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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, December 3, 2017

स्व ईश्वरी दत्त कुकरेती : मल्ला ढांगू के आधुनिक सुश्रुता

(गंगासलाण के विशिष्ठ व्यक्ति श्रृंखला -24 )
  आलेख : भीष्म कुकरेती 
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     सहत्तर के दशक तक गढ़वाल के ग्रामीण भागों में चिकित्सा साधन अति सीमित थे और  प्रत्येक गाँव में स्थानीय चरक व सुश्रुता पारम्परिक वैद या शल्य चिकित्स्क होते थे जो अपने  गाँव व क्षेत्र की सेवा में संलग्न होते थे।  
  जसपुर ढांगू के स्व ईश्वरी दत्त कुकरेती को मल्ला ढांगू वाले और बिछला ढांगू के एक दो गाँवों  में उनकी शल्य चिकित्सा के लिए सदा  याद किया जायेगा। 
  स्व ईश्वरी दत्त जी पूरे क्षेत्र में  मुख्य कारणों के लिए प्रसिद्ध थे - आँखों के पोतळ निकालने ( कंजक्टिवाइसिस में आँख के नीचे की आइ लिड/पलक  में दानों  को काटना )  ततार देना, गुल्ल धरना आदि । 
    वे दिल के पक्के थे और 'आँख आण ' पर भेऊंळ  की सबसे कोमल पत्ती को उल्टा कर नीचे की पलक के दानो को काटते थे।  इस क्रम में  रक्त स्राव भी होता था किन्तु ईश्वरी दत्त जी योगी भाव से शल्य क्रिया करते थे।  उसके बाद पट्टी कर कार्य सम्पन करते थे।  यदि पोतळ  निकालने की आवश्यकता नहीं होती थी तो किनग्वड़ का रस आँखों में डालते थे। उनकी मृत्यु तक उनको पोतळ निकालने में कभी भी अपजस नहीं मिला।  यही कारण था कि उन्हें ग्वील, बड़ेथ ही नही कठूड़ , घनसाळी , गटकोट , जल्ली , कड़ती, गडमोळा गाँव वाले भी बुलाते थे।  
       ईश्वरी दत्त जी ततार देने के भी विशेषज्ञ थे। ततार माने फोड़ा पका हो पर फूट  ना रहा हो तो उस फोड़े को फोड़ने की क्रिया।  ईश्वरी दत्त जी पहले सुआ को लाल  गरम करते थे।   लाल सुवे को बेडू की पतली सींक के अंदर घुसाकर फिर अधपके या पके फोड़े के अंदर घुसेड़ते थे।  इससे पीप बाहर आ जाता था।  फिर पीप जब बाहर आ जाय तो छेद को बेडू के चोप /दूध से बंद कर फिर हल्दी आदि का लेप कर पट्टी करते थे और समय समय पर पट्टी उतरते व चढ़ाते थे। 
  दांत तोड़ने हेतु भी इन्हे ही बुलाया जाता था। 
         बच्चों के पेट  दर्द (जूंक लगना ) में स्व ईश्वरी दत्त जी को माहरत हासिल थी।  इसके अलावा वे यदि बच्चों की टट्टी बंद हो जाय तो साबुन से एनिमा भी देते थे।  
       आवश्यकता पड़ने पर ईश्वरी दत्त जी ताळ भी लगाते थे। 
           ईश्वरी दत्त जी को शल्य क्रिया  में आत्मविश्वास पूरा था तभी तो वे पणसांप या कुछ और ( जिह्वा के नीचे छोटी जीव आना ) को भी गरम सुवे की नोक से डाम कर उस नई जिव्हा के विकास को समाप्त कर देते थे।    
       वे बिना कोई जात -भेद के  कार्य करते थे। उनके इस शल्य क्रिया के पीछे उनका पंद्रह सोलह साल  का नर्सिंग होम का अनुभव था जो उन्होंने कोलकत्ता में प्राप्त  किया था।  
      
     स्व ईश्वरी दत्त कुकरेती स्व अम्बा दत्त कुकरेती के सबसे जेष्ठ सुपुत्र थे याने गुदड़ जी -मणीराम साखी परिवार (बौड़  तौळक ) के थे।   स्व ईश्वरी दत्त का जन्म सन 1900 के लगभग हुआ था।  गाँव के निकट टंकाण स्कूल में उन्होंने चार (प्राइमरी ) पास की थी।  अट्ठारह या उन्नीस साल की उम्र में स्व  ईश्वरी दत्त रोजगार की खोज में कोलकत्ता पंहुच गए।  यह एक आश्चर्य ही है कि आज भी ढांगू वाले कोलकत्ता में नहीं होंगे या  होंगे तो कैसे ईश्वरी दत्त जी कोलकत्ता पंहुचे और किसके संदर्भ से कोलकत्ता पंहुचे ? वहां उन्हें एक प्राइवेट नर्सिंग होम में नौकरी मिल गयी और पंद्रह सोलह साल तक उन्होंने कोलकत्ता के प्राइवेट नर्सिंग होम में वार्ड ब्वॉय या कम्पाउंडर की नौकरी की।  उन्होंने उस डाक्टर का नाम   बताया भी होगा किन्तु वे अधिकतर कहते थे कि उनका मालिक बंगाली डाक्टर था। फिर किसानगिरि हेतु उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कोलकता छोड़ गाँव आ गए । 
     स्व ईश्वरी दत्त कुकरेती जी को नए चूल्हा चीनने व जंदरु के चिकने पाट की छिलाई में भी माहरत थी।  और हमें याद नहीं कि उन्होंने इन सभी कार्यों हेतु कोई मेहनताना लिया हो।  स्व ईश्वरी दत्त जी मेरे पिता जी के ताऊ जी के पुत्र थे। श्री ईश्वरी दत्त क स्वर्गवास 1982 में हुआ।  उनके तीन पुत्र व दो पुत्रियां व उनका भरा पूरा परिवार है । 
       मल्ला ढांगू विशेषतया जसपुर , सौड़ वासी स्व ईश्वरी दत्त कुकरेती के शल्य चिकित्सा सेवा को सदियों तक याद करेंगे।  वे सचमुच में मल्ला ढांगू के आधुनिक सुश्रुता थे।  

सर्वाधिकार @  भीष्म कुकरेती 
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