Modern Garhwali Folk Songs, Poems
मद्याष्टक (1920 के करीब की गढ़वाली कविता )
मद्याष्टक (1920 के करीब की गढ़वाली कविता )
रचना -- ( जन्म - 1872-1927 , नैथाणा , मनियारस्यूं , पौड़ी गढ़वाल )
Poetry by - Girija Datt Naithani
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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इच्छा , अहो ! तेरी भगौंद ज्ञान , साक्षात् तेरो मन की मलाल।
छूणो हि तेरी छ अधर्म खाण , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
दुर्गन्ध तेरी सिरकु घुमान्दे , पीणो छि ! तेरी गळ तैं जळान्दे।
तासीर तेरी सुमती नशांदे , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
लक्ष्मी कू फूं मां तू जरा उडाँदी , धब्बा प्रतिष्ठा पर तू लगौंदी।
मित्र तू शत्रु सहसा बणौन्दी , .छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
त्वै पीण तेही हरिजांद बुद्धि , शिक्षा सुआणी लगदे विरुद्ध।
निराखदो तू तन की भी सुद्ध , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
सत्मार्ग से चित सदा हटौन्दी , दुष्कर्म मां वे सणि तू लगौंदी।
कना कना खेल बुरा खिलौंदी , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
झाड़ उखाली अर लाल धारी पेशाब मां तू लिपतौंदी साड़ी
गिच्ची भि देंदी वखमां बिगाड़ी , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
माँ बैण भी तू नि ज़रा चितौंदी , ये लोक वा पार द्विलोक खोदी।
धर्मार्थ कामू भि सभी बिगाड़दी , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
सौकार अपणा परताप त्वैन , जोगी बणाईक घरु फिरैने।
राजा गद्दी से भी उतारि देन , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।
( साभार --गढ़वाली कवितावली )
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