Modern Garhwali Folk Songs, Poems
स्वार्थ सप्तक ( 1906 , प्रेरणात्मक गढ़वाली कविता )
स्वार्थ सप्तक ( 1906 , प्रेरणात्मक गढ़वाली कविता )
रचना -- सनातनानन्द सकलानी ( जन्म 1878 -1920 - गढ़वाल )
Poetry by - Sanatananand Saklani
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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गरीब भूखा मरवैन त्वैन , दिदा भुलौं से लड़वैन त्वैन,
अन्याय भारी कर वैन त्वैन, हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
भली भली ये सब चीज मैकू , बुरी बुरी ये सब , और कैकू ,
छै तू सिखौंदो इनु जैकु तैकु , हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
नौन्याळ मेरा त पढ़ी हि जाला , छूं और कैकी यख न निकाळा,
इनी इनी सीख सिखौणवाला , हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख।
मानेन तेरा उपदेश जैन , सीखे महा निर्दयता छ वैन ,
पाये नि वैतैं कुछ लाभ कैन , हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
जाणे भलो शिक्षक जैन त्वैकू , ह्वैनी पिछाड़े सुख चैन वेकू ,
छै तू सुखौंदो सुख क भि ल्वै कू , हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
समाज को क्या ऋण देण मैंन , क्या हाल वांका अब होई गैन ?
यों बात ते चित्त फिरैन त्वैन,हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
खोटो बड़ो ही कलिराज सी तू , सदा भलकाम बिगाड़दी तू ,
नी होण देदो परमार्थ भी तू ,हे स्वार्थ तेरो मुख क्वी न देख!
( साभार -- गढ़वाली कवितावली )
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