Aryans De-Rooting Hill Asur Kingdoms in contextHistory of Haridwar ,Bijnor and Saharanpur
हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों द्वारा असुर जनपदों का उत्पाटन
History of Haridwar Part --45
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -45
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
History of Haridwar Part --45
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -45
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
आर्य जनपदों की स्थापना
आर्य समाज ने भारत में प्रवेश सेना के साथ नहीं किन्तु परिवार , चल सम्पति व पशु सम्पति के साथ किया था। अतः कहा जा सकता है कि आर्यों का विस्तार सेना की सहायता से नही बल्कि सामाजिक उच्चता याने सम्पति- समृद्धि प्राप्ति से हुआ।
आर्य अपने पशुओं को लेकर चराई वाले क्षेत्रों से धीरे धीरे आगे बढ़े। उन दिनों सप्तसिंधु या सिंधु -सतलज क्षेत्र में उस समय अन्य जनपद थे। ये जनपद भी सिंधु घाटी संभ्यता समाज समान अपनी रक्षा या जमीन के प्रति सावधान नही थे। अतः ये जनपद आर्यों के चारागाहों में आने के बाद पूर्व व दक्षिण की ओर हटते गए और कुछ यहीं रहीं और आर्यों के साथ कलह में शामिल थीं । आर्यों के पहले सिंधु क्षेत्र में कॉल , द्रविड़ , खस जातियां बसी थीं। आर्य प्रसार युद्ध से नही हुआ। तभी तो कुभा से लेकर शुतुद्रि तक पंहुचने के लिए आर्यों को 300 साल या नौ दस पीढ़ियां लगीं। आदि समाज के ऊपर आर्यों का शाशन बढ़ता गया।
सप्त सिंधु आर्यजनों में पुरू , यदु , तुर्वस , द्रह्यु जनपद मुख्य थे।
धीरे धीरे इन आर्य जनपदों ने अनार्य जनपदों को नष्ट करना शुरू किया और पूर्व की ओर बढ़ना शुरू किया। आर्यों की तुत्सु भरतों की एक उपशाखा थी। इनमे बद्रयश्व , उसका पुत्र दिवोदास और पौत्र सुदास प्रसिद्ध हुए। दिवोदास ने अपने जनपद के उत्तर में हिमालय की निचली ढालों में बसे जनपदों का उत्पाटन किया। सुदास ने सप्तसिंधु व पंजाब के आर्यों को एकजुट करने की कोशिस की।
सुदास की महत्वाकांक्षा का अन्य आर्य जनपदों जैसे यदु , तरवस , पक्थ , भलान , अलीन , विषाणी, शिव आदि जनपदों ने भारी विरोध किया।
आर्यों द्वारा असुर जनपदों का उत्पाटन का शेष भाग अगले अद्ध्याय में पढ़िए -
**संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 17 /1/2015
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**संदर्भ - ---
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डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
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History of Haridwar to be continued in हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास -भाग 46 History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur
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