गढ़वाली हास्य व्यंग्य
चबोड्या : भीष्म कुकरेती
हौंसि हौंस मा, चबोड़ इ चबोड़ मा
गाउं मा वृद्धाश्रमुं जरूरत अर पहाड़ी आन्दोलन
जब उत्तराखंड बौणि गे छौ अर लोग खुसी माँ सांस्कृतिक अठ्वाड़ या पार्टी सार्टी करणा छया त एक सांस्कृत्या अठ्वाड़म मीन भग्यान अर्जुन सिंग गुसाईं जीम बोलि छौ बल अब पहाड़ आन्दोलन की भारी जर्वत ऐ गे
जब हम गढ़वाली भाषौ साहित्यकार पित्याणा छया बल सरकार गढ़वळि कुमाउनी बान कुछ नि करणी च त मीन चबोड्या भौण मा लेखि छौ बल अलग गढ़वाली राज्य की जर्वत ह्वे गे, जां पर अपणा साहित्यकार सुशील बुड़ाकोटी जीन टिप्पणी कार कि मि इनि छौं करणु जन क्वी एक नयो पाकिस्तान की मांग करणों ह्वाओ।
फिर जब गढ़वळि साहित्य मा चुप्पी या जाम की बात ह्वाई तो बि मीन साहित्य मा चुप्पी तोड्नो बान पहाड़ी आन्दोलन की बात कार अर ब्वाल बल इ राम दा क्वी आन्दोलन चलणों होंदु त गढ़वळि साहित्यौ पयिया पर ग्रीस उरुस लगद त गढ़वळि साहित्यौ चक्का जाम नि होंदु . भाषा संस्थान को दान से चक्का जाम नि खुल बस खालि दान न साहित्यौ गाड़ि तै धक्का लगाई। गौ बुरी चीज भाषा संस्थान को दान से गढ़वाली साहित्य तै एक बि नयो पठनेर /पाठक मीलि ह्वा धौं . किताब छापिक धिवड -द्यूं -दीमक जोग करणों कुणि गढवाली भाषौ विकास नि बुले सक्यांद। गढ़वळि साहित्य तै निरंतर बंचनेर चयांदन त पहाड़ी आन्दोलन की बदौलत ही गढ़वळि साहित्य तै निरंतर बंचनेर मीलि सकदन
अब जब बारा सालौ उत्तराखंड मा बि हम तै लगणु च बल अपणों न अपणो तै दनकाई , अपणों न अपणो तै ठग , अपणों न अपणो तै पीट त इनमा पहाड़ आन्दोलन की बात अफिक शुरू ह्वे जांदी
फिर उत्तराखंड क्रांति दल , पहाड़ी राज्य सभा या हौरि बि जथगा क्षेत्रीय दल छन यूँकी हालात बद से बदतर होणि च त यांको एकी कारण च की यी दल अबि पहाड़ी आन्दोलन क्या च जन सवालुं तै समजी नि सकिन .यूंक बिंगण मा आई नी च कि पहाड़ आन्दोलन छ क्या च ?
उत्तराखंड क्रान्ति दल या दुसर क्षेत्रीय दल पहाड़ो असलियत से दूर इ रैन अर इनमा पैल त नेताओं तै कारिन्दा (कार्यकर्ता ) इ नि मीलेन तो जनता क सहयोग की बात इ क्या करण ?
पहाड़ी आन्दोलन कु असली अर्थ च पहाड़ो की असली समस्या समझो अर फिर वीं समस्या से पैल समाज तै झकझोरो अर तब जैक ड्याराडूणो घंटाघरम बैनर लगाओ। पण हमारा स्वम्भू नेता क्या करदन ? पिथौरा गढ़ की पैनो गां मा उजड्यु गौळौ बात पैनो गां लोगुं म त करदा नि छन बस ड्याराडूणो घंटाघरम बैनर लगै दीन्दन अर यां से ना ही समाज चित्वळ होंद ना हि सरकार की नींद बिजदी . समस्या जख्याकि तखि रौंदी .
अब जरा द्याख्दी पहाड़ का इ ना प्रवासी समाज मा एक बड़ी समस्या ऐ गे . अर वा समस्या च बूड बुड्यो की देख रेख। कारण भौत छन जन कि मनोवैज्ञानिक, मनिखों आपस मा सामंजस्य नि कौर सकण , सामजिक बदलाव, वित्तीय समस्यों से उपजीं समस्या आदि आदि . पण एक बात जरूर च कि गौं मा बूड-बुड्यो तै जीवन यापन की अणदिखिं -अणसुणि समस्यों से जुझण पड़णु च . एक त गौं मा परिवार का जवान या प्रौढ़ नि छन अर बुड्या या बुडड़ी इखुल्या इखुलि शारीरिक परिश्रम की मार सैणा छन। कुछ प्रवासी बूड -बुडया अपण मर्जी से या परिस्थिति वस गां आण चाणा छन पण शारीरिक परिश्रम करण से लाचार छन त मैदान मा इ भयंकर मानसिक त्रास सहणों मजबूर छन . याने कि गाउं मा बूड बुड्यो देख रेखौ बान समाज तै एक नई व्यवस्था करणि पोडल .
आज गौं मा वृद्धाश्रम की जरुरत एक आवश्यक आवश्कता ह्वे ग्याई कि जख शारीरिक रूप से कमजोर बूड बुड्यो बान खाण पीणो , कपड़ा धूणों पूरो इंतजाम ह्वाओ अर आवश्यकता पड़ण पर चिकित्सा सुविधा दिलाण मा यी वृधाश्रम मदद कारन।
अब इन मा वृद्धाश्रम खुलणै बात पहाड़ आन्दोलन को एक हिस्सा ह्वे सकद किलैकि गां मा वृद्धाश्रम खुलण एक सामाजिक जुम्मेवारी च ना की सरकारी जुमेवारी .
जु हम लोग उत्तराखंड मिलणों बाद फकोरिक से नि जांदा अर पहाड़ आन्दोलन तै अग्वाड़ी बढांदा जांदा त आज हम अफिक भौत सि समस्याओं निदान ढूंढी लींदा अर पहाड़ आन्दोलन चल्दो रौंद त भौत सि समस्या आंदी ना .
आज प्रवासी अर गांवासी समाज तै एक सवालों जबाब खुज्याणि पोड़ल कि गां मा असक्षम बूड बुड्यो देखभाल कनै करे जावु . या प्रवास से कै बि कारण से जु बि बूड बुड्या गां आण चाणा छन वूंको चैन से रौणो व्यवस्था कनकै करे जावो .
गांउं मा बूड बुड्यो समस्या इन बि बथाणि च कि आज पहाड़ी आन्दोलन की कथगा भारी आवश्कता च !
Copyright@ Bhishma Kukreti 17/11/2012
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