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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, May 8, 2013

जु सात जन्मों बिटेन समधी समदण बणणो तरसणा छन

जु  सात जन्मों बिटेन  समधी समदण  बणणो  तरसणा छन 
                            भीष्म कुकरेती 
             
हम द्वी वै जमानो  माँ हिरन आर हिरणि  छया. व अपड़ी चांठी माँ में अपुड़ डाँडो  माँ  एक दुसर तै प्यार से टक लगैक दिखणा  रौंदा छया .भेमाता (ब्रम्हा ) तैं यु मंजूर नि थौ की हम एक  हैंका का सुवा (प्रेमी ) हुवां .  
भेमता न हम तैं हैंक जनम माँ मनिख रूप माँ प्रेमी -सुवा बणाणो  जगा गढ़वाल माँ समधी समधन बणनो को वरदान दे द्याई .
                        पैलो जनम लुठेरूं  को जोग
हमर पैलो जनम टिहरी जिनां गंगा को छाल फर ह्वे थौ. मेरी बेटी आर वींका नौन्याळ  की माँगण  बड़ी  धूम धाम से ह्वै. आज बी अडगैं  (क्षेत्र)  माँ वीं माँगणs   की छवीं  लगदन.हम द्वी खुस छाया, पुल्याणा   छाया  बल बस एक इ मनिख जनम उपरांत हम तैं मोक्ष मिल जालो . पण इन नि ह्वाई. ब्यौ  से पेल सिपै जात  का लोकुं  एक जुंटा रात डकैती दालणो आयि  अर मेरी बेटी तै उठाई    ल्हीगैन . इन सुणन  माँ आई बल ऊँन  मेरी  बेटी  देस माँ  गुड़औ संट्वर -बंट्वर (barter) माँ बेची दे .  वै  जनम माँ हम समधी-समधण  नि बणि  सक्वां.
                               दुसर जनम छुट -बड़  बामण जात को नाम 

हैंको जनम माँ हम दुयुं को जनम बामण जातति  माँ ह्वै. वींको जनम अर वो बि सर्यूल बामण जात माँ ह्वै म्यार जनम छुटी  बामण जात    माँ ह्वै . सर्युलों  न हमारू बेटी बेटा को रिश्ता नि होणी दे . ये जनम माँ बि हम तैं मोक्ष नि मील 
                      तिसरो  जनम तैं खश्या -  बामण   की लडाई -बीमारी खै  गे 

तिसरो  जनम बि सुफल नि ह्वै . वींको जनम राजपूत जात माँ ह्वै अर म्यारो जनम बामणौ  घर ह्वै . तीन सौ साल पैली क्या आज बि गढ़वाळि  समाज माँ राजपूत बमाणु ब्यौ तै सामाजिक मंजूरी नि मिलदी त  उबारी वै जनम माँ बामण जजमानु  आपस माँ ब्वौ की सामाजिक मंजूरी कनकैकी मिलणि  छे . हम वै जनम माँ बि निरसै  का ही मोरवां। 
                           चौथो जनम मातबरी अर गरीबी को अर्पण 

हमारो चौथो जनम शिल्पकार जाति  माँ ह्वै . ए जनम माँ ता हमारो  समधी अर समधण  बणनों  पुरो अवसर थौ पण शिल्पकार जात माँ जनम ल्हेकी बि हम समधी समधण  नि बण  सक्वां . वा सुनारूं  ब्वारी छे अर मी  पुंगड़ -खेतहीन  का छौ जु   रोज बिठों इख मजदूरी करण वाल शिल्पकार छौ. म्यार नौनो बि मजदूरी कर्रदार छ्याई. वा मातबर घर की  छे  मि  अर म्यार नौनु गरीब गुरबा घरानों का छया . कोर कोसिस करण पर बि हम समधी -समधण  नि बौण   सक्वां . ऊ जनम बि बेकार ही ग्याई.
                         पंचों   जनम क्षिक्षा अर नि-शिक्षा  को भेद बीच माँ आई 
पंचों जनम माँ हम समधी -समधण  बौणि  सकदा छया.पण मेरी नौनी (बेटी)  अनपढ़  छे अर वींको नौन्याल (बेटा) ऍम ए पास छायो त  शिक्षा  अर नि -शिक्षा  का भेद हमारी गाणी, हमारी इच्छा , हमारी अकन्क्षा की दुसमन बौणि  .हम दुयुं को  पंचों जनम बि तन्नी ब्र्बाद ग्याई। 
                          छठो  जनम बच्चों  की गाणी/स्याणी/आकांक्षा  की भेंट 
छठो  जनम माँ त हमारो समधी समधण बणणो को पुरो अवसर छौ . खानदान, जात, गरीबी-मातबरी , नौनु -नौन्याळी  की शिक्षा , स्टैण्डर्ड ऑफ़ लिविंग को  क्वी भेद  नि थौ,पण तबि  बि हम समधी-समधण  नि बौणि  सक्वां 
कारण ---हमारा बच्चों न साफ़ बोली दे , " हम अपड़ी जिदगी का मालिक खुद छवां, माँ बाप तैं क्वी अधिकार नि च की हमारी जिन्दगी का खास निर्णय ल्ह्यावन..We shall take our decision for our own marriage "
और हमारा नौनी नौन्याळन अंतरजातीय विवाह/ब्यौ  कौरी अर  सौब कुछ ठीक होई  पण  फिर  बि हम तैं समधी-समदण  नि बणन द्याई
अब हम सतों   जनम को बाटो जग्वाळणा  छवां

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