गढवाळऐ बड़ा आदिम (मलारी काल से लेकी अब तलक: फडकी -१ )
भीष्म कुकरेती
(गढवाल कि विभूतियाँ : मलारी युग से आज तक भाग-१ )
( Great Personalities of Garhwal from Malari Era to till Date Part -1 )
गढवाल का बड़ा आदिम : भाग -१
( ये लेख कु उद्देश्य नवाड़ी साख/छिंवाळी/न्यू जनरेशन तैं गढवाळी भाषा मां अपण ऊँ लोकुं तैं याद कराण जौंक कारण आज गढवाळ च , जौंक वजै से आज हम तैं घमंड च / गर्व च )
मलारी जुग का नामी गिरामी गढवाळी (बड़ा आदिम /महान विभतियाँ)
मलारी सरदार : गढवाळ मा मलारी सभ्यता वेदूं सभ्यता से भौत पैलाकी च . डा. शिव प्रसाद डबराल की खोज से (कर्म भूमि १९५६ अर १९५८ का लेख)
एक मलारी सरदार की समाधी ११००० फीट पर नीति घाटी कु गाँव मलारी मा मील मील. सरदार बड़ो वीर छयो.इस लगद यू मलारी सरदार ५००० साल पैलाकू सरदार छौ
वेदूं, महाभारत, पुराणु मा वर्णित गढवाली बड़ा आदिम (विभूतियाँ )
भेद नरेश : ऋग्वेद कु हिसाब से गढवाल मा भेद नरेश एक अनार्य राजा छौ अर वैन अपण अधीन भड़ू (बीर) अज, शिग्रु, यक्षु की सहायता से आर्य राजा सुदास को दगड भारी लडै करी छे . भेद नरेश न
शम्बर की भी हत्या करी थौ. भेद तैं सुदास न मारी छौ
अज : खरसाली को मंदिर को हिसाब से इन लगद अज ऋग्वेदीय समौ मा गढवाल अर हिमाचल कु खस रज्जा छौ
शिग्रु : इन मने सक्यांद ऋग्वेद कु समौ मा शिग्रु भाभर अर शिवालिक पख्यडों कु रज्जा छौ
पैलू वेनपुत्र : महाभारत /पुराणु क हिसाब से यू अत्याचारी रज्जा वेन कु बै जंघड़ से पैदा ह्व़े अर गढवाल अर हौरी पहाड़ों का गोंड, कोल, भील जात्युं आदि बुबा छौ.
दुसुर वेनपुत्र : वेन कु दें जंघड़ से दुसुरु नौनु पैदा ह्व़े अर वैन उत्तराखंड को दखिणी भाग, भाभर, अर उत्तरप्रदेश पर राज कौर . एको क्वाठा भितर (राजधानी) हरिद्वार छे.
कोल राक्षस : केदारखंड मा कोल राक्षस को बिरतांत च जैन उत्तराखंड पर राज करी थौ अर राजा सत्य संध न कोल राक्षस की हत्या करी थौ.
सत्य संध : सत्य संध न कोल राक्षस तैं मारिक उत्तराखंड पर राज करी थौ.
पुरूरवा अर उर्वशी : हरिवंश को हिसाब से पुरुरवा अर उर्वशी न बद्रिकाश्रम जं जगा मा वास करी छौ अर पर्वतीय दासुं तैं मारी छौ पण ऊ एक भलो शाषक भी छयो
ययाति जुग
नहुष : नहुष पुरुरवा को नाती छौ अर सैत च वैन उत्तराखंड पर राज करी थौ
ययाति : पुरुरवा को पड़नाती बड़ो भड़ रज्जा थौ अर वैन अपण राज मध्य देस तक पसारी (फ़ैलाया ) थौ
अनु : अनु ययाति को पांच नौन्याळउं मदे एक छौ अर वै तैं भैबांटो मा उत्तराखंड को राज मीली थौ.
अंगिरा ऋषि : अंगिरा ऋषि न बद्रिकाश्रम मा तपस्या कॉरी छौ
मरीचि ऋषि : मरीचि ऋषि न बद्रिकाश्रम मा तपस्या कॉरी छौ
पुलह ऋषि : पुलह ऋषि न बद्रिकाश्रम मा तपस्या कॉरी छौ
मन्धाता जुग या कृत जुग
मन्धाता रज्जा : मन्धाता की राजधानी अयोध्या छे अरउ भौत बड़ी अडगें (क्षेत्र ) कु रज्जा छौ (मध्य देश, पंजाब, मध्य भारत आदि . विक राज उत्तराखंड पर बि छौ
कुत्स : कुत्स मन्धाता कु नौनु छौ अर वैकु बि उत्तराखंड पर अधिकार अपण बुबा जं रये
मुचकुंद : मुचकुंद कुत्स कु लौड़ छौ , अर मान्धाता कु नाती जैकू उत्तराखंड पर अधिकार रयो .
महान त्यागी उशीनगर नरेश : वैदिक साहित्य मा उत्तराखंड कु नाम उशीनगर थौ . ययाति बंशी अनु को झड़ -झड़ नाती उशिनारेश ण फिर से उत्तराखंड पर राज करी . उशिन्रेश बड़ो त्यागी छौ. एक दें
इंद्र अर अग्नि न उशिनारेश क त्याग कि परीक्षा बान बाज अर कबूतर को रूप धारण करी . उशिनारेश या उत्तराखूंट नरेश न कबूतर की जाण बचौणोऊ खातिर अपण जंघड़उं , सरैल कु मांश तराजू मा छधी थौ
इथगा बड़ो त्यागी थौ उत्तराखूंट को ऊ रज्जा .
मुनि बशिष्ठ : एक अन्य मुनि बशिष्ठ की छ्वीं महाभारत आदि पर्व (९९/६-७ ) मा च जखमा मुनि बशिष्ठ की बात करे गे बल सहस्त्रार्जुन का दौरान भृगुवंशी लोक मुनि बशिष्ठ को आश्रम, उत्तराखूंट मा लुक्याँ रैन
कण्व ऋषि : कण्व ऋषि गढवाली ऋषि थौ अर मालिनी नदीक किनारों (कोटद्वार, भाभर ) पर वैकु आश्रम छौ . कण्व ऋषि विश्व मित्र अर मेनका कि नौनी शकुन्तला को धर्म बुबा को नाम से पछ्याणे जांद .
शकुन्तला : शकुन्तला को जन्म , परवरिश , भरण पोषण मालनी न्दी क किनारों पर ही ह्व़े . वा दुष्यंत रजा कि राणि बौण . शकुन्तला सही माने मा गढवाळी ही छे
भरत : भरत शकुन्तला अर दुष्यंत कु नौनु छौ अर गढवाली छौ जैक जनम , परवरिश मालनी नदी (कोटद्वार ) क किनारों पर ही ह्व़े . वो बड़ो भड़ छयो अर वैको नाम से ही आज जम्बुद्वीप को नाम भारत पोड़ी .
भृगु ऋषि : महाभारत का तीर्थ पर्व मा भृगु संहिता कु लिख्वार भृगु मुनि की छ्वीं छन. ब्रिगु ऋषि क आश्रम हरिद्वार का न्याड़ बताये गे अर हरिद्वार कु पास ही आज भी उदयपुर पट्टी, यमकेश्वर क्षेत्र , पौड़ी गढवाल क भृगुखाळ जगा च .
अगने बाँचो --लन्गत्यार मा ..... फडकी द्वी (2)
क्रमश : ...भाग दो
Continued .... part 2
(This article is not history account but is the description of Great Garhwalis based on the book Uttarakhand ka Itihas part-2 by Dr Shiva Nand Dabral , 1968 and other books as Mahabharat .
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