Food Habits /Culinary Arts and Agriculture of Vedic Aryans in terms of History of Haridwar, Bijnor and Saharanpur
हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में वैदिक आर्यों का भोजन व कृषि कला
***संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2 /1/2015
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History of Haridwar Part --38
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -38
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -38
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
दिवोदास के समय तक वैदिक आर्यों का प्रसार यमुना के पश्चिम वर्तमान हरियाणा तक ही था। कुछ वैदिक आर्य वस्तियां सिरमौर की पहाड़ियों के नीचे तक भी अवस्थित थीं।
पशुचारक आर्य ऋग्वेद के समय कृषि अपना चुके थे। भूमि अरण्य व क्षेत्र (कृषि लायक ) में विभक्त हो गयी थी।
आर्य उर्बरा भूमि में साल भर में दो खेती करते थे। सिंचाई भी करते थे। हल बैलों से खींचा जाता था। हल दो बैलों से लेकर 12 बैलों से खींचा जाता था। इससे ज्ञात होता है कि वैदिक आर्य मैदानी हिस्सों तक सीमित थे।
पकी फसल को दराती से काटा जाता था। पूलों में बांधकर फसल लायी जाती थी और फिर मांडी जाती थी। भूसा अलग करने की विधि भी अपनाई जाती थी।
आरम्भ में केवल जौ की खेती की जाती थी और बाद में निम्न अन्न उगाये जाते थे -
धान (ब्रीहि )
मूंग
उड़द /मॉस
तिल
अणु
खल्व
प्रियंग
मसूर
श्यामक आदि
फलों में निम्न फल खाए जाते थे -
कर्कन्धु
कुवल
बदर याने बेर
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राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
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