पहाड़ों में उत्पादन की अपार सम्भावनाएं
डा . बलबीर सिंह रावत
शुरू में ऐसी उत्पादक कंपनिया, ऐसे जाने माने लाभ कारी उत्पादों क क्षेत्र में आ सकती हैं जैसे मशरुम , दूध , ताजा सब्जिया , फल और फल उत्पाद, मत्स्यपालन , जडी बूटी उत्पादन, पुष्प और सुगन्धित तेल उत्पादन, नाना प्रकार के बीज उत्पादन, व्यावसायिक पौध उत्पादन, इत्यादि। कालान्तर में हर वह उत्पादन गतोविधि शामिल की जा सकती है जिसे लिए कच्चे माल उत्तराखंड में उत्पादित किये जा सकते हैं। सम्भाअनाये असीम हैं, कल्पनाशील और कर्मठ उत्पादकों की प्रतीक्षा में है। नव युवा वर्ग आगे आय , सरकार सही हुनर कौशल के प्रशिक्षण की व्यवस्था करे और नई तकनीकियों के स्थापन, प्रचार प्रस्सर्ण के लिए नर्सरिया स्ताह्पित करे. न कर सके तो बहु प्रचलित PPP मोड को लगाय की यहाँ दिखाओ अपने करतब तो जाने की वास्तव में PPP (पूरा प्रभावशाली प्रावधान) हो. . .
डा . बलबीर सिंह रावत
आर्थिक गतिविधियों को सामूहिक रूप से चलाने के लिए अब तक दो प्रकार की संस्थाएं मान्य थीं: उद्योगों के लिए जॉइंट स्टॉक कंपनिया और किसानो तथा उपभोक्ताओं के लिए सहकारी सन्स्थाये.
सहकारी संस्थाओं में प्रावधान है की एक सदस्य का एक मत होता है, चाहे उनसे कितने भी शेयर खरीद रक्खे हों . और जॉइंट स्टोक कंपनी में एक शेयर का एक मत होता है , तो सबसे अधिक् शेयर धारक की अधिक सुनी जाती है. कृषि और लघु उद्द्योग, उपभोक्ता तथा बैंकिंग क्षेत्रों में सहकारिता को प्रोत्साहित तो किया गया लेकिन उनके संचालन में सरकारी हस्तक्षेप की बहुत अधिक गुजाइश रक्खी गयी। समितियों के कर्मचारियों की नियुक्ति में सरकार/रजिस्ट्रार का पूरा हस्त्क्षेप होता है। बोर्ड के सदस्यों के चुनावों में भी सरकारी हस्तक्षेप के कारण इनका राजनीतीकरण होता रहा है। बोर्ड में विशेषज्ञों को शामिल करने का कोइ प्रावधान नहीं है। चूंकि बोर्ड में सरकारी प्रतिनिधि के मनोनीत करने का प्रावधान है, तो प्राय: असरदार राजनीतिक लोगों ने इन संस्थाओं पर, अपना सही गलत असर डालने में कोइ कोर कसर नहीं छोड़ते। यहाँ तक की राजनैतिक दलों ने भी इनकी प्रबंधक समितियों पर कबजा ज़माना शुरू कर दिया।
पिछले दशक में जब कृषि और अन्य ग्रामीण उत्पादन गतिविधिया बढ़ने लगीं तो सरकारी बंदिशों वाली सहकारी प्रथा विकास के गति में अवरोधक साबित होने लगीं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने कंपनी एक्ट में संसोधन कर के, पार्ट IX A के अंतर्गत, उत्पादकों की कंपनी का गठन करना सम्भव बना दिया है।इस नए नियम के अंतर्गत संगठित की जाने वाली कम्पनियों से उपरोक्त बाधाएं हटा दी गयी हैं और कम्पनी के सिद्धांत लगभग वही हैं जो अंतरराष्ट्रीय सहकारी महासंघ ने अपनाये हुए हैं, इन सिधान्तो को इस नए नियम में शामिल किया गया है. इस नए केन्द्रीय एक्ट में यह सुनिश्चित किया गया है की ऐसी कंपनियों पर राजनीतिक और सरकारी प्रशासनिक प्रभाव न्यूनतम हो और इन कंपनियों को निजी क्षेत्र की कम्पनियों की तरह कार्य करने की स्वतंत्रता और सुविधा हो। उत्पादक कंपनी बनाने के लिए कोइ भी दस उत्पादक व्यक्ति, या दो और अधिक उत्पादक संस्थायें, या उपरोक्त दोनों मिल कर अपनी उत्पादक कंपनी बना सकते हैं। इसके अलावा वर्तमान की सहकारी संस्था भी ऐसी कंपनी में स्वयम को परिवर्तित कर सकती है। इन उत्पादक कंपनियों में और पारम्पॉरिक कंपनियों में भी अंतर रखा गया है. इन में केवल उत्पादक ही सदस्य बन सकते हैं, इनके शेयर वही रख सकते हैं जो स्वयम उत्पादक हैं। शेयरों का व्यापार नहीं किया जा सकता है। एक सदस्य एक मत का अधिकार होता है।सक्रिय सदस्यों के लिए विशेष उपयोग कर्ता अधिकार होते हैं। लाभ में भागीदारी का अनुपातिक अंश होता है। डिविडेंड को निर्धारित करने की सुविधा है।
उत्तराखंड के परिपेक्ष में इस नए नियम का महत्व अत्यधिक है। सब से बड़ा महत्व तो यह है की छोटे छोटे उत्पादक मिल कर एक व्यावसायिक स्तर की उत्पादक इकाई की स्थापना कर सकते हैं , जिसके उत्पादों की मात्रा के आधार पर विपणन सुविधा जनक हो सकता है. दूसरा महत्व पूर्ण लाभ है की स्वय की कम पूंजी मिला कर कंपनी की बड़ी पूंजी हो सकती है तो सरकारी सहायता की प्रतीक्षा में "बूढ़े" हो जाने के खतरे से छुटकारा मिल सकता है। तीसरा लाभ यह है की विशेषज्ञों की सेवाए अपेक्षाकृत अधिक आसानी से ली जा सकती है। चौथा लाभ यह है कि उत्पादन मे काम आने वाली सारी सामग्रियों की आपूर्ति के लिए गुणवता युक्त सामान थोक भाव से खरीदे जा सकते है। कालान्तर में , अगर राज्य सरकार चाहे तो इस नियम में यह भी आयाम जुड़ा सकती है की चकबंदी के लिए एक ही स्थान पर के खेत मालिकों को ऐसी उत्पादक कंपनिया बना कर व्यावसायिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करे ।
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments