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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, December 13, 2017

स्वर्ग लोक का गेट /स्वागत द्वार और भीष्म कुकरेती के शीर्षक

 सिपड़ी चींटी   - भीष्म कुकरेती 
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 एक भग्यान तपस्वी मरणोपरांत उस लोक में गए।  उन्हें कुछ दिन नरक भोगना था व कुछ दिन स्वर्ग भोगना था। 
चित्र गुप्त सचिव - तपस्वी जी आपको नरक भी भोगना है और स्वर्ग लोक भी।  अब आप बताईये पहले कौन सा लोग जाना पसंद कीजियेगा ?
तपस्वी - मुझे पहले जांचना पड़ेगा कि कौन सा लोक कैसे है। 
सचिव - जी आपको मैं  किसी भी लोक में अंदर तो नहीं ले जा सकता किन्तु दोनों के बाह्य स्वागत कोष्ठ या स्वागत स्थल दिखा सकता हूँ। 
सचिव तपस्वी को सर्व प्रथम नरक के स्वागत द्वार पर ले गया। 
नरक का  स्वागत स्थल सुनसान बीरान पड़ा था।  कॉंग्रेस, भाजपा व अन्य पार्टियों जैसे  ही नरक के अनुभव  व नरक में मिलने वाली सुविधाओं व आश्वासन और - फेसबुक में राजनीतिज्ञों के प्रेरणात्मक जैसे नीरस लेखों से होर्डिंग भरे पड़े थे।  नरक का स्वागत स्थल नीरस था। 
 तपस्वी को नरक का नीरसपन जंचा नहीं। 
सचिव तपस्वी को स्वर्ग के स्वागत स्थल की और ले गया।  स्थल आने से पहले ही तपस्वी की नाक में नाना प्रकार के सुंगंधित इत्र व भुने मुर्गों के मसालों की लालसायुक्त सुगंध घुस गई।  कुछ दूर से ही तपस्वी को स्वर्ग लोक के होर्डिंग में पोर्नो फिल्म के पोस्टर दिखने लगे , तपस्वी श्रृंगार रस में बगैर नहाये ही नहा लिए। कहीं पर नौरसी अप्सराएं नृत्य कर रहीं थीं , कहीं पर आशाराम, राम रहीम सरीखों के प्रेम नाटक चल रहे थे।  बड़े सुंदर आखेटक नाट्य नृतिका चल रहे थे।  कुछ लोग बड़े सुखदायी अवस्था में सो रहे थे।  सब जगह श्रृंगार, स्मित  हास्य व सुख की बयार बह रही थी। 
जैसे कि आशा थी तपस्वी को स्वर्ग भा गया।  
तपस्वी ने स्वर्ग लोक जाने की इच्छा जाहिर की। 
सचिव - यह आपका अंतिम निर्णय है ना ?
तपस्वी - इसमें पुनः निर्णय की बात ही नहीं है।  रसयुक्त स्वर्ग का रस्वादन ही उपयुक्त है। 
 सचिव तपस्वी को स्वर्ग  के आंतरिक प्रकोष्ठ में  ले गया। 
तपस्वी बेहोस हो गए। 
कुछ समय पश्चात तपस्वी को होश आया। 
स्वर्ग में हर स्थल पर मनुष्य व मनुष्यता पर गहन चिंतन हो रहा था।  चिंतन तार्किक ढंग से हो रहा था।  कहीं रणनीति पर व्याख्यान -विमर्श हो रहा था। , कहीं कृषि पर विमर्श चल रहा था , कहीं बौद्धिक विकास पर चिंता जताई जा रही थी।  पूरे स्वर्गलोक में मनुष्य हित की बात हो रही थी।  पूरा वातवरण चिंता व विमर्श युक्त था।  
तपस्वी ने सचिव से पूछा - यह कहाँ ले आये मुझे ? 
सचिव -स्वर्ग लोक । 
तपस्वी -इतना चिंतित  , इतना गंभीर , इतना विमर्श युक्त स्वर्गलोक ? 
सचिव - जी हाँ  यही तो स्वर्गलोक का असली कर्तव्य है 
तपस्वी - यहां  तो स्वागत द्वार के बिलकुल विपरीत स्थिति है 
सचिव - जी हाँ।  स्वागत  कक्ष वास्तव में स्वर्ग का विज्ञापन  और पब्लिक रिलेसन विभाग संभालते हैं तो  ...  
तपस्वी - स्वर्ग का स्वागत कक्ष तो  भीष्म कुकरेती के लेख शीर्षकों  जैसे है।    सभी सेल्स या मार्केटिंग वाले एक जैसे ही होते हैं चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर - सभी विज्ञापन कर्मी शीर्षक को आकर्षक बना कर ही परोसते हैं  ।  
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Copyright@
 
Bhishma Kukreti , Mumbai India 
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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