्र सिंग राही अब गीत नि गान्दन पण ये भै गढ़वाली लोक गीतों खोज मा इन लग्यां रौंदन जन बुल्यां भूको शेर शिकार की खोज मा ह्वाओ त ज्वा गौड़ी अबि बि दुधाळ ह्वाओ वीं तै त कलोड़ इ बुलण ठीक च

जगदीश बहुगुणा 'किरण' गढ़वळि हिसाब से एक पैणों बाद इ बिसक गे छा उन द्वि साल पैलि वूं से मेरि बात बि ह्वे छे अर चिट्ठी पत्री औण जौण ह्वे छौ . उंन अपण युवावस्था मा गढ़वळि कविता संग्रह 'घमा ' छपाणों देहरादून एक प्रकाशक मा भेजि छौ अर वों कविता वै प्रकाशक क कफन लगी गेन इथगा सालों से कविता संग्रह नि छप।

भगवान सिंग अकेला सचमुच मा बुडे गेन अब बस मुंबई मा आराम इ करदन
जग्गू नौडियाल जी अबि जवान बौड़ो तरां कील ज्यूड तोडनो तयार रौंदन अर लग्यां छन कि द्वी चार किताब छपी जावन
ललित केशवान जी त चलण फिरण मा, दिखण दर्सन मा मे से जवान छन . सि द्वि तीन मैना पैलि मुंबई ऐ छया त जब केशवान जीन म्यार परिचय मिसेज केशवान से करायी त ऊन में तै जिठा जी समजिक सिवा लगाई अर म्यार सर्टिफिकेट दिखाणो बाद बि श्रीमती केशवान तै भर्वस नि ह्वे कि मि केशवान जी से कणसो छौं अर कसम से मिसेज केशवान जीन जांद दें मि तै जिठा जी बोलिक फिर सिवा लगाई अर मीन केशवान जी तै ज्याठो भैजी बोलिक सिवा लगाई . केशवान जी सरैल अर जिकुड़ी से चिरा युवा छन . उंकी इच्छा च कि एक गढ़वळि कथा खौळ (संग्रह ) अर गढ़वळि उपन्यास छपी जालो त तबि जैक ओ दाना सयाणा लिख्वारों मुंडीत मा शामिल ह्वाला . अब गढ़वाली समाज पर निर्भर करदो कि वो ललित केशवान जी तै कब दाना सयाणा लिख्वार बणान्द।

उन त पुष्कर सिंह कंडारी जी पर लकवा जन रोग लगी गे अर उमर बि ह्वेई गे पण यु हमारो कहावतो क बीर खुजनेर थक नी च अबि बि लग्याँ छन कि कै दिन बकै बच्यां 6000 हजार गढ़वाली कहावत अर गढ़वाली मा लिख्यां नाटक , कथा छपन धौं . मतलब पुष्कर सिंह जी बि दाना सयाणा लिख्वारो पंगत मा नि जाण चाणा छन।

त यो साफ़ च कि साहित्य मा क्वी उमर से बुड्या नि होंद अर जब तलक वैका लिख्युं साहित्य नि छप्यांद वैन बुड्या नि होण

Copyright@ Bhishma Kukreti 12/11/2012

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