Best Harmless Garhwali Humor , Satire, Wit, Sarcasm , Garhwali Vyangya , Garhwali Hasya
मि गढ़वाळ मा कख कख नि जयुं छौं !
गौंत्या : भीष्म कुकरेती
मीन भौत जात्रा करीं छन , सरा भारतौ भ्रमण कर्यूं च अर अपण ससुराल ढौंढ एक दैं दिखणै इच्छा त छैंइ च। अंग्रेजी मा आधुनिक गढ़वाली साहित्य अर लोक साहित्य पर हजारों लेख , उत्तराखंडौ इतिहास पर अंग्रेजी मा पांच सौ से अधिक लेख अर गढ़वळि मा द्वी हजार से अधिक चबोड़्या लेख पढ़ण से लाखों पाठकुं तैं गलतफहमी रौंदि कि म्यार सरा उत्तराखंड घुम्युं च। अर मी तैं अपण पाठ्कुं समझ पर घमंड च। पर असलियत अर छवि मा अंतर च। म्यार दगड्या हेमा उनियाल , पूरण पंत पथिक , मदन डुकलाण, बी मोहन नेगी, संदीप रावत आदिन मेसे ज्यादा उत्तराखंड घुम्युं च पर पाठक समजदन कि यूंन ले क्या गढ़वाळ देखि ह्वाल जु भीष्मन देखि ह्वाल। संदीप रावतन घूमिक गढ़वाली भाषा इतिहास ल्याख , डा हेमा उनियालन उत्तराखंड जाण अर मीन यूंक किताब पढ़िक अपण पाठक लोगुं तैं उत्तराखंडौ बारा मा बथाइ। खैर उन त बुले जांद बल अपण घरवळि से अपण प्रेमिकाओं बारा मा नि बताण चयेंद अर अपण पाठकों से भेद नि बताण चयेंद कि मीन कनकै ल्याख पर आज मूड च कि मि आप तैं बतौँ कि मीन उत्तराखंड मा क्या क्या नि द्याख। सबसे पैल मि दुबर बथै द्यूं कि म्यार स्यूंसी -बैजरों नी दिख्युं , ढौंडियाल्स्युं मा अपण ससुराल ढौंड बि नी दिख्युं च अर मेरी घरवळिन बि ढौंढ नी दिख्युं च। अर मि बड़ो घमंड से सब तैं बथांद बि छौं कि म्यार अपण ससुराल नी दिख्युं । हम तैं छुट इ बिटेन बताये गए छौ कि दिल्ली अर मुंबई मा नौकरी सरलता से मिलदी तो हमेशा मि पश्चिम मुखी रौं अर मीन कुमाऊं का क्वी हिस्सा नि द्याख तो समझी ल्यावो कि मीन नैनीताल का दर्शन नि कर्याँ छन। अर नैनीताल वळु तैं मलाल बि नी च कि भीष्म कुकरेतीन अबि तक नैनीताल नि द्याख। उनि जिम कॉर्बेट पार्क का शेर अर चखुलों तैं मि तैं दिखणै अभिलाषा छैं इ नी च त किलै मि जिम कॉर्बेट पार्क जौं भै ! अब आपन पुछण कि जब मि जिम कॉर्बेट पार्क नि ग्यों तो राजा जी नेसनल पार्क किलै ग्यों ? भै मि राजा जी नेसनल पार्क दिखणो नि ग्यों। उ त ऋषिकेश या स्वर्गाश्रम से अपण गां जाण हो या कोटद्वार से हरिद्वार आण हो तो बीच मा राजा जी नेसनल पार्क का बोर्ड लग्याँ ह्वावन तो इखमा मेरी क्या गलती ? हैं ? अब यदि हरिद्वार से ऋषिकेश का बीच मा रायवाला या श्यामपुर ऐ जांदन त आँख थुड़ा बुजे जांदन। दिखणि पोड़दन। चूँकि मि तैं नौकरी जरूरत छे तो मि युवावस्था मा श्रीनगर ग्यों , निथर सन 1815 से हम सलाण्यूंन श्रीनगर से नाता तोड़ि दे छौ। टिहरी मा , उत्तरकाशी मा , गोपेश्वर मा नौकरी मिलदी नि छे त मि केदारनाथ , गंगोत्री -जमनोत्री बि नि ग्यों। टिहरी दिखणो बिगरौ त छौ पर दिखणौ मौक़ा नि मील। इलै मीन डूबती टिहरी पीड़ा पर एक बि लेख नि ल्याख। उन बि मि छुट छुट बांधों समर्थक छौं त में से टिहरी डुबण पर उथगा दुःख नि ह्वे जथगा दुःख यांपर ह्वे कि म्यार रिस्तेदारुं जौंक एक झुपड़ा बि नि छौ , उख किराए मा रौंद छा उंन चर चर दैं पुनर्निवास का पैसा खैन अर अबि बि देहरादून का घंटाघर मा हड़ताल करदन कि पुनर्वास मा धांधली चल।
5/1/15 , Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
Garhwali Vyangya , Garhwali Hasya,
मि गढ़वाळ मा कख कख नि जयुं छौं !
मीन भौत जात्रा करीं छन , सरा भारतौ भ्रमण कर्यूं च अर अपण ससुराल ढौंढ एक दैं दिखणै इच्छा त छैंइ च। अंग्रेजी मा आधुनिक गढ़वाली साहित्य अर लोक साहित्य पर हजारों लेख , उत्तराखंडौ इतिहास पर अंग्रेजी मा पांच सौ से अधिक लेख अर गढ़वळि मा द्वी हजार से अधिक चबोड़्या लेख पढ़ण से लाखों पाठकुं तैं गलतफहमी रौंदि कि म्यार सरा उत्तराखंड घुम्युं च। अर मी तैं अपण पाठ्कुं समझ पर घमंड च। पर असलियत अर छवि मा अंतर च। म्यार दगड्या हेमा उनियाल , पूरण पंत पथिक , मदन डुकलाण, बी मोहन नेगी, संदीप रावत आदिन मेसे ज्यादा उत्तराखंड घुम्युं च पर पाठक समजदन कि यूंन ले क्या गढ़वाळ देखि ह्वाल जु भीष्मन देखि ह्वाल। संदीप रावतन घूमिक गढ़वाली भाषा इतिहास ल्याख , डा हेमा उनियालन उत्तराखंड जाण अर मीन यूंक किताब पढ़िक अपण पाठक लोगुं तैं उत्तराखंडौ बारा मा बथाइ। खैर उन त बुले जांद बल अपण घरवळि से अपण प्रेमिकाओं बारा मा नि बताण चयेंद अर अपण पाठकों से भेद नि बताण चयेंद कि मीन कनकै ल्याख पर आज मूड च कि मि आप तैं बतौँ कि मीन उत्तराखंड मा क्या क्या नि द्याख। सबसे पैल मि दुबर बथै द्यूं कि म्यार स्यूंसी -बैजरों नी दिख्युं , ढौंडियाल्स्युं मा अपण ससुराल ढौंड बि नी दिख्युं च अर मेरी घरवळिन बि ढौंढ नी दिख्युं च। अर मि बड़ो घमंड से सब तैं बथांद बि छौं कि म्यार अपण ससुराल नी दिख्युं । हम तैं छुट इ बिटेन बताये गए छौ कि दिल्ली अर मुंबई मा नौकरी सरलता से मिलदी तो हमेशा मि पश्चिम मुखी रौं अर मीन कुमाऊं का क्वी हिस्सा नि द्याख तो समझी ल्यावो कि मीन नैनीताल का दर्शन नि कर्याँ छन। अर नैनीताल वळु तैं मलाल बि नी च कि भीष्म कुकरेतीन अबि तक नैनीताल नि द्याख। उनि जिम कॉर्बेट पार्क का शेर अर चखुलों तैं मि तैं दिखणै अभिलाषा छैं इ नी च त किलै मि जिम कॉर्बेट पार्क जौं भै ! अब आपन पुछण कि जब मि जिम कॉर्बेट पार्क नि ग्यों तो राजा जी नेसनल पार्क किलै ग्यों ? भै मि राजा जी नेसनल पार्क दिखणो नि ग्यों। उ त ऋषिकेश या स्वर्गाश्रम से अपण गां जाण हो या कोटद्वार से हरिद्वार आण हो तो बीच मा राजा जी नेसनल पार्क का बोर्ड लग्याँ ह्वावन तो इखमा मेरी क्या गलती ? हैं ? अब यदि हरिद्वार से ऋषिकेश का बीच मा रायवाला या श्यामपुर ऐ जांदन त आँख थुड़ा बुजे जांदन। दिखणि पोड़दन। चूँकि मि तैं नौकरी जरूरत छे तो मि युवावस्था मा श्रीनगर ग्यों , निथर सन 1815 से हम सलाण्यूंन श्रीनगर से नाता तोड़ि दे छौ। टिहरी मा , उत्तरकाशी मा , गोपेश्वर मा नौकरी मिलदी नि छे त मि केदारनाथ , गंगोत्री -जमनोत्री बि नि ग्यों। टिहरी दिखणो बिगरौ त छौ पर दिखणौ मौक़ा नि मील। इलै मीन डूबती टिहरी पीड़ा पर एक बि लेख नि ल्याख। उन बि मि छुट छुट बांधों समर्थक छौं त में से टिहरी डुबण पर उथगा दुःख नि ह्वे जथगा दुःख यांपर ह्वे कि म्यार रिस्तेदारुं जौंक एक झुपड़ा बि नि छौ , उख किराए मा रौंद छा उंन चर चर दैं पुनर्निवास का पैसा खैन अर अबि बि देहरादून का घंटाघर मा हड़ताल करदन कि पुनर्वास मा धांधली चल।
मि पौड़ी जयूँ छौ अर दूर से मीन निसुड़ी गां बि द्याख पर खिर्सू वाळु क पिपोड़ द्याखो त सै कि खिर्सू वाळु तैं दुःख बि नी च कि मीन खिर्सू नि द्याख। युवावस्था मा मीन सतपुळी का माछा खयाँ छया किंतु अब सतपुली का माछों मा या उड़द की दाळ मा वु सवाद नि रै गे जु सवाद सन 1972 मा छौ। सैत च सिगरेट पीण से जीबौ सवाद बदल गए होलु। अब उन त स्वर्गाश्रम का चोटीवाला होटलम बि वु सवादी भोजन कख मिल्दु ? अर व्यासिम बि अब उन अलु का गुटका अर परांठा कख मिल्दन !
मीन नरेंद्र नगर बि नी दिख्युं च त प्रताप नगर बि नी दिख्युं च। अर म्यार टिहरी वाळ दोस्तुं तैं आश्चर्य बि नि हूंद कि मीन नरेंद्र नगर अर प्रताप नगर नि द्याख। टिहरी का रिस्तेदारुं बुलण च बल जै मनिखौन अपण तहसील लैंसडाउन नि देखि हो वैन नरेंद्र नगर या प्रतापनगर क्या दिखण थौ।
बात बि सै च। हमर इलाका मा हमर जवानी का टैम पर लैंसडाउन जाणो मौक़ा तीन तरह से मिल्दो छौ। यदि दसक इमतान दीणो जहरीखाल जाण , यदि फ़ौज मा भर्ती हूण या पेन्सन लाण। मीन दसक इमतान देहरादून माँ दे अर हमर बूड़ खूड अंग्रेजुं गुलामी से चिढ़दा छा तो पेन्सन लीणो सवाल इ पैदा नी ह्वे अर गांवक सबि बल्दुंन बोलि याल छौ बल जैसे ज्यु नि उठयांदु वु क्या फ़ौज मा भर्ती ह्वालु। अब तिसर बातौ बान बि लैंसडाउन जाए जांद छौ। यदि तुम तैं मुकदमा बाजीक व्यसन हो या दूसरों वाड सरकाण मा मजा आंद हो तो काळो डांडा याने लैंसडाउन जाण पड़द छौ। उन जब मि अपण पट्टी की पटवारी चौकी गटक्वट - घणसाळी नि ग्यों तो म्यार लैंसडाउन माँ क्या काम हूण थौ जु मि लैन्सडौनौ जड्डू खौं !
हाँ बद्रीनाथ मि जयूँ छौं अर तब पता चौल कि शंकराचारजी महान इ ना जिगरबाज बि छा।
उन एक सीक्रेट हैंक बि च। हमर गांमा पल्तिर एक पाणि इन च बल जु सबसे ठण्डु , स्यळण , बरमस्या पाणि च अर म्यार वु पाणि बि नी दिख्यु च। खैर जब दिखणो की इ बात ऐ गे तो मीन वु पुंगड़ बि नि दिख्यां छन जौं पुंगड़ों मा हमर बूड ददा जी क बुबाजी जौ बूंदा छा।
5/1/15 , Bhishma Kukreti , Mumbai India
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