Aryan Societies Spread in context History of Haridwar, Bijnor and Saharanpur
History of Haridwar Part --37
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -37
संदर्भ - डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 31 /12/2014
हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यजनो का प्रसार
History of Haridwar Part --37
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -37
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
यद्यपि आर्यों का मूलस्थान पर विवाद हैं किन्तु भारत में आर्य संस्कृति , समाज के प्रसार की गाथाएं वेदों में उपलब्ध हैं।
ऋग्वेद में आर्य जाति का इतिहास आर्यों के पंजाब बसाहत के 2 -3 शताब्दियों पश्चात शुरू हो सका।
आर्य तत्कालीन भारतीय समाज को प्रभावित कर रहे थे और आर्यजन भी अनार्य जातियों की भाषाओं व संस्कृति से प्रभावित हो रहे थे।
पंजाब में बसते समय आर्य जाति निम्न जातियों में बंटीं थी -
१- पुरू - रावी नदी के पूर्व में बसे थे
२- यदु -सतलज और रावी की निचली भूमि बसे थे
३- तुर्वस -सतलज और रावी की निचली भूमि बसे थे
४- द्रह्यु -रावी के पश्चिम में झेलम तक
५- अनु -रावी के पश्चिम में झेलम तक
ऋग्वेद के समय तक आर्यजनों की संख्या वृद्धि हो चुकी थी और निम्न शाखाएं भी जुड़ चुके थे -
६- भरत
७- तत्सु
८- कुशिक आदि
९- सृञ्जयजन -सतलज -व्यास के मध्य
१०- पक्थ -सिंधु पश्चिम से झेलम के पश्चिम तक
११- भलान -सिंधु पश्चिम से झेलम के पश्चिम तक
१२- अलीन -सिंधु पश्चिम से झेलम के पश्चिम तक
१३- विषाणी -सिंधु पश्चिम से झेलम के पश्चिम तक
१४- शिविजन -सिंधु पश्चिम से झेलम के पश्चिम तक
आर्यजन आपस में लड़ते -झगड़ते रहते थे और एक दूसरे से सहायता लेते रहते थे।
ऋग्वेदिन आर्यजन सिंधु नदी से पंजाब में सतलज तट तक फैले थे।
संदर्भ - डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 31 /12/2014
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History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास -भाग 38
(The History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur write up is aimed for general readers)
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