सिपड़ी चींटी - भीष्म कुकरेती
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एक भग्यान तपस्वी मरणोपरांत उस लोक में गए। उन्हें कुछ दिन नरक भोगना था व कुछ दिन स्वर्ग भोगना था। -
सचिव तपस्वी को स्वर्ग के आंतरिक प्रकोष्ठ में ले गया।
तपस्वी बेहोस हो गए।
कुछ समय पश्चात तपस्वी को होश आया।
स्वर्ग में हर स्थल पर मनुष्य व मनुष्यता पर गहन चिंतन हो रहा था। चिंतन तार्किक ढंग से हो रहा था। कहीं रणनीति पर व्याख्यान -विमर्श हो रहा था। , कहीं कृषि पर विमर्श चल रहा था , कहीं बौद्धिक विकास पर चिंता जताई जा रही थी। पूरे स्वर्गलोक में मनुष्य हित की बात हो रही थी। पूरा वातवरण चिंता व विमर्श युक्त था।
तपस्वी ने सचिव से पूछा - यह कहाँ ले आये मुझे ?
सचिव -स्वर्ग लोक ।
तपस्वी -इतना चिंतित , इतना गंभीर , इतना विमर्श युक्त स्वर्गलोक ?
सचिव - जी हाँ यही तो स्वर्गलोक का असली कर्तव्य है
तपस्वी - यहां तो स्वागत द्वार के बिलकुल विपरीत स्थिति है
सचिव - जी हाँ। स्वागत कक्ष वास्तव में स्वर्ग का विज्ञापन और पब्लिक रिलेसन विभाग संभालते हैं तो ...
तपस्वी - स्वर्ग का स्वागत कक्ष तो भीष्म कुकरेती के लेख शीर्षकों जैसे है। सभी सेल्स या मार्केटिंग वाले एक जैसे ही होते हैं चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर - सभी विज्ञापन कर्मी शीर्षक को आकर्षक बना कर ही परोसते हैं ।
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Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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