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Tuesday, May 17, 2016

बाटा गोड़ाई ( रामी बौराणि ) (आधुनिक गढ़वाली गीत 1918 में प्रकाशित )

Modern Garhwali Folk Songs, Poems 

         बाटा गोड़ाई ( रामी बौराणि ) 
(आधुनिक गढ़वाली गीत 1918 में प्रकाशित  )

रचना /संकलन --  बलदेव प्रसाद शर्मा 'दीन '   ( जन्म  - 1883  मृत्यु समय - अनुपलब्ध ,  ग्राम बामसु , टिहरी गढ़वाल  ) 
Poetry  by - Baldev Prasad Sharma 'Deen' 
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
-
बाटा गोड़ाई क्या तेरो नौ छ, बोल बौराणी कख तेरु गौं छ.
बटोई जोगी न पूछ मैकु, केकु पूछ्दी क्या चैंदु त्वैकू.
रौतु की बेटी छौं रामी  नौं छ, सेटु की छौं पाली गौं छ.
मेरा स्वामी न मैं छोड्यों पर, निर्दयी ह्वैगिन मैंई फर.
ज्यूंरा का घर नि मैकु, स्वामी विछोह होयुं छ जैंकू.
रामी  तीन स्वामी याद ऐगि, हाथ कुटली छूटण लैगि.
"चल बौराणी छैलु बैठी जौला, अपणी खैरि वखिमु लौला".
"जा जोगी अपणा बाठ लाग, मेरा शरील न लगौ आग.
जोगी ह्वैक भी आंखी नि खुली, छैलु बैठली तेरी दीदी भूली.
बौराणी गाळी नि देणी भौत, कख रंदु गौं कु सप्रणौ रौत.
जोगिन गौं माँ अलेक लाई, भूकू छौं भोजन देवा माई.
बुडड़ी माई तैं दया ऐगी, खेतु सी ब्वारी बुलौण लैगि.
घौर औ ब्वारी तू झट्ट कैक, घौर मू भूकू छ साधू एक.
सासू जी वैकु बुलाई रौल, ये जोगी लगिगे आज बौळ.
ये जोगी कु नि पकौंदु रोटी, गाळी दिन्यन ये खोटी खोटी.
ये पापी जोगी कु आराम निछ, केकु तैं आई हमारा बीच.
अपणी ब्वारी समझोऊ माई, भूकू छौं भात बणावा जाई.
रामी   रूसाड़ु सुल्गौण लैगि, स्वामी की याद तैं औण लैगि.
माळु का पात मा धरि भात, मैं तेरा भात नि लंदु हाथ.
रामी  की स्वामी की थाळी मांज, भात दे रोटी मैं खौलू आज.
खांदी छैं जोगी त खाई ल्हेदि, नि खान्दू जोगी त जाई ल्हेदि.
बतेरा जोगी झोलियों ल्ह्यीक, रोजाना घूमिक नि पौन्दा भीक.
जोगिन आख़िर भेद खोली, बुढड़ी माई से यनु बोली.
मैं छौं माता तुमारु जायो, आज नौ साल से घर आयो.
बेटा को माता भेटण लैगि,रामी  का मन दुविधा ह्वैगी.
सेयुं का सेर अब बीजी गैगी, गात को खारू अब धोण लैगि.
पतिवर्ता नारी विस्मय ह्वैगी, स्वामी का चरणु मा पड़ी गैगी.

( साभार -- अंग्वाळ )
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