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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, October 7, 2012

खुज्यांदा रैग्याँ :गढ़वाली कविता,गी


कवि : पूरण पन्त पथिक देरादून

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हमत भैजी तुम्हारी सांग ब्वक्दा ही रैग्याँ ,
तुम बडादिम,झर्रा-फ़र्रा, दिखदा ही रैग्याँ .
साढ़े तीन बरस ,लाटा-काला  बण्या रां
तुम्हारी कोठी भूला-भटका दिखदा ही रैग्याँ .
तुम्हारो झंडा -लट्ठा -दरी ,ब्वाक्दा ही रैग्याँ
कूड़ी खंद्वार,हमरी,हम निगुसैं का रैग्याँ .
पित्रकुडी छोडी कना, फुन्द्या तुम बण्या ,
ब्वे को दूद बिसरी बिंडी बड़ा किले बण्या
लटमुंडळया ढुंगा हमत लमडणा लग्यां
शर्म झिझक अपण्यास  शब्द बिसरिग्यां.
धुर्पळिम  खिरबोज खांसे ,बिसरदा रयां
सिल्ल मां वो मूळा  हैंसी ,सड़दा  ही रयां .
चौड़ा गिच्चा कैरी-कैरि बडादिम बण्या
लीगैन चोर लूटी ,हम जग्वल्दा रयां .
एको-वेको -कैको क्या बल गणत करदा रयां
अपणी कूड़ी आग लगे ,द्यखदा ही रैग्याँ.
कचम्वाली खै,डंकार  लें ,लेन ही लग्यां
सिल्ल  चुल्ला परैं 'पथिक'आग खुज्यान्द रैग्यां.
 

@पूरण पन्त पथिक देरादून ४-अक्तूबर२०१२ 

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