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Wednesday, May 18, 2016

मद्याष्टक (1920 के करीब की गढ़वाली कविता )

Modern Garhwali Folk Songs, Poems 

 मद्याष्टक  (1920 के करीब की गढ़वाली कविता )

रचना --    ( जन्म  -  1872-1927 , नैथाणा , मनियारस्यूं , पौड़ी गढ़वाल  ) 
Poetry  by - Girija Datt Naithani 
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
-
इच्छा , अहो ! तेरी भगौंद ज्ञान , साक्षात् तेरो मन की मलाल।  
छूणो हि तेरी छ अधर्म खाण , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
 दुर्गन्ध तेरी सिरकु घुमान्दे , पीणो छि ! तेरी गळ तैं जळान्दे। 
तासीर तेरी सुमती नशांदे ,  छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।।   
लक्ष्मी कू फूं मां तू जरा उडाँदी , धब्बा प्रतिष्ठा पर तू लगौंदी। 
मित्र तू शत्रु सहसा बणौन्दी ,  .छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
त्वै पीण तेही हरिजांद बुद्धि , शिक्षा सुआणी लगदे विरुद्ध। 
निराखदो तू तन की भी सुद्ध ,   छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
सत्मार्ग से चित सदा हटौन्दी , दुष्कर्म मां वे सणि तू लगौंदी। 
कना कना खेल बुरा खिलौंदी ,  छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
झाड़ उखाली अर लाल धारी पेशाब मां तू लिपतौंदी साड़ी 
गिच्ची भि देंदी वखमां बिगाड़ी ,   छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
माँ बैण भी तू नि ज़रा चितौंदी , ये लोक वा पार द्विलोक खोदी। 
धर्मार्थ कामू भि सभी बिगाड़दी  , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 
सौकार अपणा परताप त्वैन , जोगी बणाईक घरु फिरैने। 
राजा गद्दी से भी उतारि देन , छि मद्य ! तेकु सऊ सौ धिक्कार।। 

( साभार --गढ़वाली कवितावली )
Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti  interpretation if any

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