सन् 1750 ई से पहले की गढ़वाली कविता
(श्री अबोध बन्धु बहुगुणा ने इस कविता रचयिता का नाम पं जयदेव बहुगुणा माना है (शैलवाणी ) किन्तु गढ़वाली कविता के इतिहासविद व समालोचक डा जगदम्बा कोटनाला मानना है कि यह एक लोकगीत था जो अभी भी उत्तरी गढ़वाल में गाया जाता है )
-
-
रंच जुड्यां पंच जुड्यां
जुड़िगे घिमसाण जी
ट्यटा बोद गरुड़ राजाअ
ब्यौमा मिन बि जाण जी
ढैंचु जी त ढोल्या पैट्या
सेंटुलो दमैंया जी
घुघती मंगळेर पैटी
कागा छन डुलेर जी
गाड वासी गडमळी अर
धार बास्यो सिक्रा जी
तब उळकाणो बोद
मेरी डांडी लहिक्रा जी
--
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments