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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, January 21, 2015

आर्यों द्वारा दास प्राप्ति

 Aryans Conquering for Slaves

                                 हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों द्वारा दास प्राप्ति 

                                                                  History of Haridwar Part  --46   

                                                         हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -46                                                                                      
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 
 सप्तसिंधु क्षेत्र में 300 वर्ष विताने के वाद आर्यों की जीवनपद्धति में परिवर्तन हुए।  धीरे धीरे आर्य निरा पशुचारक न रहकर कृषक -पशुचारक बन चुके थे। पशुपालन व कृषि एक दूसरे के पूरक बन चुके थे। कृषि कार्य व पशुपालन से सम्पति वृद्धि हेतु मानव श्रमिकों की आवश्यकता पड़ने पर आर्यों ने दास -दासियों का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया था। 
 ज्यों ज्यों कृषि -पशुपालन से समृद्धि -सम्पति वृद्धि की लालसा बढ़ती गयी आर्यों को दास दासियों की आवश्यकता पड़ती गयी।  अब आर्य अन्य भारतीय जातियों से कृषि भूमि , अनाज , ही नही छीनने लगे अपितु दास दासियाँ भी छीनने लगे या अनार्यों दास बनाने लगे। आर्य अब दासों के लिए भी अनार्यों के गाँवों पर भी छापे मारने लगे।

कृष्णवर्ण वर्ग वाले दो वर्गों में बांटे जाते हैं- द्रविड़ व गुहावासी।  द्रविड़ों व गुहावसियों से आर्यों का घोर संघर्ष चला था।  किन्तु ऋग्वेद काल में द्रविड़ व गुहावासी आर्यों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे। 
 ऋग्वेद अनुसार अनार्य या दास जाति कृष्ण वर्ण व लिंग पूजक थे। यद्यपि किरात पीले थे  किन्तु आर्यों ने उन्हें कृश्णवर्ण वर्ग में ही रखा अनार्य पत्थरों के दुर्ग निवासी याने  गुफावासी थे। इतिहासकार इन्हे किरात जाति के मानव मानते हैं जो पंजाब की पहाड़ियों से लेकर सहारनपुर , हरिद्वार , बिजनौर , गढ़वाल की भाभर तराई क्षेत्रों में फैले थे। 
 



**संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज 
Copyright@ 
Bhishma Kukreti  Mumbai, India 18 /1/2015 

Contact--- bckukreti@gmail.com 
History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 47 
History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur 
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