नेगी जी
सम्नैन!
विजय भाई कि एक सुन्दर कविता भेजणु छौं
बिचरा पोड़
विजय कुमार मधुर
वो ब्व्ल्दन
सलाम ठोकी
धाद मारि
भारे !
इबरी दां
चुनौमा
पढ़यां लिख्याँ
आदिम तैं ही
दिंया बोट !
मतलब साफ च
पढ़यां लिख्याँ
पोड़ नि छन
जु डटयाँ रंदी
अपणी जगा
थामिकी रख्दन
बढा बढा
डांडा कांठा
रौला गदना
बढा बढा गौं
बढ़ी बढ़ी मौ !
सैन्त्दा छन
ड़ाला ब्वाटा
पुंगडा पटला
कुकर बिरला
गोर बखरा
घ्वीड काखड
रिख बाघ !
कीड़ा - मक्वडौं
बिषला गुरौं तैं बि
दिन्दन ओट
कबि कैमा
नि मंग्दन बोट !
कॉपी राईट @ २०११ विजय मधुर
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