'सिँह ग्रन्थावली': गढ़वाली साहित्य के युगपुरुष भजनसिँह 'सिंह' के कृत्तित्व का साक्षात्कार कराता एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ।
'सिँह ग्रन्थावली' नाम से गढ़वाली भाषा साहित्य का महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है।गढ़वाली साहित्य के युगपुरुष भजन सिंह 'सिँह' की पुस्तकों को ग्रन्थाकार सम्पादित किया है जाने माने पुरातत्वविद एवँभाषाविद डॉ0 यशवंत सिंह 'कटोच' ने।यह ग्रन्थ पाठक को गढ़वाली भाषा के प्रबल समर्थक कवि भजन सिंह 'सिँह' के कृत्तित्व का साक्षात्कार कराता है।
इस ग्रन्थावली में‘सिंह’जी की 3 प्रकाशित पुस्तकें तथा उनकी कुछ अप्रकाशित स्फुट रचनाएँ संकलित की गई हैं।उनकी प्रकाशित और लोकप्रिय पुस्तकों में 'सिंहनाद' (सन 1930)' सिँह 'सतसई'(सन1985) और ' गढ़वाली लोकोक्तियॉं (सन 1970)' शामिल हैं। संपादक डॉ0 कटोच ने इस ग्रंथावली में सिँह जी की उक्त 3 पुस्तकोँ के अतिरिक्त सिँह जी द्वारा सम्पादित कुछ लोकगाथाएँ तथा उनके द्वारा अन्य भाषाओँ से गढ़वाली में अनूदित कुछ स्फुट रचनाएँ संकलित कर पाठकोँ के लिए ग्रन्थावली की उपादेयता बढ़ा दी है। एक तरह से 'सिंहनाद' का कुल मिलाकर यह चौथा संस्करण प्रकाशित हुआ है। गढ़वाली साहित्य में'सिंहनाद' ने अद्वितीय लोकप्रियता हासिल की। साहित्य मर्मज्ञों ने इसे कविवर की श्रेष्ठतम कृति बताया। यह सिँह ग्रंथावली युगपुरुष भजन सिंह 'सिँह' के प्रशंशकों के लिए एक नायाब तोहफा है।
भजन सिंह 'सिँह' जी का जन्म 29 अक्टूबर 1905 में हुआ। संयोग से आधुनिक दौर में गढ़वाली की पहली कविता गढ़वाली' नामक मासिक पत्रिका में सन 1905 में ही प्रकाशित हुई। गढ़वाली भाषा और साहित्य के पुनर्जागरण के वर्तमान दौर में अगर सन 1905 को आधार मानकर चलें, तो भी सौ साल से भी अधिक समय के गढ़वाली भाषा के सक्रिय लेखन के बाद भी गढ़वाली भाषा का पाठक भाषा सम्बन्धी जानकारी के बारे में शंकित एवं भ्रमित रहा है। गढ़वाली भाषा के साहित्य की अनुपलब्धत्ता अथवा कमी इस बात का प्रमुख कारण हो सकती है।
गढ़वाली साहित्य में भजन सिंह 'सिँह' को युग प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। गढ़वाली साहित्य में स्वतन्त्रता पूर्व का युग 'सिंह' युग के नाम से जाना जाता है। सिंह ने पर्वतीय जनपदों में सुधारवादी आंदोलन का नेतृत्व किया। अतः तत्कालीन सुधारवादी युग 'सिंह' युग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सिंह जी की रचनाएँ 'सिंहनाद' और सिँह सतसई' मूलतः काव्य कृतियां हैं 'परन्तु अपनी इन दोनों पुस्तकों की भूमिका में सिंह जी ने गढ़वाली भाषा के बारे में काफी बिस्तार से चर्चा की है,और जानकारी देने का प्रयास किया है। 'सिँह ग्रन्थावली' का अध्ययन कर लेने के पश्चात पाठकबृन्द गढ़वाली भाषा के अपने दृश्टिकोण में बड़ा और सकारात्मक फर्क महसूस करेंगे ,ऐसा मेरा विश्वास है।'सिंहनाद' में सिंह जी ने गढ़वाली भाषा के बारे में कई विचारोत्तेजक दृश्टान्त सामने रखे हैं ,यही कारण है कि 'सिंहनाद' को गढ़वाली भाषा में सम्पूर्ण क्रांति की पुस्तक कहा जाता है।गढ़वाली भाषा के बारे में सिँह जी की सोच सुस्पस्ट और प्रखर रही है। सिंहनाद के प्रथम खंड गढ़वाली भाषा और लोकसाहित्य शीर्षक के अंतर्गत उन्होंने भाषाविदों को आढे हाथों लेते हुए लिखा है ''भाषा विशेषज्ञों ने गढ़वाली भाषा को भारत की आर्य भाषाओँ से पृथक 'मध्य पहाड़ी' भाषा नाम दिया है। भारतवर्ष के भाषा कोष में 'मध्य पहाड़ी' भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है।''
भजन सिंह 'सिँह' लीक से हटकर चलने वाले रचनाकार रहे हैं। 'सतसई' में परंपरा 700 दोहों की है ,परन्तु उनकी काव्यकृति 'सिँह सतसई' में 1259 दोहे शामिल हैं।अपने एक आत्मनिवेदन में उन्होंने ये पंक्तियाँ उदृत की हैं
''लीक लीक गाड़ी चले,लीकन्हि चले कपूत ,
लीक छोड़ि तीनोँ चले ,शायर , 'सिँह ', सपूत।''
भजन सिंह 'सिँह' शायर भी थे। वे उर्दू में अच्छी शायरी करते थे। इसका असर उनकी रचनाओं में भीं दीखता है। सिंहनाद में ग़ज़ल शैली की उनकी रचनाएँ ,खासकर मूर्त पत्थर की ,काफी चर्चित रही है।
ग्रन्थावली को 4 भागों में संकलित किया गया है।अगर आप गढ़वाली भाषा और साहित्य में रूचि रखते हैं तो फिर यह ग्रन्थ आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण कृति है। इस ग्रन्थ मेँ सिंह जी की 3 पुस्तकें एक साथपढ़ने को मिल रही हैं। साथ ही ग्रन्थ के चौथे भाग प्रकीर्ण के अन्तर्गत उपयोगी जानकारी संकलित की गई है।
सिँह जी के कृतित्व पर शोध करने के लिए यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। ऐसे दौर में जबकि भाषा और साहित्य के सवाल न केवल भाषा भाषियों के बल्कि सरकारों के द्वारा भी हासिये पर जाते हुए प्रतीत हो रहे हैं,गढ़वाली की नयी पीढ़ी गढ़वाली के पूर्वज लेखकों से ज्यादा परिचित नहीं है,ऐसे कठिन समय में सिँह जी की रचनाओं का संकलन कर डॉ0 यशवन्त सिंह कटोच ने ऐतिहासिक पहल की है। समय समय पर महसूस किया जाता रहा है कि गढ़वाली के महत्वपूर्ण साहित्य का पुनर्प्रकाशन किया जाना चाहिए। डॉ0 कटोच द्वारा निजी प्रयासों से भजन सिंह 'सिँह' के कृतित्व को पुनर्जीवित करने के इस प्रयास की प्रसँशा की जानी चाहिए। 'सिंहनाद' और सिँह 'सतसई' मूल पुस्तकों की अपेक्षा इस ग्रन्थावली में डॉ0 कटोच जी ने पाठकों के लिए पाठ संसोधन (प्रूफ़ रीडिंग) का उत्कृष्ट कार्य किया है। ग्रन्थ में कड़ी मेहनत की गयी है,इसमें दो राय नहीं।
यह ग्रन्थ इस दृस्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भजन सिंह 'सिँह' जी की रचनाएँ लम्बे समय से गढ़वाली साहित्य प्रेमियों के लिए उपलब्ध नहीं थी। उनका बहुत साहित्य अभी भी अप्रकाशित है। गढ़वाल का इतिहास और अन्य कई ग्रन्थों का संपादन कर चुके विद्वान सम्पादक से इस ग्रन्थ मेँ भजन सिंह 'सिँह' का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रकाशित न कर एक बड़ी चूक हो गयी है। नए पाठक भजन सिंह 'सिँह' जी के बारे में परिचयात्मक जानकारी न पाकर जरूर मायूस होंगे।
'सिँह ग्रन्थावली' विनसर पब्लिशिंग कम्पनी के सी सिटी सेन्टर4 डिस्पेंसरी रोड देहरादून से प्राप्त की जा सकती है। 438 पृष्ठ के इस ग्रन्थ की क़ीमत रु0 500 रखी गयी है।
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