व्यंग्य साहित्य गढ़वाली में
चबोड्या: भीष्म कुकरेती
जै विजय खानदानी गुलामो की ! जै राजशाही प्रतीकों की !
चबोड़ इ चबोड़ मा, हौंस इ हौंस मा
टिहरी मा मतदान किलै कम ह्वाई ?
वू बि बुलणा छन , सि बि धै लगाणा छन , उना बिटेन अवाज औणि च त इना बिटेन बि रैबार आणु च बल सन द्वि हजार बारा क टिहरी संसदीय चुनाव मा कम मतदान ह्वे . कुछ लोग बाग़ खौंळेणा छन बल इन किलै मतदाता वोट दीणों नि ऐन . सबि फिकरमंद छन बल मतदाता मत दीण बेरहम, कंजूस किलै ह्वे गेन . मतदाता किलै अपण तागत नि पछ्याणु च कि वैका वोट से सिंघासन उल्टी जांद , कथगा नेतौं मौ घाम लगी जांद, कथगा इ नेतओं क अरमान खड्डा जोग ह्वे जांदन अर कथगा रंक राजा बौणि जांदन त कथगा इ नेतौं क गुदड़ी मा बदली जांदी . बहस को मुद्दा च बल इन क्या ह्वै जु टिहरी संसदीय क्षेत्र का मतदाता चुनावि खौळ म्याळ से दूर किलै रैन ? मौसम बि खुशनुमा छौ त मतदाताओं न त खुश ह्वेका मतदान दीण छौ . फिर इन क्या बजर पोड़ कि मतदाता मतदान केंद्र मा आणो जगा अपण ड्यारम बौंहौड़ से गेन ? टी.वी. चैनेलुं ठेकेदार याने दिल्ली अर ड्याराडूणो तथाकथित समाज्शास्त्र्युं तै नींद नि औणि बल टिहरी का मतदाता अपणो हक का प्रति किलै उदासीन हवे गेन ? पत्रकारु कलम जाम हुंईं च अर सबि पत्रकार बिहोश हुयां छन कि हमन त बड़ा बड़ा नेताओं क इथगा चुनावी मीटिंगुं माँ छुटभया नेताओं दगड , एकी बुखटयो अंदड़-पिंदड़, रान -लुतकी-पितकी चटकाई ,एकी बोतल कु दारु प्याई फिर बि हम किलै नि चितायों की मतदातों न बोट दीणो नि आण।
हाँ जू चितळ लोक छन वो जाणदा बल असलियत क्या च?
सबि जाणदन बल टिहरी चुनाव मा जब मतदाता चुनावी मीटिंगों मा नि ऐन त आधुनिक -बादि बादण बुलाये गेन याने कि जनता क मुद्दों क अकाळ की भरपाई फ़िल्मी लोगुन कार। अब द्याखो ना जब एक फ़िल्मी कलाकार चुनावी मीटिंग मा ब्वालल, अरे ओ साम्भा ! तू कैक दियुं खादों रै ! ' अर उत्तर होलू " बल सरकार हम त सोनिया क दियुं पर इ पळणा रौंदा ." त इनमा समजदार, अकलमंद वोटरों तै बौळया कुत्ता काट्यु च कि वोट दीणो जावन . अरे जै चुनावी दंगल मा सोनिया गांधी क पळयां (पाले हुए ) गुलाम खडा ह्वावन वै चुनाव मा वोट दीणो क्या फैदा ? गुलाम त अपण मालिक /मालिकणि खुट मलासदो , मखनबाजी करदो वो नेहरु खानदान कु गुलाम नेता क्या जनता क भलै सोची सकदो ? . वै नेहरु खानदान कु बंधक गुलाम नेता मा सोनिया गांधी क चमचों कि चमचागिरी से फुरसत मीलों त सै तब जैक वो जनता की तरफदारी बारा म स्वाचाल ! जब जनता न देखि याल, अनुभव कौरी याल की नेहरु खानदान कु गुलाम विजय बहुगुणा न टिहरी बान कुछ नि कार त नेहरु खानदान का गुलाम खानदान का हकदार साकेत बहुगुणा क्या कद्दू पर तीर मार लेगा? कौंग्रेस प्रेमी जनता न त इनि सोची होलू बल मानसिक गुलाम प्रतिनिधि गुलामी की ही बात कौरल त फिर किलै नेहरु खानदान का बंधक गुलामु तै बोट दिए जाओ।
अब जू जरा भाजापा का प्रेमी छन वो बि त रूणा होला बल ये भै कथगा इ बलिदानु से त टिहरी राजा क गुलामी से टिहरी रियासत की मुक्ति ह्वे . अर इ बुलणो का राष्ट्रवादी भाजापा वळो तै घोर अधिनायक वाद, घोर साम्राज्यवाद, का प्रतीक इ टिहरी मा संसद सदस्य बणण लैक मिल्दन ? जब टिहरी कि जनता समजी गे कि गुलामी, अधिकारवादी , साम्राज्यवादी मानसिकता का गुलाम भाजापा बि च त इन मा जनता न वोटिंग से उदासीन होणि छौ . कु चालो की फिर से टिहरी मा अधिनायाक्बाद साम्राज्यवाद, लोकविरोधी सोच का प्रतीक तै बोट दिए जाओ?
फिर दिखे जाओ त वोटिंग का वास्ता क्षेत्रीय स्तर का राजनैतिक कारिन्दा (कार्यकर्ता ) ही लोगुं तै मतदान स्थल तक लांदन . पण जब राजनैतिक कारिंदों तै पता चल्दो कि सालो साल रानीतिक कारिन्दा बौणिक बि चुनाव टैम पर खानदानी गुलामो या गुलाम बणाणो राजशाही खानदान तै इ टिकेट मिलण त फिर किलै राजनैतिक कसरत करे जाओ ? राजनैतिक कारिंदों एक ध्येय हूंद की एम्एल ए /एम् पि बणण पण जब टिकटों पर खानदानी हक हूँण त असली, लगनशील, कर्मठ , त्यागी ,पार्टी भक्त कार्यकर्ताओं अकाळ पोड़ी जांद .अर जब टिहरी मा कै बि राजनैतिक पार्टी मा असली, लगनशील, कर्मठ , त्यागी ,पार्टी भक्त कार्यकर्ताओं अकाळ ह्वाओ त यो लाजमी च बल जनता तै जनमानस को हिसाब से क्वी उत्साहित करण वाळ नि होंदन अर इन मा कम मतदान ह्वाओ त खौंळेणे बात छें इ नी च . जब जनता दिख्दी कि बदलाव से बि 'या' 'वा' गुलामी की गंध आली त जनता मतदान से उदासीन ह्वे जांदी अर प्रजातंत्र का तथाकथित चौकीदारों न राजशाही का प्रतीकों या गुलाम मानसिकता वळु तै चुनावी टिकेट दीण अर धीरी धीरे राजनैतिक कारिंदों खात्मा सि होलू त इनी चलणु रालु .
Copyright@ Bhishma Kukreti 12/10/2012
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