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Monday, February 6, 2012

आखिर पूरण पंत अर नरेंद्र कठैत मा दंगळयौ किलै होणु च ?


आखिर पूरण पंत अर नरेंद्र कठैत मा दंगळयौ किलै होणु च ?
                                               कन्द्युर्या /जासूस - भीष्म कुकरेती
पूरण पंतौ व्यंग्य गद्य संग्रह 'स्वास्ति श्री ..'आण पर गढवाळी क दुसर व्यंग्यकार नरेंद्र कठैत न समालोचना ल्याख
' यो ठीक च बल गढवाळी मा पैनो/ तेजधारी व्यंग्य की कमी च अर पंत जी सरीखा लिखवारूं तैं यीं विधा मा आण इ चयेंद .
पण यू आपन ठीक नि कार बल मै से तेज धार वळ व्यंग्य लेखी दिने.
स्वस्ति श्री मा अभिनन्दन पत्र, समेत इकतीस व्यंग्य म्यार व्यंगों से बढिया छन. आपन प्रोफेसनल काम नि कार
जब आपन कविता मा नाम कमाई इ याल त क्या जरोरत छे जु आप व्यंग्य की दाथड़ी दाथ्दी, कुलाड़ी, खुन्करी क्या
बमग्व़ाळा लेकी गढवाली व्यंग्य थौळ मा ऐ गेवां.
स्वास्ति श्री मा -
आपन नेता अर फोकट का फुन्द्या नाथुं जड़ नाश करे दे अर इख पौड़ी मा लोक बुलण बिसे गेन की पूरण पंत का
व्यंग्युं मा ल्वे च ल्वे आग च आग, अर अब आपन व्यंग्य राज मा मेरी बणि बणयि गद्दी लुठणै ध्रिष्ट्ता कौरी दे
आपक व्यंग्युं नेतौं तैं नंगो करे गे याँ से मेरी बादशाहत खतरा मा पोड़ी गे. अरे समीक्षक वीरेंद्र पंवार जु म्यार
हितेषी छन वो बि तुमारा उदाहर्ण दी णा छन बल द्याखो पुराण पंत की भाषा -
तुम समझदार छौ. जरा लिख्यां तैं बिंडी समज्याँ...ज्यू ब्व णु की तुमारि खूब खातिर ... उफार वे डाळी मा बांधिद्युन.....
आपक व्यंग्युं तैं बांचिक डा नन्द किशोर ढौंडियाल सरीखा आलोचक बि बुलण बिसे गेन बल असलियत मा पुरण पंत को क्वी क्या सामना कॉरल !
यो त आपन मै पर सरासर अन्याय करी दे. आप तैं असलियत वादी व्यंग्य सिरफ़ म्योखुण रिजर्व रखण चयाणा छ्या.
 
अरे ! इख तलक की म्यार नया नया बण्या धरम गुरु गढवाळी आलोचना का सिरमौर भ.प्र. नौटियाल जी बि बुलणा छया बल
स्वास्ति श्री पाठकों को चौन्कांद बि च , पुराण पंत का लेख पाठक वृन्दों को आकस्मिक आघात लगाण मा सक्षम छन
(वो त भलो च की नौटियाल जी आपकी क्वी आलोचना प्रकशित नि करदन ) .अब आप इ ब्थावा मै पर क्या गुजरणि होली
म्यार धर्म गुरु मेरी समणि म्यार प्रतियोगी , कम्पीटिटर की प्रशंषा करणा छन .अफु तैं मी गढवाळी व्यंग्यऔ रियासत को अकेला
वारिस माणदो छौ आपन स्वास्ति श्रीमा इथगा बढिया आकस्मिक आघात लगाण वल़ा व्यंग्य देका मेरी एकाधिकार मा घुसपैठ करी दे
 
गढवाळी सुकट्वा देवेंद्र जोशी मदन डुक्लाण मा छ्वीं लगौणा छया बल स्वास्ति श्री मा ऐतिहासिक काल अर, स्थान अर वर्ग को ध्यान
पूरो च. देवेन्द्र जीन उदाहरण दे , 'या कथा शुरू होंद उत्तरप्रदेश का जमाना बटी . बात च ल्ग्ब्गा १९९३ की ......'
 
श्री शिव . सि. निसंग जी से मी तैं उम्मेद छे की वो मै छोड़िक दुन्या मा कै हैंको तैं व्यंग्यकार इ नि माणदन ऊन बि मै तैं सुणै दे बल पुराण पंत
का लेखुं मा अलंकार, अर घर्या मुहावरों प्रयोग से व्यंग्य मा धार इ नि आई बलकण मा बंचनेरूं तैं मजा बि आंदो जन की
'मी लमडांदू, अटगान्दू , रपटान्दू पन गिंगजांदू त नि छौं या रंद, मंद, खंड बंड, ....
 
श्रीनगर मा मेरा गुण ग्राही डा.दाता राम पुरोहित जी से इन उम्मीद नि रौंदी कि वो कें पोथी क आलोचना फुलोचना कारल पन आपकी
किताब बांची त टेलीफोन मा बुल ण बिसेन बल यार कठैत जी ! भौत सि जगा मा स्वास्ति श्री मा उलटवासी संगत को भौत इ बढिया प्रयोग
हुयुं च . जन कि एक वाक्य कि बानकी द्याखो - 'हे निहुण्या मौ करौंका , या एक शीर्षक द्याखो हाँ 'औरी सब राजी ख़ुशी छन -१,
अर भितर ये शीर्षक का विषय बड़ा ड़रयौण्या छन . व्यंग्य मा विरिधाभासी भाव लैक पापियुं, गुंडों या दुरजनूं पर चोट करण मा
पंत जी मास्टर ना प्रोफेसेर लगदन. प्रोफ़ेसर पुरोहित न जब ब्वाल बल विश्वासी शब्दों से जब अनाचारीयुं , राजनैतिक -चोरुं,
प्रशाशन पर अविश्वास लाण पन्त जी क खासियत च त मै पर क्या बीति होली ? पंत जी ! जौं शब्दों सुणणो मी दबे गे छौ ओ इ शब्द अब जब
आपका बारा मा बोले जाल त क्या मीन निरस्याण नि च ?
 
अब आप इ न्याय कारो कबि भीषम कुकरेती जी मेरी बड़ें कौरिक नि थगदो छौ. मेरी' कुळा पिचकारी' किताब मा भीष्म कुकरेती जीन कथगा
बडे कारि छे अब वी कुकरेती जी इन्टरनेट मा लिखणा छन बल -
जन रूस का कॉमिक रचनाकार अलेक्जेंडर एबलसिमोव (१७४२-१७८३) आम जिन्दगी तैं आम बोल चाल की भाषा मा दर्शान्दा छयो उनि
पूरण पंत आम जीवन तैं आम बोल चाल की भषा मा बताण कुशल छन
भौत सी बतुं मा रुसी कवि, व्यंग्यकार अर बच्चों सहित्यौ लिख्वार साशा कोर्नी ( १८८०-१९३२) मा अर पूरण पंत की रचनाओं मा साम्यता च
जन रुसी विक्टर डेनी (१८९३-१९४६) क राज नैतिक पोस्टर राजनैतिक अनाचार पर बरछा चलान्दा छ्या उनि पंत का व्यंग्यात्मक लेख भ्रष्ट राजनीति तैं श्योळ जन छ्पोड़दन
रुसी साहित्यकार डानिल खारम्स (१९०५-१९४२) क व्यंग्यात्मक गद्य, पद्य मा अमलाण , तीक्ष्ता होंदी छे अर वो बालुप्योगी साहित्य बि लिखद छौ . दिखे जाओ त पूरण पंत का
स्वस्ति श्री मा लेख बि तेज नोकधारी छन, उग्र छन, प्रचंड छन, भौत सी जगा त अति जगह कर्ण कटु बि छन .
जन रुसी साहित्यकार , राष्ट्रीय गीत लिख्वार ) , सर्जे मिखालकोव (१९१३-२००९) क व्यंगात्मक पशु पंछी वळा कथों तै पौढीक मजा आन्द त
आनन्द का हिसाब से पंत का व्यंगात्मक गद्य मा बि भौत सी जगा मा उनि आनन्द आन्द.
रूसी पत्रकार , सम्पादक मिखाइल साल्टायकोव श्चेड्रीन (१८२६-१८८९) अर पूरण पंत मा एक बडी साम्यता च कि मिखाइल साल्टायकोव श्चेड्रीन अपण पत्रकारी लेखुं अर सम्पादकीय
व्यंग्यात्मक भाषा मा लिखद छौ त इनी पूर्ण पंत का गढवाळी धाई क सम्पादकीय मा व्यंग्यात्मक शैली को पुरो असर होंद अर भौत सी जगह पूरण पंत का लेखुं मा
सम्पादकीय फैसला दीणे आदत बि साफ़ साफ़ दिखे सक्यांद जन कि 'धरम कर्म ' लेख. जन कि मिखाइल साल्टायकोव श्चेड्रीन न लेखी छौ बल ," मेरो साहित्यिक उद्देश्य च
बल मी सद्यनी आधुनिक रूस मा लालच, पाखंड, झूठ, चोरी-जारी, धोखाबाजी, अर मूर्खता का सद्य्नी विरोध कौरु."
अर पूरन पंत की किताब स्वास्ति श्री का लेख बि उत्तराखंड , भारत मा अळगस -अळगस्यूं पर अंगार लगंदन; ; उच्चका उच्चकापन
उठक-बैठक करान्दन, कामचोर-कामचोरी तैं कफन दीन्दन; , चोर-चाक्र्री तैं चिमल्ठु जन तडकान्दन; कपट-कपटी तैं कुरचदन ; चोर -चोरी-चोरिका तैं चाबुकन चटकांदन; ; ,
चोर्ब्जार-चोरबजार्या तैं चड़कौण्यान्दन (डंक मरना) ; चोरहाटिया का चम्पी करदन; छल-छली क छेछ्लेदारी करदन; तस्कर-तस्करी पर तूण दीन्दन;
दुर्भाव-दुर्भावी क दांत तुडदन , विकार-विकारी तैं वखळुम गंज्यळन कुटदन; धुर्या पर धम से धौल जमान्दन ; मिथ्या-मिथ्याबाज तैं मुठक्यान्दन ;
पाखंड-पाखंडी क पराळझड़ी से पिटाई करदन ; मक्कार-मक्कारी की मिरतु की बात करदन; ; मूर्ख-मूर्खता तैं उप्पन जन मिंडण चान्दन ; मूढ़-मूढ़ता तैं मड़गट जोग करण चान्दन .
त पंत जी आप इ ब्वालो आप छ्या प्रसिद्ध व्यंग्य कवि अर आपन मेरी टेरीटरी मा याने गद्यात्मक व्यंग्य क क्षेत्र मा अतिक्रमण कौरिक ठीक काम नि कार.
मी क्या सुंदर इखुली गद्यात्मक क सारी मा जमी क बैठूं छौ अर आपन म्यार एकाधिकार पर अधिकार करणे कोशिश करी दे , म्यार हिसा मा भागीदारी करी दे.
आपसे आशा च आप अपणो व्यंगौ काव्य का स्यारुं मा चबोड़ का सट्टी ब्वाओ; अर म्यार व्यंगात्मक पुंगडों मा उज्याड़ खाणै कोशिश बन्द कौरी द्याओ.
आपको हितैसी
नरेंद्र कठैत, पौड़ी,
जब पूरण पंत जी न नरेंद्र कथित जी की समालोचना बांच त पूरण पंत से नि रये ग्याई
पूरण जी न बि एक उत्तर गढवा ळी ढाई मा छाप
प्रिय व्यंग्य का जोशीला कलमदार श्री कठैत जी !
आपक लेख बांच अर जरा ज्यू कुछ खट्टो त णि ह्व़े पन उचमिची त लगी गे भै!
अब इन च शुरुवात आपन इ कार त फिर मी बि चुप किलै रौंदू भै!
 
मी बि व्यंग्यात्मक काव्य का स्यारों कब्जादार छौ. एकाद क्वी क्वी छूट मुट पुंगडों मा व्यंग्यात्मक खारिक (जीन)
ब्व़े बि लीन्दो छौ त मेरो एकाधिकार पर क्वी फ़रक नि पड़दो छौ.
पण अतिक्रमण की शुरुवात त तुमनी कार जब आपन व्यंग्य कविता संग्रह ' पाणी ' छाप
ज़रा घड्यावदी मेफर क्या बीती होली !
 
ज़रा स्वाचो त सै जब भ.प्र. नौटियाल जी न 'पाणी' क भूमिका मा क्या ल्याख -
'ये खंड काव्य मा गढ़वालि भाषाई प्रांज्जलता जख एक तिर्पान पढ्न मा सरल अर समझण मा छपछपी पडाळणी
च. व्क्खी हैकि तिर्पान ठेठ गढ़वलि श्ब्दुं कु जनक जोड़ कवि का मनै गे ड्या तैं रोचकता का साथ खोलण मा सक्षम च."
फिर महान आलोचक नौटियाल जी लिखणा छन बल " यद्यपि इन रचना मा व्यंग्य, विनोद च, कुछ चुटीली-कंटेली
नोक झोक बि छन. ...यानका वास्ता कवि कठैत साधुवाद का पात्र छन" त इन मा क्या मी तैं रोष णी ऐ होलू की
मेरा पुंगडों मा क्वी हैंको आई गे
 
आप तैं त पता इ च बल काव्य व्यंग्य मा म्यारो इ नाम भारी च त फिर आप किलै 'पाणी 'लेकी ऐन'. . 
मै पर क्या बीति होली जब भीष्म कुकरेती न ब्वाल बल 'पाणी ' की कति कविता इगोर गुबेरमैन (१९३६) की जन तेज छन .
कन लगो होलू मैपर जब कुकरेती बुल्दो छौ बल कठैत की पाणी कवितौं मा मिथ तैं आधार बणेक एक बढिया काम होणु च कि
आम जनता कविता से सॉंग मा जुड़ी जावो. अब द्याखो जु काम म्यार छौ वो आप न शुरू करी दे त मीन बि गद्य मा आण इ छौ.
 
तुमन पाणी जन विषय उठैक आम गढ़वाळी जन मानस कि दुखती रग पर हाथ डाळ अर म्यार वाड सरकाणै कोशिश कार
त कठैत जी असली गुनाहगार को च / मी की आप?
 
वाह ! अप तैं बुरु लग जब भीष्म कुकरेती न मेरी बडे कौर ! पण मै पर क्या बीती होली जब भीष्म कुकरेती न ल्याख बल कठैत की कविता मा वो ही
टीस च ज्वा टीस पाणी-कमी पर आधारित ज़ोन एप्पल औ उपन्यास ' हैचिंग्स' ९१९९३) मा मिलद, द्वी विधा अलग अलग होण पर बि पाणी जन
आवश्यकता पर पाठ्कुं ध्यान आकर्षित करण मा द्वी यानी कठैत अर एप्पल कामयाब छन.
 
जी आप तैं मेरी बडे से दिक्कत ह्व़े पर आपन इन बि चिताई बल जब भीष्म बोल्दु बल ब्रेन मक्रेया (२००८) की 'कंट्री टाउन ब्लूस ',
ऐन इंजीनियर्ड वाटर शोर्टेज' जन कविता पाणि क कमी पर वा इ भयानकता , त्रासदी पैदा करदन जो कठैत की पाणी क कविता करदन. तब मै तैं बि त दिक्कत ह्व़े होली की ना?
 
जब भीष्म कुकरेती न ब्वाल बल कठैत की या खंड-काव्य /लम्बी कविता सैमुअल बटलर (१६१३-१६८०) की लम्बी व्यंगात्मक कविता, ऑस्ट्रेलियाई कवि टिम थोर्न (१९४४)
स्कौटिश कवि डगलस लिप्टन की 'ड़ फ्लोरा एंड फौना ऑफ़ ..'; या लोरिन्गोवें जन कवियुं लम्बी व्यंगात्मक कवितौं याद दिलांदी .
 
आपन सौज सौज मा जथगा बि टुट ब्याग, पाप. भ्रष्टाचार , गलत सलत तरीका हमर ज़िना छन वो पर बंदूक ताण त में पर बि कुछ ना कुछ फ़रक त पोड़ी
होलू की अब व्यंग्य का कवितौ मैदान एक हैको पहलवान बि ऐ गे .
 
त कठैत जी आपन मेरी देळी लांग मीन आपकी देळी लांग
 
आशा च बात आप बींगी गे हवेल्या.
आपकू हितैषी
पुराण पंत पथिक
(मैंने यह लेख केवल एक प्रयोग के तौर पर लिखा है. आपकी प्रतिक्रिया की इन्तजार में )
१-स्वास्ति श्री (गढवाळी गद्य व्यंग्य संग्रह)
लिख्वार - पूरण पंत
गढ़वाली धाई प्रकाशन फोन- ०९४१२९३६०५५
२- पाणी
(खंड काव्य)
कवि - नरेंद्र कठैत
पौड़ी फोन ०१३६८-२२१०१६

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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