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Wednesday, February 22, 2012

इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -4

इकीसवीं सदी क गढ़वाळी स्वांग/नाटक -4
गिरीश सुंदरियालौ नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण - फाड़ी -३
 
 
                         भीष्म कुकरेती 
 
 
भारतीय शास्त्रुं मा स्वान्गुं चरित्र अर चरित्र निर्माण पर विचार

भरत मुनि से पैलि अर पैथर भारत मा मनिखों मनोविज्ञान पर भौत छ्वीं लगीन.
जन कि महाभारत मा युद्ध , भड़/वीर पुरुष, भला-बुरा मनिख, भली- बुरी जनानी, नौकर चाकर आद्युं गुण,
भौं भौं बिरती (कार्य) वळु चरित्र क बर म वर्णन मिल्दो।
इनि गीता (जै तैई कतै बी धार्मिक ग्रंथ नि मने जाण चयेंद )क मनोविज्ञान भौत काम का छन . गीता सांख्य दर्शन
को उपयोग को ग्रंथ च.
पतांजलि संहिता मा योगी का गुण आज बि औचित्यपूर्ण छन
न्याय दर्शन को तर्क शास्त्र नाटक कारुं बान जरोरी ग्रंथ च .
कणाद औ 'वैशिषिकी दर्शन' स्वांग कारुं तैं बथान्द बल को को २३ गुण छन जो अलग अलग पाच्याण बणान्दन.
उपनिषदुं मा नारद-उपनिषद बथान्द बल सही सम्वाद कनो हूण चयेंद त छान्दोगेय उपनिषद का कत्ति सूत्र बथान्दन बल
कै बि चरित्र चित्रण मा चरित्र औ विकासौ पांच सीढ़ी होन्दन जो आवश्यक छन
वात्सायन को काम सूत्र नाटक मा श्रृंगार रस कनो पैदा हुंद का बान नाटककारुं तैं वंचण जरूरी च.
ये भाग मा भारत मुनि क नाट्य शास्त्र अर हौरी लिखवारूं नाट्य शास्त्र अर वात्सायन-कृत काम सूत्रौ कुछेक सूत्रों पर इ बात होली
नायकौ आदर्शीकरण
भारतीय नाट्य शाश्त्र्युं न हमेशा इ एक आदर्श नायक की कल्पना तैं नाटक मा रखणै परम्परा निभाई . आज बि नया प्रकार का नाटक विधा-
फिलम, टी.वी सीरियल या वीडियो फिलम आदर्श नायक का अधार पर इ नाटकीयता लांदन.
भरत मुनि क बुलण छौ बल 'भौत सा मनिखों मा जो फून्दा/अग्रणी ह्वाओ ओ नायक च.
रामचंद्र गुन्चंद्र न नात्य्दार्पण मा बिंगाई बल नायक प्रधान फल भोगी होंद अर नायक अव्यसनी होण चएंद मतबल काम
रोष, घमंड, मोह लोभ से दूर .- प्रधान फल संपन्नअव्य्व्सनीमुख्य नायक:
विश्वनाथ बुल्दु बल
त्यागी कृती कुलीन: सुश्रीको रूपयौवनोत्साही
दक्षोअनरक्तलोकस्तेजोवैदिग्ध्यशीलवान्नैता
मतबल नायक दानि, कृतग्य, पंडित, कुलीन, लक्ष्मीवान, लोको अनुराग पाण वळु,बिगरैल, उलारु , तेजस्वी , हुस्यार अर
मयल होण चयेंद .
उख धनजय न बताई बल नायक मयळु, बिग्रैलू , त्यागी, उयार वळु , स्ब्युं तैं पुळयाण मा उस्यरा, साफ़, बुलणम हुस्यार,
कुलीन, अडिग परकिरती को, जवान, बुद्धिमान, उलारो, शाश्त्रुं जणगरु, कौंळदार, भड़, इज्जतदार होण चयेंद
सात्विक गुण
स्वान्गु मा गति लाणो बान नायक मा शोभा, विलास, माधुरी, गाम्भीर्य, स्थैर्य , तेज, ललित्य, औदार्य आठ सात्विक गुण दिखाण चयेंदन.
स्वाभाव मा चारित्रिक प्रकृति , श्रृंगार भाव अर सामान्य स्वाभाव से नायकुं वर्गीकरण करे गे
हौरी मरद पात्र
१- पीठ मर्द याने नायकौ मुख्य सहायक
२ - विदूषक- जु अपण कर्तबुंन हन्सादु ह्वाऊ
३- विट - श्रृंगार सहाय, राज्य सहाय, अंत:पुर सहाय, डंड सहाय , धर्म सहाय जन पाठ खिलण वाळ
४- खलनायक - जो नायकौ प्रतिकूल होउ जन से नाटक मा संघर्ष , द्वंद आन्द
नायिका
नायका क तीन मुख्य भेद छन - स्वकीया, परकीया या गणिका अर फिर आयु आदि क बि भेद छन
यांक अलावा नाट्य शास्त्र या हौरी स्वांग शास्त्रों मा स्वाधीनपतिका, वासकसज्जा, विरोह कंठिता,
खण्डिता, कालाहान्तरिता, विप्रलब्धा , प्रोषित्पतिका अर अभिसारिका जन नय्काओं बात बि होए.
हौरी जनानी पात्र
नायका की नौकर्याणि, दगड्याणि, रैबर्याण, , पड़ोसन, संयासनी, शिल्पी आदि क बि कल्पना भारतीय नाट्य विशेषज्ञों न करीं च ,
चरित्र चित्रण का प्रतीक
भाषा या बुलणो रिवाज,बुलाणो ढंग अर बुलण मा रिश्तेदारी
भेष भूसा
भौं भौं करतब
वात्सायन का काम सूत्र मा चरित्र चित्रण
या खौंळेणौ बात च बल हिंदुस्तानौ नाटक समीक्षक अरस्तु तैं त बांचदा छन पण चरित्र चित्रण
अर मनोविग्यानौ मामला मा वात्सायन को काम सूत्र को ज़िकर नि करदन जब कि वात्सायनऔ
कामसूत्र नाटककारूं बान एक बड़ो मददगार ग्रन्थ च
काम सूत्र मा स्वांगु लैक भौत सी बात छन जन कि -
१- चौसठ आजीविकौ कला- यां से पता चलदो कि पात्र कि क्या आजीविका च
२-नागरिक को रोजानौ जीवन- जख मा सामाजिक, धार्मिक काज, मनोरंजन का साधनु बात ह्व़े
३-जनान्युं प्रकार
४- प्रेमी तैं पटाणो अर प्रेम तैं जीवित रखणो ढंग
५-भौं भौं किस्मौ ब्यौ
६- प्रेम मा को को मरद सफल होन्दन (वात्सायन न २४ प्रकारौ मनिखों विवेचन कार )
७-इकतालीस किस्मौ जनानी जु पटी सकदन
८-जनान्यूँ मनोविज्ञान
९- गणिका कन मरद तैं पसंद करदी
१०- प्रेम्युं मनोविज्ञान
११- आकर्षित करणो भौतिक ढंग /रीति
सन्दर्भ -१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना ४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,
८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ - ड्रामा लिटरेचर
१२ - डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख १६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना
२३-मारेन एलवुड ,१९४९, कैरेकटर्स मेक युअर स्टोरी
२४- वात्सायन कु कामसूत्र अर नाटक विधा
बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा......
फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ' आशाराम ' मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक 'असगार' मा चरित्र चित्रण
३- भीष्म कुकरेती क नाटक ' बखरौं ग्वेर स्याळ ' मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया
३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत

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